एक सम्पन्न व्यक्ति थे, बड़े विष्णुभक्त थे, लक्ष्मी जी भी उनपर प्रसन्न थीं। उनकी विष्णुभक्ति भी नगर में प्रसिद्ध थी। तो हुआ यूं कि एक दिन एक लफंगा उनके पास आया और कहने लगा कि उसके सपने में भगवान विष्णु आए थे और उसने आदेश दिया है कि वो सेठ जी के पास जाए और उन्हें भगवान विष्णु के नाम से फरमाए कि सेठजी उसे विष्णु का प्रतिनिधि माने और अपनी कमाई का पाँचवा हिस्सा उसे देते जाएँ।
सेठजी हँसे, बोले भायजान, मुझे तो श्री विष्णु ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। जिस दिन वे मेरे सपने में आएंगे, और मुझे स्वयं आदेश देंगे उस दिन पाँचवाँ हिस्सा क्या, पूरी कमाई भी लाकर समर्पित कर दूंगा। तब तक के लिए नमस्कार। वैसे आप धूप में चले आए हैं, जल पान कर के जाएँ।
लफंगे ने हल्ला मचाया कि यह तो आप श्री विष्णु की आज्ञा का अवमान कर रहे हैं, उसके प्रतिनिधि की मांग को नकारना प्रत्यक्ष भगवान का ही अवमान होता है। क्योंकि आप की कमाई का कारण ही श्री विष्णु हैं और मैं उनका प्रतिनिधि। आप को अपनी कमाई का पाँचवाँ हिस्सा मुझे देना ही होगा। इसपर सेठ जी ने धक्के दे कर उस लफंगे को निकाल दिया।
बाद में पता चला कि उस लफंगे ने नगर के कई सम्पन्न लोगों के पास यही मांग की थी और सब ने यही किया था । फिर वो लफंगा नगर छोड़कर अपने ननिहाल भाग गया। वहाँ उसने ठग डाकू और लुटेरों को एकट्ठा किया और गिरोह बनाकर व्यापारियों के सार्थवाह लूटने लगा। उसने खुद को प्रति परमेश्वर घोषित किया और घोषणा की कि मेरे लिए लूटमार आदि बहुतही पुण्यप्रद काम होंगे। शत्रु स्त्रियों पर बलात्कार भी पाप नहीं माना जाएगा और न ही दंड का भागी होगा।
कुछ वर्षों बाद वो बहुत बड़ा लश्कर बनाकर अपने मूल नगर लौट आया, उसपर कब्जा किया और उन्हीं सभी सेठों को बुलाकर कुत्सित हँसकर पूछा – अब क्या खयाल है पाँचवे हिस्से को लेकर ? आए कि नहीं आप के सपने में आप के भगवान ?
सब ने कहा कि अभी आप ही भगवान है, हम आप को ही मानेंगे। उसने कहा तो फिर अपने सभी इष्टदेवताओं की प्रतिमाएँ नष्ट करो। सब ने कर दी।
उसके बाद यह फॉर्म्युला बन गया जब कि सच्चाई सब को पता थी । लेकिन इससे भी बड़ी सच्चाई यह थी कि समय रहते चिंगारी को मसलकर बुझाने की जहमत उठानी किसी ने गँवारा नहीं किया और सब का यही हाल हुआ। बोध यही है।