Home अमित सिंघल चीन को पश्चिमी देशो का “आका” बनने का न्योता दे दिया गया है

चीन को पश्चिमी देशो का “आका” बनने का न्योता दे दिया गया है

by अमित सिंघल
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न्यू यॉर्क टाइम्स के ओपएड लेखक (स्तंभकार) थॉमस फ्रीडमन (Thomas Friedman) को नियमित रूप से लगभग दो दशकों से पढ़ रहा हूँ। फ्रीडमन को पत्रकारिता का पुलित्ज़र पुरुस्कार – जिसे लोग पत्रकारिता का सर्वोच्च (उतना ही सर्वोच्च, जितना फिल्मो के लिए ऑस्कर है; लगभग सब के सब अमरीकियों के लिए है) पुरूस्कार कहते है – तीन बार मिल चुका है।
अमेरिका द्वारा इराक में वर्ष 2003 में बिना सुरक्षा परिषद की अनुमति के मिलिट्री ऑपरेशन या युद्ध का फ्रीडमन ने खुले दिल से समर्थन किया था। उनका मानना था कि इस युद्ध के द्वारा राष्ट्रपति बुश खाड़ी के सभी राष्ट्रों में लोकतंत्र फैला देंगे।
फ्रीडमन की थ्योरी संक्षित में यह थी कि सद्दाम को हटाने के बाद अमेरिका उस देश में चुनाव करवाएगा जिसका वहां की जनता स्वागत करेगी। जब एक बार लोकतंत्र के फल का स्वाद इराकी जनता को मिल जाएगा तो वह प्रसन्नता से झूम उठेगी। इराकी जनता को नाचते-गाते देखकर सऊदी अरब, कतार, UAE इत्यादि देश की जनता भी अपने शासको को चुनाव करवाने के लिए विवश कर देगी।
उस समय फ्रीडमन के कॉलम इंडियन एक्सप्रेस में छपा करते थे। एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने भी अपने लेखो एवं सम्पादकीय में इस थ्योरी को अपना लिया था; लेकिन वह अब इसकी चर्चा नहीं करते; शायद शर्म आती है।
अगर इराक सम्बंधित लेखो को छोड़ दिया जाए, तो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मामलों को लेकर फ्रीडमन का विश्लेषण, उनकी अंतर्दृष्टि अद्भुद है। कह सकते है कि मैं उनका प्रशंसक था। “था” पर जोर है।
सोनिया सरकार के समय में वह भारत की आईटी सेक्टर की प्रगति को लेकर गदगद थे। भारत की प्रगति को केंद्र में रखकर वह एक पुस्तक – The World Is Flat – भी लिख चुके है। मोदी सरकार के कुछ वर्षो तक वे भारत की प्रगति के समर्थक थे। अब कट्टर आलोचक है; राणा आरफा (यह एक काल्पनिक नाम है; किसी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है) टाइप के तर्क देते है।
सोमवार, 7 मार्च को फ्रीडमन का न्यू यॉर्क टाइम्स में लेख छपा। लिखते है कि भारत को छोड़कर रूस का अब कोई महत्वपूर्ण मित्र नहीं है। आप पूछेंगे कि फिर चीन को वह किस श्रेणी में रखते है?
फ्रीडमन कहते है कि रूस के आक्रमण को केवल एक देश रोक सकता है – वह है, चीन; ना कि अमेरिका। उनका मानना है कि चीन की समृद्धि एक्सपोर्ट पर आधारित है। रूस के आक्रमण के कारण चीन की समृद्धि को खतरा हो सकता है। कारण यह है कि रूस पे लगे आर्थिक प्रतिबंधों के कारण चीन का व्यापार प्रभावित हो सकता है।
अतः फ्रीडमन आशा करते है कि चीन पश्चिमी देशो के साथ मिलकर राष्ट्रपति पुतिन का विरोध करेगा। अगर चीन ऐसा करने को तैयार हो जाता है तो वह विश्व का नेता बनकर उभरेगा।
ध्यान देने की बात यह है कि फ्रीडमन के अनुसार पश्चिमी देशो का साथ देने का अर्थ है “विश्व” का साथ देना, “विश्व” का नेता बन जाना।
मुझे पड़ोस के एक आतंकी क्षेत्र की याद आ गयी जहाँ के लोग कभी चीन, कभी तुर्की, कभी मलेशिया, तो कभी सऊदी अरब को अपना “आका” बना लेते है।
आका ही लिखा है; कुछ और मत समझ लीजियेगा।
राणा आरफा टाइप के तर्क देते-देते फ्रीडमन स्वयं राणा-आरफा बन गए है।
श्रीमान राणा आरफा फ्रीडमन का मुस्कराकर स्वागत नहीं करेंगे

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