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जब सांस हवा बन जाए।

by अमित सिंघल
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जब सांस हवा बन जाए।

डॉक्टर जब किसी रोगी को ट्रीट करते हैं तो उस समय वह हांड़-मांस का व्यक्ति उनके लिए केवल हांड़-मांस ही है।
एक तरह से कहां जाए तो मैटर (matter) या पदार्थ।
यह माना जाता है कि यह पूरा ब्रह्मण्ड पदार्थ से बना है।
अमेरिकी डॉक्टर पॉल कलानिथी स्टैनफोर्ड में न्यूरोसर्जन थे – यानी कि स्नायु तंत्र, विशेष रूप से मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में फ़ैली तंत्रिका सिस्टम के डॉक्टर।
जब वह किसी रोगी की खोपड़ी या रीढ़ की हड्डी को हथौड़े-आरी-ड्रिलिंग मशीन तथा अन्य बढ़ई-सुनार-लोहार वाले उपकरणों से खोलते थे, तो उन्हें अंदर केवल लाल-सफ़ेद-गुलाबी पदार्थ दिखाई देता था।
एक कुशल कारीगर की तरह वे ठोकते-पीटते-काटते थे; ऑपरेशन करते थे। एक-एक सूत नापकर ऊतकों को काटते थे, या फिर मस्तिष्क के सफ़ेद ऊतकों के मध्य एक बारीक सा इलेक्ट्रोड छोड़ देते थे जिससे रोगी के हाथ का कम्पन, मिर्गी का हिंसक दौरा, शरीर के किसी भाग का लकवा, या कैंसर ठीक हो जाए।
लेकिन इसी पदार्थ के ढेर से ही वह रोगी बोलता है; समझता है, पहचानता है, याद रखता है। हँसना, रोना, भावुकता, क्रोध, प्यार, घृणा, करुणा, यह सारे इमोशन इसी पदार्थ की देन है।
लेकिन कई बार जब खोपड़ी या रीढ़ की हड्डी को खोलकर जटिल ऑपरेशन किया जाता है तो सम्भावना होती थी कि वह रोगी बोलने, समझने, पहचानने, स्मरण शक्ति में से कुछ खो देगा।
उदाहरण के किये, ऑपरेशन के बाद रोगी सब समझ सकता है, लेकिन एक भी शब्द बोल नहीं सकता, लिख नहीं सकता।
डॉक्टर कलानिथी एक रोगी का उदहारण देते है जो ऑपरेशन के बाद केवल नंबर या संख्या के रूप में अपनी भावनाये प्रकट कर सकता था। जैसे कि ग्यारह तीन पंद्रह एक ! वह क्या कह रहा है? रोगी कुछ अभिव्यक्त करना चाहता है, डॉक्टर कलानिथी का हाथ पकड़ लेता है। लेकिन उसके मुख से केवल नंबर निकलते है।
अतः गंभीर ऑपरेशन के पहले डॉक्टर कलानिथी प्रत्येक रोगी से पूछते है कि ऑपरेशन के बाद वह रोगी कैसी जिंदगी चाहता है? जीवन में किस चीज़ को वह वैल्यू करता है? आखिरकार उसके लिए जीवन का क्या अर्थ है? और उसी हिसाब से वे ऑपरेशन करते थे।
मष्तिष्क का ऑपरेशन रोगी को पूरे होश में रखकर किया जाता है, रोगी से हर समय बात की जाती है, उसे बोलने के लिए कहा जाता है, जिससे डॉक्टर को पता रहता है कि ऑपरेशन की प्रगति ठीक चल रही है।
लेकिन फिर भी डॉक्टर कलानिथी के लिए शरीर, मस्तिष्क एक पदार्थ है, और वे उस पदार्थ के एक कुशल मिस्त्री। उन्हें अपनी कला पे गर्व था। वह अमेरिका के टॉप न्यूरोसर्जन थे। वे प्रातः 5 बजे से रात्रि 11 बजे तक कार्य करते थे। ऐसा एक ऑपरेशन कई घंटे चलता है।
फिर मई 2013 में 35 वर्षीय डॉक्टर कलानिथी को पता चलता है कि उन्हें स्वयं फेफड़ो का कैंसर है जो गंभीर अवस्था (stage 4) की स्थिति में था। दोनों फेफड़े कैंसर कोशिकाओं से भरे थे।
