तोमरो की ऊंची नाक

ये गर्वोक्ति अपने मातुलग्राम में मुझे अक्सर सुनाई देती थी।
तब मैं उसके मायने कभी समझ नहीं पाया लेकिन अब मुझे लगता है इसके मूल में एक ऐतिहासिक तथ्य भी छिपा है।
इस तथ्य में कुछ मनोरंजक तथ्य हैं तो कुछ पीड़ादायी ऐतिहासिक स्मृतियां भी।
तोमर जो प्रायः तंवर या तुअर भी कहलाते हैं उनकी उत्पत्ति से इसका संबंध है।
प्रथम पौराणिक मान्यता है जिसके अनुसार वे अर्जुन के पौत्र परीक्षित के वंशज हैं।
द्वितीय पौराणिक मान्यता के अनुसार वे प्रसिद्ध वैदिक पंचजन में से एक ‘तुर्वसु’ गणों के वंशज हैं जो इक्ष्वाकुओं से परास्त होकर दक्षिण की ओर चले गये थे जहाँ उन्होंने दक्षिण के प्रसिद्ध पांड्य राजवंश की स्थापना की थी।
तोमरों के ऊपर शोध करने वाले प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर हरिहर निवास द्विवेदीजी इसी मान्यता को मानते हैं और विष्णुपद पर्वत को विदिशा में होना मानते हैं जहाँ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपना लौह स्तंभ गड़वाया था और जिसे अनंगपाल प्रथम ने मिहिरावलि में ‘ढिल्ली किल्ली’ के रूप में पुनर्स्थापित किया। यह पूरा क्षेत्र कहलाया ‘ढिल्लिका’ और आज कहलाता है ‘दिल्ली’।
लेकिन इतिहासकारों का एक वर्ग यह भी मानता है कि तुर्वसुओं की एक शाखा सम्राट सगर से पराजय के बाद उनके प्रतिशोध से बचने के लिये उत्तर में द्रुह्यु गणों के साथ गणपति गांधार के नेतृत्व में उत्तर पश्चिम की ओर चली गई थी और आठवीं शताब्दी में वहाँ मु स्लिम तुर्कों का आधिपत्य स्थापित होने पर वहाँ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा गाड़े गये स्तंभ को लेकर अनंगपाल प्रथम के नेतृत्व में वर्तमान दिल्ली के क्षेत्र में आ बसे थे।
अगर हम सम्राट जनमेजय के प्रसिद्ध नागयज्ञ जो कि तक्षशिला में आयोजित किया गया था को दृष्टि में रखें तो उससे भी अफगानिस्तान से प्रवास की पुष्टि होती है।
तीसरा मत मेरा है जो एक ऐसे तथ्य पर आधारित है जो इतिहासकारों द्वारा ध्यान ही नहीं दिया जाता और वह है ‘अर्जुनायन गण’ जो हरियाणा क्षेत्र में अवस्थित थे। महाभारत के अर्जुन से इनका कोई लेना देना नहीं था बल्कि ‘अर्जुन वृक्ष’ के टॉटेम को मानने के कारण उनका यह नाम पड़ा।
अगर सारे मतों को मिलाएं तो प्रतीत होता है कि जब अफगानिस्तान या दक्षिण की ओर से ‘तुर’ तोमरों के रूप में दिल्ली पधारे तो आर्जुनायनों से उनका अमलगमीकरण हो गया। बाद में जिन्होंने माउंट आबू में निर्धारित ब्राह्मण सर्वोच्चता और गोत्र पद्धति वाली राजनैतिक-सामाजिक पद्धति को स्वीकार किया तो वे तोमर तो राजपूतों में शामिल हो गए और जिन्होंने अपनी गणपद्धति (पंचायत प्रथा) को छोड़ने से इनकार कर दिया तथा विवाह तय छत्तीस कुलों में सीमित रखना अस्वीकार किया वह जाट व गुर्जरों में शामिल हो गये।
परन्तु मूल प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि आखिर तोमरों का मूल स्थान क्या है और इसका उनकी ऊँची नाक से क्या संबंध है।
चूँकि इतिहास के स्रोतों में इस विषय में पर्याप्त द्वैत हैं तो क्यों न शारीरिक लक्षण टटोले जायें।
मध्यप्रदेश में चंबल स्थित तोमरघार के तोमरों यानि अपने मातुल कुल का बचपन से ही पर्यवेक्षण करता आया हूँ और दो लक्षण बहुत सामान्यतः पाये-
सांवला रंग और मूल के पास उठी हुई व असाधारण लंबी नाक जिसके बारे में मैं अपने स्वर्गवासी मामा से मजाक करता था कि आपकी नाक पर तो शर्ट टांगी जा सकती है।
तिग्मांशु धूलिया निर्देशित बायोग्राफी फ़िल्म पानसिंह तोमर में इरफान का अभिनय बेशक लाजवाब हो लेकिन पानसिंह तोमर की तीन चीजें नदारद थीं- छः फीट दो इंच लंबाई, सांवला रंग और वही तोमरों की प्रसिद्ध ऊंची लंबी नाक।
बहरहाल श्यामल रंग उनके दक्षिण से दिल्ली की ओर आने का संकेत करते हैं जबकि उनकी नाक की आकृति प्राचीन गांधार और वर्तमान अफगानिस्तान के निवासी होने का संकेत करती है क्योंकि आज भी अधिसंख्य पठानों की नाक संरचना ऐसी ही है।
शायद दिल्ली के स्वामी होने और अपनी लंबी उठी नाक जैसे दोंनों कारणों से उनकी ये गर्वोक्तियाँ जन्मी हों-
‘ऊँची नाक और दिल्ली तोमर की ही रहेगी।’
लेकिन सुबुक तिगिन के विरुद्ध जब राजपूत सैन्य संघ लघमान घाटी में पहुँचा तो इस ‘ऊंची नाक’ के सवाल पर ही तोमर सेनापति हरावल के अधिकार पर झगड़ बैठे थे और निश्चित विजय पराजय में बदल गई थी।
हालांकि ऐसा कुछ नहीं कि यह तोमरों की सार्वत्रिक व विशिष्ट विशेषता हो क्योंकि तोमरों की ऊँची व मूल में उठी नाक के दर्शन दक्षिण के शेर छत्रपति शिवाजी में भी हुये और उन्होंने समस्त हिंदुत्व की नाक ऊंची कर दी।
कैसा संयोग है कि कोंकण के नीली आंखों व गोरे रंग वाले चितपावन ब्राह्मणों की भी मान्यता रही है कि उनके पूर्वज अफगानिस्तान से माइग्रेशन करके आये थे जबकि छत्रपति के पूर्वज तो उत्तर के जगप्रसिद्ध सिसोदिया थे ही जिनमें इस ऊँची नाक का जीन तोमरों कन्याओं से वाया चौहान कुल पहुँचा हो, कौन जाने!
बाइ द वे लेखक की नाक भी मूल में उठी व लंबी है जो उसे अपनी तोमर माता से दायभाग में प्राप्त हुई है।

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