Home विषयपरम्पराए अक्षय तृतीया व परशुराम जयंती

वयं_पंचाधिक_शतं

गर्ग संहिता में एक परिकल्पितअद्भुत भावुक प्रसंग है।
कुरु राज्य का बंटवारा हो चुका था और युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में स्थापित हो चुके थे। अर्जुन निषेधभंग के दंडस्वरूप बारह वर्ष के वनवास पर हैं।
इसी बीच उग्रसेन अश्वमेध यज्ञ करते हैं और यज्ञाश्व कौरवों की सीमांत चौकी यानि बुलंदशहर के आसपास कुरु सीमांत रक्षकों द्वारा पकड़ लिया जाता है।
यादव गणसंघ की सेना कुरुओं पर बहुत भारी पड़ती है और तब एक अद्भुत बात होती है।
हस्तिनापुर यानि वर्तमान मेरठ से विदुर जो एक शूद्र हैं, तुरंत अग्रगामी रक्षक दल को लेकर कवच पहन, शस्त्र धारण कर दुर्योधन के साथ निकल पड़ते हैं।
इंद्रप्रस्थ यानि वर्तमान दिल्ली से महाराज युधिष्ठिर (अभी वे चक्रवर्ती नहीं हैं) तुरंत कौरवों की सहायता करने सैनिक टुकड़ी भेजते हैं, उन यादवों के विरुद्ध जो उनके सबसे हितैषी कृष्ण कुल के हैं।
घटनाओं को परिकल्पित इसलिये कहा है कि लेखक को अंदाज नहीं कि गणसंघ का मुखिया अश्वमेध नहीं कर सकता था, व्यक्तिगत रूप से भले करे लेकिन कथा में संदेश कमाल के हैं।
1)राष्ट्र की रक्षा केवल क्षत्रिय का दायित्व नहीं। शूद्र भी राष्ट्र की रक्षा करते थे, करनी चाहिए। विदुर जैसे सद्गुणी शूद्र जिसे दुर्योधन जैसा धूर्त जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादी ‘दासीपुत्र’ कहकर अपमानित करता था, वे सब भुलाकर उसी दुर्योधन के साथ-साथ युद्ध करने निकल पड़ते हैं।
2) दुर्योधन जैसा दुष्ट भाई भी हो तो भी मातृभूमि के लिए कितना भी निकट संबंधी हो, अपने हितैषी से भी युद्ध करने में संकोच न हो। यह युधिष्ठिर ने सिद्ध किया कि मातृभूमि की रक्षा में अपना पराया नहीं देखा जाता।
काश जन्मनाजातिगत भेद में डूबी दंभी पीढ़ी सहित ब्राह्मणों से जातिगत विद्वेष में डूबे पेरियारवादी इन महान ग्रंथों को कुछ पढ़े और समझे।
और हाँ, पूरियों व सीरे के सुस्वादु प्रसाद सहित अक्षय तृतीया व परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

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