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भारत की धार्मिक सांस्कृतिक चेतना बची क्यों रह गयी ?

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भारत की धार्मिक सांस्कृतिक चेतना बची क्यों रह गयी जबकि पूरे विश्व की प्राचीन संस्कृति नष्ट हो गयी ?

 

भारत की धार्मिक सांस्कृतिक चेतना बची क्यों रह गयी जबकि पूरे विश्व की प्राचीन संस्कृति नष्ट हो गयी ?
यदि कोई कहे कि इस देश की धार्मिक चेतना की रक्षा सैनिक बल से की गई तो यह भी पूर्ण सत्य नहीं है क्योंकि विश्व के हर कोने में सैनिक थे , शासक थे।
कुछ हारे कुछ जीते कुछ स्वयं ही बदल गए और बदलकर अपनी ही संस्कृति का दोहन करने लगे और लोगों का बलपूर्वक धर्मान्तरण कराने लगे….
खलीफाओं का स्थान इन सारे कार्यों में प्रमुख है ।
फिर आखिर क्या था जो बच गए ..?
तो इसका उत्तर है भारत का समृद्ध दर्शन..!
बौद्धों, जैनो, वैदिकों और वैदिकों के ही अंदर के पंथों में इतने शास्त्रार्थ हुए , इतनी आध्यात्मिक क्रांतियां हुई कि भारत का हर नागरिक ऋषि मुख हो गया..।
भारत की जनता परिपक्क हो गयी,
जब आक्रमणकारियों ने सोचा यदि मन्दिर तोड़ दिया जाय तो हिन्दू संस्कृति नष्ट हो जाएगी तब भारत का जन मानस बोला;
आत्मा ही परमात्मा है , मन्दिर नहीं है तो क्या हुआ घर पर ही ईश्वर आराधना हो जाएगी।
जब जजिया जैसे धार्मिक कर लगने लगे तो जनता ने कहा;
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अरे क्या हुआ तीर्थ नहीं करने गए तो सारा तीर्थ इसी शरीर में है , यही हैं।
जब पूजा पाठ करने तक में रोक लगने लगा तब जनता बोली;
मन में राम का नाम जप लो यही बहुत है हो गयी पूजा।
आक्रांता ढूढ रहे थे कि हिंदुओं का वास्तविक धार्मिक केंद्र कहाँ है मगर लाखों प्रयासों के बाद भी ढूढ नहीं पाए।
जो दर्शन की समृद्धता भारत में फली फूली थी वह विश्व के दूसरे कोनों में कहीं नहीं थी।
वहाँ या तो ईश्वर की मान्यता थी या ईश्वर की मान्यता नहीं थी, परस्पर विरोधी दर्शन तो कभी फल फूल ही नहीं पाया ..
वहां या तो कड़े नियम थे या नहीं थे पर भारत में उत्तर दक्षिण मध्यम सभी प्रकार के मार्ग थे, हैं और रहेंगे।
भारत भी तभी नष्ट हो सकता है जब यहां से परस्पर विरोधी दर्शन नष्ट हो जायेगे और एकरूपता आ जायेगी क्योंकि एकरूपता को नष्ट करना अत्यंत आसान होता है
क्योंकि शत्रु को तब लक्ष्य स्पष्टरूप से दिखने लगता है,
कोई भी सांस्कृतिक लड़ाई केवल तलवार से नहीं जीती गयी है बल्कि वह हमेशा अपनी सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से जीती गयी है ।
यदि तलवार में दम होता तो मंगोलों का पूर्णतः स्वरूप ही न बदलता, पूरे विश्व को अपनी तलवार का लोहा मनवाने वाले तेंग्री धर्म को मानने वाले मंगोल अपनी मूलता को छोड़कर मुसलमान और बौद्ध न बन जाते…..
“आप तलवार से युद्ध जीत सकते हैं परंतु समृद्ध दार्शनिक संस्कृति नहीं”
भारत को विश्व इसीलिए कहा गया है
यूँ कहे तो यह दर्शनों का संग्रहालय है ,
देखना एक वक्त आएगा जब पूरे विश्व से इस्लाम खत्म हो जाएगा लेकिन भारत के लोग इस्लाम से कट्टर विचार धारा को बाहर निकाल कर इसका शोधन करके,
भारत में इस्लाम को जीवित रखेंगे, ये मैं नहीं यह भारत का इतिहास कहता है ,
” यहां आने के बाद हर चीज़ अमर हो जाती है ……”

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