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पंजाब राजनीति के धुरंधरों,
अब चन्नी के पिछले दिनों की एक्टिविटीज के आधार पर मेरा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण सुनो।
यह तो निश्चित है कि खालिस्तानी गैंग के आपिये थोड़ी से बढ़त में चल रहे हैं और अगर अकाली थोड़ी से भी सीटें पा गये तो खालिस्तानियों से उनका जा मिलना तय है।
बादल परिवार यूँ भी भाजपा और विशेषतः मोदी से खुन्नस खाये बैठा है।
इधर चन्नी को भी पता है कि चुनाव में कॉंग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस सिद्धू को आगे करके आपी खालिस्तानियों का सपोर्ट लेकर उसे बलि चढ़ा देगी।
चन्नी ने यूपी और बिहारियों के विरोध में बयान यूँ ही नहीं दिया है। चूँकि हिंदुओं को प्रत्यक्ष तौर पर कुछ नहीं कह सकते लेकिन यूपी बिहार को टारगेट करके उसने समस्त हिंदू वोटों को भाजपा की ओर धकेल दिया है।
उसके ऊपर प्रधानमंत्री की सुरक्षा के विषय को लेकर गंभीर इनक्वायरी की तलवार तो पहले से लटक ही रही है।
यानि कुल मिलाकर हर तरीके से उसकी गद्दी खतरे में हैं और जिसे अभी अभी सत्ता सुंदरी का स्वाद मिला हो ऐसा हीन प्रकृति का आदमी कोई भी कदम उठा सकता है और मेरा मानना है कि उसने आपियों के विरोध में कदम उठा लिया है।
उसका लिखा पत्र उसका दूसरा परंतु इस बार प्रत्यक्ष वार है जो हिंदुओं को और ध्रुवीकृत करेगा।
अब प्रश्न यह है कि दलित सिख भाजपा की ओर कितना झुकेंगे?
मेरा मानना है कि जहां कॉंग्रेस फाइट में नहीं है या कम फाइट में है वहां चन्नी अंदरखाने दलित वोट भाजपा को शिफ्ट करवाएगा।
इस दोहरी मार से आपिये खालिस्तानी अगर दूसरे नंबर पर रहे तो अमरिंदर या अकाली चन्नी को समर्थन दे सकते हैं।
लेकिन, किंतु, परंतु……
अगर दलित वोट का बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर शिफ्ट कर गया तो बहुत संभव है की भाजपा, अकाली व अमरिंदर मिलकर सरकार बना लें और बदली परिस्थिति में यह सर्वोत्तम विकल्प होगा।

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