उन्होंने जीवन में कभी धूम्रपान नहीं किया था।
एकाएक वे डॉक्टर से रोगी हो गए। स्टैनफोर्ड अस्पताल के उसी बेड पर उनकी जांच की जाती है, जिस पर वे रोगियों को देखा करते थे। वही CT स्कैन, MRI, वही तकनीशियन, वही नर्स, वही डॉक्टर, वही रूम जो उनके कार्यस्थल का अभिन्न अंग था।
“अपनी” डॉक्टर से वे पूछते है कि उनके पास कितना समय है।
डॉक्टर उन्हें गोलमोल जवाब देती है, वही जो डॉक्टर कलानिथी अपने रोगियों को देते थे। जैसे कि कुछ दिन से कुछ सप्ताह। कुछ सप्ताह से कुछ माह। कुछ माह से कुछ वर्ष। कुछ वर्ष से कुछ दशक।
डॉक्टर कलानिथी निवेदन करते है कि उन्हें एक ठोस जवाब दिया जाए। वे मेडिकल टर्म में एक ग्राफ के द्वारा अपने जीवन की अवधी जानना चाहते है। “उनकी” डॉक्टर कलानिथी को वह ग्राफ देखने से मना करती है क्योकि उसे पता था कि कलानिथी उस ग्राफ को स्वयं देख सकते थे। वह कहती है कि “आप प्रत्येक दिन को जिए”।
डॉक्टर कलानिथी कहते है कि कौन सा दिन? अगर मेरे पास तीन महीने है, तो मैं अपने परिवार के साथ समय बिताऊंगा। अगर एक वर्ष है तो पुस्तक लिखूंगा। अगर तीन वर्ष है तो वापस ऑपरेशन थिएटर में चला जाऊँगा।
एकाएक डॉक्टर कलानिथी का सामना उस प्रश्न से होता है कि उनके लिए जीवन का क्या अर्थ है? उन्हें जीवन में सबसे प्रिय क्या है?
वह अपनी पत्नी के साथ निर्णय लेते है कि वह पिता बनना चाहते है। साथ ही, वह एक पुस्तक लिखना चाहते है।
कैंसर की दवाओं एवं ट्रीटमेंट के कारण उन्ही से उनकी पत्नी का कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है।
कैंसर का पहला ट्रीटमेंट बिना कीमोथेरेपी के सफल हो जाता है।
डॉक्टर कलानिथी पुनः ऑपरेशन थिएटर लौट जाते है।
कुछ माह बाद उनके फेफड़े का रूटीन स्कैन होता है जिसे डॉक्टर अगले दिन देखेगी। वे स्कैन के बाद एक अन्य ऑपरेशन में कई घंटे व्यस्त हो जाते है। रात्रि को रोगियों का स्कैन देखते समय उन्हें अपने फेफड़ो का स्कैन देखने की उत्सुकता होती है। वे कंप्यूटर स्कैन पे अपना नाम टाइप करते है।
वह देखते है कि कैंसर पुनः फ़ैल चूका है। अब उन्हें पता है कि वे ऑपरेशन थिएटर वापस नहीं लौट सकते। उस रात वे हॉस्पिटल की अलमारी से अपना सामान – कपड़े, टूथपेस्ट, ब्रश, क्रीम, इत्यादि – निकाल कर घर वापस ले आते है।
कुछ महीने बाद उनकी पुत्री का जन्म होता है। वह आश्चर्य से भर जाते है कि जहाँ एक तरफ उनके शरीर के टिश्यू मर रहे है, वही उनकी पुत्री के टिश्यू तीव्र गति से बढ़ रहे है।
साथ ही, वे एक पुस्तक भी लिख रहे है।
कीमोथेरेपी के बावजूद उनकी हालत बिगड़ती जाती है।
8 मार्च 2015 को वे हॉस्पिटल में भर्ती हो जाते है। घर एवं हॉस्पिटल में वे परिवार से बात-चीत कर रहे है, जीवित रहना चाहते है। लेकिन उन्हें पता था कि यह उनका आखिरी क्षण है।
9 मार्च 2015 को उनकी सांस हवा बन जाती है।
सांस भी पदार्थ है; हवा भी पदार्थ है।
लेकिन सांस जीवन है।

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