यूक्रेन बनाम रूस के संदर्भ में मेरे विश्लेषण
मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि यूक्रेन बनाम रूस के संदर्भ में मेरे विश्लेषण इतनी जल्दी सही निकलने शुरू हो जाएंगे। पुतिन बुरी तरह फस गए हैं, उनकी हालत शेर की सवारी करने वाले के जैसी हो गई है, सवारी तो गांठ लिए अब उतरें कैसे। चढ़े रह नहीं सकते हैं, उतर भी नहीं सकते हैं। (मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, धैर्य रखिए कुछ हफ्तों में साफ-साफ दीखना शुरू हो जाएगा)।
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यूक्रेन को तो योरप के देश मिलकर पहले से अधिक विकासशील कर देंगे। लेकिन दिन प्रतिदिन जो रूस की इकोनोमी की ऐसी तैसी हो रही है, वह कैसे सुधरेगी। रूस की GDP का बड़ा हिस्सा योरप को गैस इत्यादि की आपूर्ति करके आता था, अब योरप नए विकल्पों पर विचार करेगा ताकि रूस पर निर्भरता नहीं रहे। योरप के पैसे से ही रूस की इकोनोमी कुछ पटरी पर आ रही थी। रूस आज की तारीख में कम से कम एक दशक पीछे जा चुका है।
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जिस तरह से रूसी सेना टैंको का जाम लगाकर भाग गई है, जिस तरह से हथियारों को सडक पर छोड़ दिए गए हैं, जिस तरह से मिसाइलों, सैनिकों व अन्य आयुध सामग्रियों को ढोने वाले उच्च-श्रेणी के वाहन अवारा छोड़ दिए गए हैं।
ऐसा लग रहा है कि रूसी सैनिक भी पुतिन की सनक के कारण अपने ही रिश्तेदारों व मित्रों को मारने से ऊब गए हैं। ऊपर से यूक्रेन के हजारों आम लोगों का अहिंसक तरीके से रूसी सेना का विरोध।
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योरप, अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया इत्यादि देशों से यूक्रेन सप्लाई पहुंचना शुरू भी हो गई है। भारतीय फेसबुक में बहुत लोग विशेषज्ञ बनते हुए बता रहे थे कि रूस ने यह बंद कर दिया है, वह बंद कर दिया है, यूक्रेन तक एक खेप भी नहीं पहुंच पाएगी। दरअसल टीवी चैनल देखकर विश्लेषण करने वाले स्वयंभू विश्लेषक लोग छोटी-छोटी बात पर कूदने लगते हैं। गहराई से ऑब्जेक्टिविटी के साथ देखने समझने का काम नहीं करते हैं।
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एक बार फिर से कहता हूं कि रूस द्वारा यूक्रेन पर आधिपत्य स्थापित करना आसान नहीं। यूक्रेन के जिस बंदे को कामेडियन कहकर मजाक उड़ाया जा रहा था, उसने रूस जैसी दुनिया की दूसरे नंबर की सबसे ताकतवर सेना को अभी तक पानी पिला रखा है। जबकि रूस के सामने यूक्रेन जैसा कमजोर सामरिक क्षमता वाला देश, एक दिन से ऊपर की औकात नहीं रखता है, मामला हफ्तों का हो गया है।
अमेरिका व योरप युद्ध में सीधे इंगेज नहीं हो सकते हैं, लेकिन बहुत प्रकार के सहयोग कर सकते हैं, वे सहयोग पहुचना शुरू हो गए हैं, यूक्रेन जितना समय खींचता रहेगा, उतना ही उसकी स्थिति मजबूत होती जाएगी। कीव पर रूस का कब्जा हो भी जाता है तो उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है, यूक्रेन के अंदर से ही निर्वासित सरकार अपनी राजधानी यूक्रेन के अंदर ही कही और कैंप कर लेगी और प्रतिरोध जारी रखेगी।
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फिर से बात दोहराता हूं कि रूस यूक्रेन से हार चुका है, रूस सालों पीछे जा चुका है, रूस की इकोनोमी जितनी टूटती जा रही है उससे ही उबरने में लंबा समय लगेगा। रूस अलग-थलग पड़ चुका है। पुतिन चढ़ तो गए, अब यह नहीं पता कि उतरें कैसे।
मेरा तो पुतिन को सुझाव है कि उनको भारत के सोशल मीडिया पर उपस्थित स्वयंभू विशेषज्ञों से सलाहें लेना चाहिए, एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ भरे पड़े हैं। भारत में तो गली मोहल्लों में पान की गुमटियों में दुनिया के हर विषय के एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ पान की पीक थूकते या लीलते हुए शोध-बहस में पिले रहते हैं। रूस व भारत का पुराना नाता है, पुतिन जैसे बर्बर व धूर्त तानाशाह का साथ रूस से मित्रता के नाते तो देंगे ही, वैसे भी भारत में भाई भतीजावाद खूब चलता है। सही गलत, उचित अनुचित का कोई मतलब नहीं रहता, भाई भतीजावाद के खातिर।
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मैं हिंसा का विरोधी हूं, मैं युद्ध का विरोधी हूं, मैं कब्जा करने का विरोधी हूं, मैं तानाशाही का विरोधी हूं। मैं समाजवाद का समर्थक हूं, मैं लोकतंत्र का समर्थक हूं। मैं बर्बर व धूर्त तानाशाह पुतिन का विरोधी हूं, पुतिन वाले रूस का विरोधी हूं।
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