आज जनपद स्तर पर एक विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन था.. जिसमें जनपद के समस्त बीस ब्लाकों से प्रति ब्लाक दस बच्चे प्रतिभागी थे। संयोग या सौभाग्य यह कि मेरे विद्यालय के एक बच्चे (सुमित शर्मा) का चयन उस प्रदर्शनी में प्रतिभाग हेतु किया गया।
मेरे हेडमास्टर साहब (धर्मेंद्र गुप्ता जी) ने बच्चे को मुझे सुपुर्द किया। (वजह यह कि मेरी अभिरुचि आर्ट और क्राफ्ट में भी है) मैंने सहर्ष स्वीकार भी किया क्योंकि यह मेरे रुचि का क्षेत्र है।
अब मेरे विद्यालय के छात्र ने अपने हिसाब से सौर मंडल के मॉडल का चयन किया…और अपने पूरे जोश के साथ वो अपना विचार लेकर मेरे पास हाजिर हुआ।
मैंने कहा- “पहले तो यह सोशल साइंस का विषय है..दूसरा बेहद ही घिसा पिटा… बेटा! तुम हाइड्रोलिक सिस्टम पर काम करो और मैं तो कहता हूं कि तुम बुलडोजर बनाओ। यदि तुम्हें कोई दिक्कत होती है तो तुम मुझसे संपर्क करना.
खैर! बच्चा बिना मेरे सहयोग अपने मॉडल को बनाया और बेहतर हाइड्रोलिक सिस्टम एवं एक बेहतर जानकारी के साथ जनपद स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में प्रतिभाग किया।
मित्रों! निर्णायक मंडल की पांच टीमों द्वारा उनके सूक्ष्म निरीक्षण एवं मूल्यांकन में जो अंतिम परिणाम आया वह यह कि उसमें मेरे बच्चे ने जनपद स्तर पर टॉप किया।
अब मजे की बात!!!! निरीक्षण के दौरान एक अधिकारी बहुत गौर से मेरे बच्चे के मॉडल्स को देख रहे थे तभी मैंने तपाक से कहा- “सर! इस मॉडल में एक चूक हो गयी”
अधिकारी ने चौंक कर कहा- “मेरी नज़र में तो कोई चूक नहीं.. बुलडोजर हर एंगल पर बेहतर काम कर रहा है।’
मैंने कहा सर! यह बुल्डोजर सामान उठा रहा है… चाहिए तो यह था कि मॉडल के के बराबर में एक मकान का मॉडल होता… तब बुलडोजर अपने फुल फ़ार्म में होता…
अधिकारी मुस्कुराए और चलते चलते बोले ..यह बुलडोजर है या बाबा का बुलडोजर।