Home विषयअपराध कैसे बलिया में तीन पत्रकारों ने मिलकर परीक्षा में हो रही धांधली को उजागर किया जानिए

कैसे बलिया में तीन पत्रकारों ने मिलकर परीक्षा में हो रही धांधली को उजागर किया जानिए

by Ashish Kumar Anshu
224 views
बलिया में तीन पत्रकारों ने मिलकर परीक्षा में हो रही धांधली को उजागर किया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करने वाली पुलिस को भी पता होगा कि वे गलत कर रही है लेकिन उनकी जरूरतें उस सैलरी से अधिक होगी, जो उत्तर प्रदेश सरकार देती है। यदि ऐसा नहीं होता तो वे पत्रकारों पर झूठे मामलों में मुकदमा क्यों दर्ज करते?
बिहार और उत्तर प्रदेश की सरकारों को कम से कम अपने थाना, प्रखंड, अंचल और अनुमंडल के कर्मचारियों के बीच सर्वेक्षण करके पूछ लेना चाहिए कि उन्हें कितनी सैलरी मिले जिसके बाद वे ईमानदारी से अपना काम कर पाएंगे। रोज दफ्तर में बैठकर अपने जमीर का सौदा नहीं करेंगे।
दर्जनों ऐसे मामले जानता हूं जहां अभिभावक ने अपनी नौकरी में गलत किया और उसका परिणाम परिवार ने भुगता। बिहार में ही चन्द्रकांत का एक मामला है। चन्द्रकांत ने कॉपरेटिव बैंक में गबन किया। यह गबन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छा भविष्य देने के लिए किया और अब जब चन्द्रकांत 70 साल के हो गए हैं। उनके बेटे ने तीन बीघा जमीन के लिए अपना बाप बदल लिया। चन्द्रकांत का बेटा कहता है कि उसे तो किसी और ने गोद लिया था। इसलिए जिसने गोद लिया उसकी जमीन और सारी संपत्ति पर उसका अधिकार है। चन्द्रकांत से मेरा कोई संबंध नहीं है। अब इस बुढ़ापे में चन्द्रकांत किसी से मिलते नहीं। वे बेटे के व्यवहार से दुखी हैं। दुखी अकेले चन्द्रकांत नहीं हैं, उनकी पोती भी है। वह अपने पापा की एक—एक हरकत को देख रही है। उसके पापा कितने बेशर्म हो गए हैं!
बलिया के तीनों पत्रकार 28 दिनों के बाद आज जेल से रिहा हो गए हैं। उन तीनों पत्रकारों में से एक का नाम दिग्विजय सिंह है।​ दिग्विजय के अनुसार — ”28 दिन हमलोग मंडल कारागार में रहे। जेल के छोटे से कमरे में पांच लोगों को रखा गया, जहां पैर भी फैलाना मुश्किल था। शिकायत करें तो किससे करें? एक सच उजागर करने के बदले 28 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। जेल की समस्या को यदि उजागर करते तो एक और मुकदमा हम पर हो जाता। इसलिए हमलोगों ने मौन रहना ही अच्छा समझा। इन 28 दिनों में घर में 56 बार चुल्हा जलना चाहिए था। मुझे लगता है कि 08 या 10 बार ही हमारे घर का चुल्हा जला होगा। परिवार के लोगों का रोते—रोते बुरा हाल था। मेरी इकलौती बेटी 28 दिनों में 10 से 12 टाइम का भोजन मुश्किल से की है। मेरी बेटी एक स्कूल में पढ़ाने जाती थी। मेरी गिरफ्तारी के बाद से वह स्कूल जाना भी छोड़ दी है। उसका रो रो कर बुरा हाल है। प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं है।”
छोटे शहरों में हर पत्रकार चाहता है कि वह गलत के खिलाफ संघर्ष करे। इस संघर्ष में वह अकेला पड़ जाता है। अकेले संघर्ष करने वाले कम हैं। अधिक को दलाली का रास्ता आसान जान पड़ता है। जिसमें उसे विभिन्न विभागों से सम्मान और समय समय पर लिफाफा भी मिल जाता है। लेकिन मिलने वाले उस लिफाफे की कीमत ईमानदार पत्रकारों और उस समाज को ही चुकाना पड़ता है।
क्षेपक : धीरे धीरे समाज ने अपने सारे अधिकार सरकार के सामने सरेंडर कर दिए हैं। मुझे कई बार लगता है कि समाज को अपना अधिकार सरकार से रिक्लेम करना चाहिए।

Related Articles

Leave a Comment