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धर्म और रिलिजन

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धर्म और रिलिजन

 

अक्सर कुछ लोग धर्म और रिलिजन को एक ही अर्थ वाले अलग अलग भाषा के शब्द समझते हैं. आपको लोग धर्म के बारे में ऐसे उद्धरण देते भी मिल जाएँगे जो मूलतः अब्राहमिक रिलिजन के लिए प्रयुक्त हुए थे, जैसे कि मार्क्स का यह कथन कि Religion is the opium of the masses या फिर यह चालू जुमला All religions teach the same things…
धर्म और रिलिजन बहुत मूलभूत रूप में अलग अलग हैं. मेरी मोटी बुद्धि को मोटे तौर पर धर्म (हिन्दू धर्म अलग से नहीं कहूँगा क्योंकि धर्म तो एक ही है) में अब्राहमिक रिलिजन्स से तीन बातें अलग दिखाई पड़ती हैं. 1. सृष्टि और विनाश का चक्र, 2. आत्मा की परमात्मा से एकरूपता, और 3. सत्य के अनेक रूप ( Cyclicality of creation, Unity of the soul and Multiplicity of the Truth).
लेकिन यह तो हुआ कॉन्टेंट का अन्तर. पर उससे भी बड़ा है वह है प्रॉसेस का अन्तर. रिलिजन के प्रॉसेस में बुद्धि का प्रयोग वर्जित है. जबकि धर्म बुद्धि और विवेक के प्रयोग की ही एक्सरसाइज है. रिलिजन फेथ बेस्ड है जबकि धर्म रीज़न बेस्ड है. रिलिजन जड़ है तो धर्म चेतन है.
कभी कभी कुछ लोग ह्यूमैनिटी को अपना रिलिजन कहते हैं, तो कुछ लोग साइंस को. पर अगर आप किसी भी सिद्धांत को रिलिजन बना लीजियेगा तो परिणाम वही होगा – वह आपकी बुद्धि हर लेगा. कॉन्टेंट से परे, यह प्रॉसेस का दोष है. जब आप बुद्धि का प्रयोग बन्द करके सिर्फ जड़ भाव से किसी बनी बनाई लकीर पर चलने लगते हैं तो आप रिलिजन को फॉलो करने लगते हैं, जिहादी हो जाते हैं. इस्लाम भी अपने अनुयायियों में बिल्कुल वही अन्धा फैनेटिक सेंटीमेंट्स जगाता है, जैसा कि एथिज्म या लिबरलिज्म या सोशलिज्म या और कोई भी वामपन्थी विचार. क्योंकि प्रॉसेस की दृष्टि से ये सभी सामान हैं.
यह एक तरह की बौद्धिक अपंगता है. यह कुछ ऐसा है कि जैसे कुछ लोगों का मैथ्स कमजोर होता है, कोई म्यूजिक में बेसुरा होता है, वैसे ही कुछ लोगों में स्वतंत्र विचार की क्षमता नहीं होती. ये लोग बुद्धि के प्रयोग से सहज नहीं होते. उन्हें एक बनी बनाई लकीर, एक लिखी लिखाई बात चाहिए होती है. इनके हाथ में कोई भी सिद्धांत पड़ेगा, उसका रिलिजन बन जाएगा. हो सकता है, उनके हाथ में भगवद्गीता पड़ जाए…वे उसको भी रिलिजन की तरह पढ़ेंगे, बिना समझे. पर वहाँ सेविंग ग्रेस यह होगा कि कम से कम उनके हाथ में एक ऐसी किताब नहीं होगी जो घृणा का मैन्युअल होगी. अगर वे बिना समझे भी रटेंगे तो जो रटेंगे वह कॉन्टेंट की दृष्टि से सुपीरियर होगा, चाहे प्रॉसेस की दृष्टि से रिलिजन जैसा ही हो.

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