Home लेखक और लेखसतीश चंद्र मिश्रा एंकर एडिटर रिपोर्टर किस नशे में धुत्त या बेहोश | प्रारब्ध

एंकर एडिटर रिपोर्टर किस नशे में धुत्त या बेहोश | प्रारब्ध

Written By : - Satish Chandra Mishra

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ये एंकर एडिटर रिपोर्टर किस नशे में धुत्त या बेहोश हैं.?
राजस्थान के करौली, दिल्ली के जहांगीर पुरी समेत देश के दर्जनो शहरों में भगवान राम और बजरंगबली प्रभु की शोभायात्राओं में जाहिल जिहादी मज़हबी गुंडों द्वारा किए गए दंगों. गहलौत और उद्धव सरकार द्वारा किए जा रहे हिन्दू विरोधी कुकर्मों पर पर्दा डालने की सुपारी सम्भवतः न्यूजचैनलों के एंकरों एडिटरों रिपोर्टरों ने ले ली है. आजकल ये लगातार चिल्ला रहे हैं कि “देश में गरीबी बेरोजगारी महंगाई पर चर्चा के बजाए हिन्दू मुसलमान पर चर्चा क्यों हो रही है.”
हिन्दू विरोधी दंगाइयों, जिहादियों के बचाव के लिए किए जा रहे इनके इस पाखंड की धज्जियां उड़ा देता है एक तथ्य. इस उपलब्धि की सूचना 18 अप्रैल को विश्वबैंक के एक महत्वपूर्ण शोधपत्र ने दी है. इस शोधपत्र ने उन ऐतिहासिक कार्यों पर मुहर लगा दी है जो पिछले 7-8 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा देश के करोड़ों गरीबों के उद्धार उत्थान के लिए किए हैं. इस शोधपत्र के तथ्यों पर न्यूजचैनलों ने कितनी डिबेट्स की.? इस शोधपत्र से संबंधित तथ्यों पर कितनी खबरें, कितनी रिपोर्टें दिखायीं.? इसी सवाल की कोख से जन्मा है एक और सवाल कि….. ये एंकर एडिटर रिपोर्टर किस नशे में धुत्त या बेहोश हैं.?
उपरोक्त शोधपत्र पर आधारित, इस सप्ताह प्रकाशित, मेरी लिखी आवरण कथा का यह अंश आपको उन तथ्यों से परिचित कराएगा…
इसे मोदी सरकार के आठ वर्ष के शासनकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इस उपलब्धि की सूचना 18 अप्रैल को विश्वबैंक के एक महत्वपूर्ण शोधपत्र ने दी है. इस शोधपत्र ने उन ऐतिहासिक कार्यों पर मुहर लगा दी है जो पिछले 7-8 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देश के करोड़ों गरीबों के उद्धार उत्थान के लिए किए हैं.
यह शोधपत्र बताता है कि भारत में साल 2011 में गरीबी 22.5 फीसद थी, जो 2015 में 19.1 पर आ गई. इसके बाद साल 2015 से 2019 के बीच गरीबी में तेजी से गिरावट आई. यह साल 2015 के 19.1 से घटकर साल 2019 में 10 फीसद पर आ गई. देश में गरीबी 2011 की तुलना में 2019 में लगभग 55% कम हुई है. इस सच्चाई को यदि दूसरे तरीके से कहा जाए तो इसका सीधा अर्थ यह है कि विश्व बैंक के शोधपत्र के अनुसार भारत में 2019 में जितनी गरीबी थी, उससे दोगुने से भी अधिक गरीबी 2014-15 या 2011 में थी. यह आंकड़ा बताता है कि प्रधानमंत्री जी का पहले 5 वर्ष का शासनकाल देश विशेषकर देश के गरीबों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है.
उल्लेखनीय है कि गरीबी कम होने की सच्चाई बता रहे विश्वबैंक के शोधपत्र का अर्थ केवल एक आंकड़ा या रिपोर्ट मात्र नहीं है. इसका अर्थ यह है कि पिछले 5 वर्षों के दौरान केन्द्र एवं प्रदेश की भाजपा सरकार ने रोटी, कपड़ा मकान, शिक्षा स्वास्थ्य समेत हर उस मूलभूत आवश्यकताओं को उन करोड़ों गरीबों तक पहुंचाया है जो उन्हें कभी उपलब्ध नहीं हुई थी. किसी भी सरकार का यही प्रमुख उद्देश्य, प्रमुख लक्ष्य होता है. भाजपा की सरकारों ने इस कार्य को करने में एक नया इतिहास रच दिया है। इस सच को विश्व स्तरीय संस्था द्वारा शोधपत्र जारी कर के स्वीकार किया जाना देश के लिए सुख संतोष और गर्व की बात है.
विश्व बैंक के नीतिगत शोध-पत्र के अनुसार भारत के शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में गरीबी ज्यादा तेजी से घटी है. शोध के अनुसार छोटी जोत के किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है.
शोधपत्र में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से गरीबी तेजी से घट रही है. साल 2011 से 2015 के दौरान ग्रामीण गरीबी 26.3 फीसद से घटकर 21.9 फीसद पर आ गई। इस तरह इसमें 4.4 फीसद की गिरावट आई. साल 2015 से 2019 के बीच इससे भी तेज रफ्तार से घटी और 11.6 पर आ गई। इसमें कहा गया है कि छोटे जोत वाले किसानों ने उच्च आय वृद्धि का अनुभव किया.
शहरी गरीबी की बात करें, तो यह साल 2011 में 14.2 फीसद पर थी, जो 2015 में 12.9 फीसद पर आ गई थी. इसके बाद तेजी से घटकर 2019 में 6.3 फीसद पर आ गई. हालांकि, इसी अवधि के दौरान साल 2016 में नोटबंदी भी लागू हुई और 2017 में जीएसटी भी लागू हुआ.

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