बहुत से लोग पूछ रहे हैं कि यूक्रेन संकट पर रूस का रुख क्या होगा और भारत के हितों पर क्या असर पड़ेगा?
सबसे पहले इस संदर्भ में यूक्रेन के विषय में जान लें कि यूक्रेन भी मूलतः अखिल स्लाव जातियों से सम्बंधित है जिसका नेतृत्व रूस करता है लेकिन यूक्रेनी उपराष्ट्रीयता राष्ट्रीयता में बदल गई जब रूसी कम्युनिस्टों ने 1921 से लेकर 1934 तक ‘कृत्रिम अकाल’ और ‘लाल आतंक’ के जरिये करोड़ों यूक्रेनियों हत्या कर दी जिसे यूक्रेनी ‘जातीय नरसंहार’ के रूप में देखते हैं और इसके लिए स्टालिन को हिटलर से भी भयानक नरपिशाच मानते हैं।
सोवियत संघ के बिखरने के बाद यूक्रेन भी स्वतंत्र, संप्रभु राष्ट्र बना लेकिन रूसी आधिपत्य का भूत और कड़वी यादें उसकी जातीय स्मृति से गई नहीं जो उसे नाटो की ओर ले गई।
यही उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई कि उसे लगा कि क्रीमिया के दम पर वह रूस को दबा सकता है लेकिन पुतिन ने क्रीमिया पर कब्जा कर यूक्रेन को कड़वी हकीकत समझा दी कि ‘दूसरों के बल पर जंग लड़ना’ कितना आत्मघाती होता है।
रही सही कसर यूक्रेन के वर्तमान कॉमेडियन राष्ट्रपति ने पूरी कर दी जो नाटो के दम पर रूस को ब्लैकमेल करने चला था।
अगर यूक्रेन ने भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में सैंटो व सियाटो में पाकिस्तान के सम्मिलित होने के बावजूद भारत के हाथों बुरे हश्र व अमेरिका के आँखें फेरने को पढ़ा होता, या अरब इजरायल संघर्ष में रूसियों द्वारा खोखले गर्जन तर्जन को समझा होता तो उन्हें पता चल जाता कि महाशक्तियों के लिए ऐसे राष्ट्र सिर्फ ‘चारे’ होते हैं। मछली फंसे न फंसे केंचुआ तो निबटेगा ही।
जहाँ तक रूस के आक्रमण करने की संभावना का प्रश्न है इसके लिए रूस के राष्ट्रीय चरित्र को समझना जरूरी है।
प्रारम्भ से ही रूस कुछ मौकों को छोड़ दिया जाये तो यूरोप की ओर कभी आक्रांता नहीं बना, वह सदैव रक्षात्मक रहा है।
तुर्कों के विरुद्ध जनरल सुवोरोव की सफलताओं को छोड़ दिया जाए तो उनकी विजये ‘जनरल जनवरी और जनरल फरवरी’ के रक्षात्मक युद्ध का परिणाम रहीं हैं।
यहाँ तक कि ‘पूरब के बौने’ ने भी इस भालू को बुरी तरह पटका था।
इसलिये पुतिन गर्जन-तर्जन चाहे जितनी कर लें लेकिन प्रत्यक्ष युद्ध कभी नहीं छेड़ने वाले।
अब रही इस प्रकरण में भारत की बात तो भारत न नाटो का समर्थन कर सकता है और न रूस का क्योंकि रूस का समर्थन करने का अर्थ है तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता देना और यूक्रेन को समर्थन देने का अर्थ है रूस को चीन की बांहों में धकेल देना।
‘चीनी पैसा और रूसी तकनीक’ यह गठजोड़ भारत ही नहीं विश्व के लिए घातक सिद्ध होगा।
चीन की महत्वाकांक्षा केवल ताइवान तक सीमित नहीं है बल्कि सीपैक के जरिये सिक्यांग से हिन्द महासागर तक चीनी बस्तियों का गलियारा, रूस द्वारा उसके पामीर पर अधिकार को मान्यता व पूर्व में वियतनाम सागर पर अधिकार कर चीन को विश्व सत्ता का केंद्र बनाने की चाहत भी है।
लेकिन अगर रूस यूक्रेन पर आक्रमण करता भी है तो भी चीन शायद ही ताईवान पर हमले की सोचे क्योंकि तब संभव है कि अमेरिका यूक्रेन की बलि देकर भारत, जापान, वियतनाम को साथ लेकर चीन पर टूट पड़े और चीन इसी बात से सबसे ज्यादा डरता है।
लेकिन चीन के इस प्रतिकार में अमेरिका की सबसे बड़ी जरूरत होगी एक विशाल सेना व भूमि के माध्यम से आक्रमण और वह उसे भारत के अलावा कोई उपलब्ध करा नहीं सकता इसलिये मोदीजी ने जयशंकर जी द्वारा बड़े ठंडे अंदाज में अमेरिका को समझा दिया है कि क्वाड का उपयोग तभी किया जाएगा जब चीन सक्रिय होगा अन्यथा यूरोपीय मामलों व रूस के संदर्भ में उसे नाटो की तरह प्रयोग नहीं किया जा सकता।
दरअसल मोदीजी के अपने अलग ही इरादे हैं और वह है गिलगित बाल्टिस्तान व बलूचिस्तान पर भारतीय संप्रभुता।
संभवतः गिलगित बाल्टिस्तान पर तो अमेरिका तैयार है लेकिन बलूचिस्तान पर नहीं क्योंकि वह स्वयं भी बलूचिस्तान में बैठना चाहता है ताकि ईरान व मध्यएशिया पर नियंत्रण रख सके। इधर मोदी भी जानते हैं बलूचिस्तान स्वतंत्र भी रहा तो देर सवेर चीन या अमेरिका किसी एक का अड्डा बन जायेगा और इससे भारत को कोई फायदा नहीं होने वाला।
मोदीजी भी जानते हैं महाशक्तियों के खेल में उतरने के लिए उधार के हथियारों से काम नहीं चलेगा और इसीलिये रक्षा क्षेत्र में प्राइवेट सैक्टर को उतारकर रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य निर्धारित किया है और साथ ही उस समय तक नई टेक्नोलॉजी हस्तांतरण की प्रक्रिया हथियार सौदों के माध्यम से जारी रखी गई है।
इस पूरे प्रकरण में दीर्घकालीन लक्ष्यों हेतु मोदीजी के दो ही सिरदर्द हैं-
प्रथम, देश में मौजूद 35-40 करोड़ एंटी हिंदू कौम को निष्क्रिय व हतोत्साहित रखना
द्वितीय मूर्ख हिंदुओं को सत्ता में बने रहने के फायदे समझाना।
अगर अगले सात साल तक केन्द्र व प्रांतों की सत्ता भाजपा के हाथों में रही तो आप एशिया का भूगोल बदलते ही नहीं देखेंगे बल्कि भारत की डेमोग्राफी भी नाटकीय रूप से बदलते देखेंगे।
इस ‘ग्रेट गेम’ में हमारा भी एक जबरदस्त रोल है और वह ये की आपको मोदी योगी को प्रचंड बहुमत से सत्ता में बनाये रखना।
2015 में ‘ग्रेट गेम’ में मेरी लिखी गयी भविष्यवाणियों में से एक एक सत्य सिद्ध हो चुकी है और मेरा दावा है कि ये भी पूर्णतः सत्य सिद्ध होंगी अगर हिंदुओं ने कोई मूर्खता नहीं दिखाई तो।

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