Home विषयसाहित्य लेखज्ञान विज्ञान अमेरिका में स्टेचू ओफ़ लिबर्टी

अमेरिका में स्टेचू ओफ़ लिबर्टी

by Nitin Tripathi
237 views
अमेरिका में स्टेचू ओफ़ लिबर्टी इस लिए नहीं फ़ेमस है कि उससे शानदार मूर्तियाँ विश्व में नहीं बनी. वह इस लिए मशहूर है कि एक समय आवागमन का इकमात्र साधन पानी के जहाज़ ही था. प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध के समय/ उसके पश्चात भी दसियों लाख शरणार्थी अमेरिका आए इसी जल मार्ग से. हिटलर प्रताणित लाखों यहूदी अमेरिका आए इसी मार्ग से.
यदि आप किसी ऐसे शरणार्थी से नहीं मिले हैं तो उनकी पीड़ा समझ नहीं सकते. अपने देश में यह उच्च पदों पर / व्यवसाय आसीन व्यक्ति थे. अकस्मात् हमला हुआ. पिता की ऑन द स्पॉट हत्या कर दी गई. बहन / माँ की बलात्कार कर हत्या कर दी गई. यह किसी तरह समुद्र में कूद, रेगिस्तान में भाग जान बचाए. महीनों इस तरह से गुज़ारा किया कि अगली बार पानी भी कहीं मिलेगा या नहीं. हर सेब का टुकड़ा भी लगता है कि यह अंतिम फल है. इसके पश्चात हो सकता है हफ़्तों कुछ न मिले या क़िस्मत अच्छी हो तो अगले दिन ब्रेड मिल जाए. इन बेट्वीन अगर दुश्मन ने देख लिया तो जान गई. जो दुश्मन की गोली से बचे उन्हें भूख प्यास मार देती है. जो उससे बचे उन्हें कालरा मलेरिया ने मार दिया और जो इन सबसे बचे उनका भी भविष्य क्या? आजीवन किसी कैम्प में दो वक्त की रोटी के मोहताज रहो, भीख माँगो, बहुत हुआ तो कहीं स्वीपर क्लीनर बन ज़िंदगी भर जानवरों का जीवन जियो, इससे बेहतर तो मौत ही होती.
लेकिन इस सबसे बचने का एक तरीक़ा था. किसी भी तरह अमेरिका पहुँच जाओ. लैंड ओफ़ ऑपर्टूनिटी. वह देश जो सौ प्रतिशत इमिग्रंट्स से बना है. लोग कैसे भी करके अमेरिका पहुँचते थे. स्टैचू ओफ़ लिबर्टी न्यू यॉर्क बंदर गाह पर दूर से दिखती है. स्टैचू ओफ़ लिबर्टी देखते ही आधे लोग रोने लगते थे. अमेरिका उतरते ही ज़मीन चूमते थे. उन्हें पता था वह एक सुरक्षित जगह पहुँचने वाले हैं. वह देश जहां उनका, उनके बच्चों का भविष्य है. जिस देश की न उन्हें भाषा पता है न संस्कार, पर यह पता है कि यह देश है लैंड ओफ़ ऑपर्टूनिटी.
अमेरिका पहुँचते ही सारे दुःख दर्द दूर. आरम्भिक दौर में निहसंदेह एक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़ी. पर समाज ने भेद भाव नहीं किया. लेटरीन साफ़ करने वाला इमिग्रंट और होटेल मालिक एक ही रेस्टोरेंट में खाते थे, डिग्निटी दी, इज्जत दी. और फ़िर बस दसेक वर्षों में ही इन सब शरणर्थियों ने वह सब पा लिया जो उनके अपने देश में वह हज़ार सात जन्म में न पाते. अरब पति, खरब पति, नेता, अभिनेता, डायरेक्टर, विश्व प्रसिद्ध व्यवसाई यह सब वह एक जेनेरेशन में ही बन गए.
ऐसा केवल विश्व युद्ध के समय ही नहीं बल्कि निरंतर होता आया. युगांडा से जब भारतीय भगाए गए तो उनके अपने देश ने उन्हें शरण न दी. पर जो अमेरिका पहुँच गए उनमें अधिसंख्य अब सफल व्यवसाई हैं. ख्मेर रूज ने जब कम्बोडिया मेंकत्ले आम किया तो जो बच कर अमेरिका पहुँचे उनका जीवन बन गया. हाल के वर्षों में IT वेव में भी लाखों भारतीय अमेरिका पहुँचे और उन्होंने अमेरिका को ही अपना घर बना लिया. आख़िर अमेरिका ने ही उके वो सपने पूरे किए जो वह देख बड़े हुवे.
हाल के वर्षों में देखें तो विश्व के सबसे अमीर नागरिक ईलान मस्क से लेकर गूगल के मालिक तक आप्रवासी अमेरिकन ही हैं. भारतीय मूल के लोग आज अमेरिका के सबसे पैसे वाली जाति हैं.
बीते कुछ वर्षों में अमेरिकन शरणार्थी एक धर्म विशेष के हैं. अब तक जो भी शरणार्थी / आप्रवासी अमेरिका में गए, उन्हें अमेरिका ने इतना दिया कि वह भी अमेरिका के लिए पूरी तरह से लॉयल रहे.इन नए शरणार्थियों की लॉयल्टी केवल अपने धर्म की होती है, भले ही उसी के द्वारा प्रताणित हो भाग कर अमेरिक पहुँचे हो. नब्बे के दसक में भी ऐसा तेज़ी से हुआ, पर फ़िर 9/11 के हमलों के पश्चात अमेरिका जाग गया और उसने यह पक्का रखा कि शेष विश्व की भाँति अमेरिका में धर्म विशेष अपना जिहाद न चला पाए. पर अबइस घटना को समय हो गया, अमेरिकन भूल गए, पर नए शरणार्थी आ रहे हैं जिनके लिए उनका मज़हब उनके देश से ज़्यादा महत्व पूर्ण है. अमेरिकन इतिहास को देखते हुवे विश्वास तो है कि अमेरिका इसे कंट्रोल कर लेगा, पर देखना होगा कि अमेरिका इसे कैसे कंट्रोल करता है. #ntamerica

Related Articles

Leave a Comment