मैं भोजन को संस्कृति का अभिन्न अंग मानता हूँ. बड़े बुजुर्ग भी कह कर गए हैं भूखे भजन न होहि गोपाला. वैसे भी भारतीय संस्कृति में हर तीज त्योहार सबमें भोजन के नियम है. यहाँ तक कि व्रतों में भी भोजन के अपने नियम हैं. किसी वृत में निर्जल तो किसी में फलाहार तो किसी में एक समय का अन्न सब तरह के वृत हैं अपनी संस्कृति में.
और इसका अंतर समझ आता है विदेश में. आप विदेश में हैं दीपावली का दिन वही है, पर रसगुल्ले नहीं हैं तो लगता ही नहीं कि दीपावली है. त्योहार में पनीर की सब्ज़ी न खा पाएँ तो समय के साथ त्योहार का मतलब समाप्त. नवरात्रि वृत में सब लोग नौ दिन केवल फल खा कर नहीं रह सकते, कूटू का आटा, वृत सम्मत कुछ नमकीन उपलब्ध न हो तो नब्बे प्रतिशत लोग वृत न रह पाएँ और समय के साथ विदेश में पैदा पली बढ़ी नई पीढ़ी में तो देश का कनेक्शन ही समाप्त हो जाता है.
विदेश में रहने वाले सभी NRI हल्दी राम के सदैव आभारी रहेंगे कि विदेश में हल्दी राम ने भारतीयों का यह कनेक्शन बना कर रखा. जो भारत में रहते हैं वह शायद यह आसानी से समझ न पाएँ विदेश में हल्दी राम की प्रोडक्ट रेंज भारत से दस गुना ज़्यादा है. शाही पनीर से बटर नान तक, एक डालर का एक गोलगप्पा से लेकर नवरात्रि फलाहारी तक सब कुछ हल्दीराम से उपलब्ध है. ज़ाहिर सी बात है भारत में गोलगप्पे खाने हैं तो आप बाज़ार में बीस रुपए के पाँच खा लेंगे, हल्दी राम के पचास रुपए में एक वाला न ख़रीदेंगे और न वह ये सब प्रोडक्ट भारत में मार्केट करते हैं. भारत में
और ज़ाहिर सी बात है, वह जिस देश में व्यवसाय करते हैं उस देश के नियम क़ानून पालन करते हुवे करते हैं. उसके फ़ूड डिपार्टमेंट से लेकर इंपोर्ट duty तक का पालन करते हुवे उस देश में भारतीयों को भारतीय भोजन करा ले जाते हैं. यूँ ही नहीं हल्दीराम भारत में पेप्सी से बड़ी कम्पनी है और इतना ही नहीं पेप्सी के देश में भारतीयों के बीच पेप्सिको से ज़्यादा हल्दी राम के आइटम बिकते हैं.
इन दिनों अनर्गल विवादों की श्रेणी में हल्दी राम फलाहारी मिक्स्चर में अरेबिक में क्यों लिखा है का विवाद चल रहा है. जनरल लाजिक है यह मिडल ईस्ट के लिए भेजा गया प्रोडक्ट होगा. शैतानी वस मिडलईस्ट को इक्स्पॉर्ट किए गए प्रोडक्ट को दिखा यहाँ उनका ब्रांड डैमेज करने की कोशिश की जा रही है. यह भी हो सकता है कि इक्स्पॉर्ट वाला थोड़ा बहुत माल किसी डिस्ट्रिब्युटर ने इधर चला दिया हो – कामन है बिज़नस में.
अनर्गल विवादों में फँस किसी भारतीयउद्योग का ब्रांड ख़राब करने, ब्लैक मेलिंग मीडिया की साज़िश का मोहरा बनने से बचें.
बाक़ी जिस देश के लिए यह प्रोडक्ट बना उस देश में रहने वाला एक भारतीय ऐसा न मिलेगा कि हल्दीराम के पैकेट में अरेबिक में लिखा था तो हम बहिष्कार करते हैं. जर्मनी में जर्मन में लिखा था तो अब जर्मन भारतीय यह न खाएँगे. सबको पता है जिस देश में रहते हैं उस देश की भाषा और नियमों का सम्मान करना पड़ता है.
फ़ालतू के विवादों से बचें.