Home अमित सिंघल एज़्टेक, माया, एवं इंका – का विकास

एज़्टेक, माया, एवं इंका – का विकास

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मध्य एवं दक्षिण अमेरिका में तीन विशाल पुरातन सभ्यताओं – एज़्टेक, माया, एवं इंका – का विकास हुआ था जिसे ईसाई उपनिवेशवाद ने पूर्णतया नष्ट कर दिया। नष्ट ही नहीं, बल्कि पूरे महाद्वीप के निवासियों का रहन-सहन, धर्म, पहनावा एवं भाषा भी बदल दी।
ग्वाटेमाला में माया सभ्यता के भव्य परिसर में रहने एवं घूमने का आनंद ले चुका हूँ। इंका सभ्यता की पराकाष्ठा पेरू के माछु पिच्छू तथा कुस्को में देख चुका था।
बस एज़्टेक सभ्यता देखना बचा था जो हज़ार वर्ष पूर्व आज के मेक्सिको में फल फूल रही थी।
अतः पिछले एक सप्ताह से मेक्सिको (सही उच्चारण मेहिको है) घूम रहा हूँ। अभी तक राजधानी मेक्सिको सिटी, पलेनकुए, एवं ओहाका (Oaxaca) की सैर कर चुका हूँ।
मेक्सिको में एज़्टेक एवं माया, दोनों सभ्यता के पिरामिड, मंदिर एवं भवनों के खंडहर अच्छी स्थिति में है।
एज़्टेक सभ्यता के खंडहर एवं विशाल पिरामिड मेक्सिको सिटी से 50 किलोमीटर दूर स्थित एज़्टेक सभ्यता की राजधानी तेनोचतितलान (Tenochtitlan) परिसर में स्थित है।
पलेनकुए में माया सभ्यता के पिरामिड एवं महल के खंडहर है।
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि मेक्सिको सिटी के केंद्र में, राष्ट्रपति भवन (Palacio Nacional) के बगल मे, स्थित टेम्पल मायोर (Temple Mayor) को एज़्टेक लोग ब्रह्माण्ड के केंद्र के रूप में देखते थे और वहां पर अपने ईश्वर हुईजिलोपोचतली (Huizilopochtli) का मंदिर बना रखा था।
स्पेनिश आक्रांताओं (conquistadors) ने 1520 के दशक में टेम्पल मायोर को ध्वस्त कर दिया और उसकी दीवारों के पत्थरों से एक भव्य गिरिजा – मेट्रोपोलिटन कैथेड्रल – वही पर बना दिया। ऊपर से राष्ट्रपति भवन के सामने स्थित विशाल चौक (ज़ोकालो – Zocalo) की भूमि पर टेम्पल मायोर के पत्थर लगवा दिए जिस पर एज़्टेक सभ्यता के स्वाभिमानी उत्तराधिकारी चलते है।
यही नहीं, मेक्सिको की 83% जनसँख्या ने ईसाई धर्म को अपना लिया। कारण यह था कि ईसाई धर्मप्रचारको ने एज़्टेक भगवानो एवं धार्मिक प्रतीक चिन्हो को ईसाई संतो का नाम दे दिया; एज़्टेक त्योहारों को ईसाई धार्मिक त्योहारों से जोड़ दिया। एक तरह से भोली-भाली एज़्टेक जनता को युद्ध, भीषण प्रताड़ना, तलवार के बल पर, धोखे एवं प्रलोभन से ईसाई बना दिया।
यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहता हूँ। मेरे मन में सभी धर्मो के लिए अपार श्रद्धा है , मैंने यह इतिहास अपनी गाइड बुक, गाइड, एवं विकिपेडिया में दिए गए तथ्यों के आधार पर लिखा है।
अब आप इसे भारत के सन्दर्भ में देख सकते है। दावूद एवं इतालवी गैंग ने भारत के सनातनी जनता को भी युद्ध, भीषण प्रताड़ना, तलवार के बल पर, धोखा, प्रलोभन, एवं हिंदी फिल्मो के द्वारा अपना धर्म एवं संस्कृति छोड़कर किसी अन्य धर्म को अपनाने के लिए विवश कर रहे थे।
बजरंगी भाईजान फिल्म के निर्देशक कबीर खान ने एक इंटरव्यू में स्वयं बतलाया कि उन्होंने फिल्म के गाने में जानबूझकर सलमान के चरित्र – जिसका नाम पवन चतुर्वेदी था – से यह लाइन गवाई कि मुझे नल्ली-निहारी चाहिए चाहे मेरा व्रत, उपवास एवं धर्म भ्रष्ट हो जाए। कबीर खान प्रसन्नता से बतलाते है कि यह गाना बच्चो में बहुत पॉपुलर हुआ था।
अब यह हम सनातनियो पर है कि क्या हम अपने मंदिर की दीवारों के पत्थरों से बने चौक पर चलना पसंद करेंगे।
क्या हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनकी टीम से मामूली सी बात पर भड़क कर नोटा दबा देंगे या फिर सनातनी विरोधियों को वोट दे देंगे।
या फिर नल्ली-निहारी खाकर सनातनी धर्म (अन्य किसी धर्म की बात हो तो अवश्य बतलाईयेगा) भ्रष्ट करने वाले गाने पर नाचने लगेंगे।
फिल्म भी हमारी है; ढोल भी हमारा है; नाच भी हमारा है; चौक भी हमारा है; विवाह का डीजे भी हमारा है।
मोदी-योगी-शाह-हिमंत भी हमारे है।
च्वाइस भी हमारी है।

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