रूस ने बाजी हारी है
जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है, हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है।
हम क्या चाहते, आजादी
आजादी का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लाह।
अगर कश्मीर में रहना होगा, अल्लाहु अकबर कहना होगा।
ऐ जालिमों, ऐ काफिरों, कश्मीर हमारा है।
यहां क्या चलेगा? निजाम-ए-मुस्तफा.
रालिव, गालिव या चालिव (हमारे साथ मिल जाओ, या मरो और भाग जाओ)
यही नारे लगे थे, जब 28 साल पहले कश्मीर के मोहम्मडन ने हिंदुओं को जी भर कर प्यार किया था….
जब 4 लाख हिन्दू घर से भगा दिए गए।
हज़ारों का क़त्ल हुआ, रेप और लूट हुई।
एक पूरी कौम निर्वासित हो गयी, बलात्कार-हत्या और लूट का दहला देने वाला सिलसिला चला। यह कोई पुरानी बात नहीं। हमारी-आपकी आंखों के सामने की बात है।
लाखों लोगोे को उखाड़ फेंका, हजारों जानें गयीं, अपने घर में हिंदू बन गए भिखारी!
फिर भी, हमें बताया गया कि यह इस्लामी आतंकियों, जिहादियों का काम नहीं था। या फिर, घनघोर चुप्पी, सेक्युलर दोगलेपन वाली ओढ़ ली गयी। अगर यह जिहाद नहीं था, तो फिर इन नारों का क्या मतलब था?
Pogrom इसे कहते हैं, मानवता को दहलाने वाला कत्ल-ए-आम यह है, लेकिन आपको केवल गुजरात 2002 बताया जाएगा- उसमें भी गोधरा नहीं।
84 के सिख नरसंहार 89 का भागलपुर, मुज़फ्फरनगर, दादरी, कैराना, सीमांचल–ये सब तो पुच्चियाँ हैं!!

नरसंहार यह है…