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विद्यार्थी हमेशा से गृहत्यागी रहा है

राजीव मिश्रा

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विद्यार्थी हमेशा से गृहत्यागी रहा है.
हमारे समय में हमारे शहर से बच्चे पढ़ने कम से कम पटना जाते थे. थोड़े बाद में पूरी भीड़ उठ कर दिल्ली जाने लगी. फिर बीच में कोटा जाने का फैशन चल पड़ा.
अभी बच्चों को विदेश भेजने का चल रहा है. सिर्फ इंजिनीयरिंग मेडिकल ही नहीं, कुछ भी पढ़ने के लिए लोग अपने बच्चों को भेज रहे हैं. मेरे जान पहचान वाले कई लोग हैं जिनके बच्चे अभी यूके में पढ़ रहे हैं, साइकोलॉजी, सोशियोलॉजी…कुछ भी. ऐसा नहीं कि उस सब्जेक्ट में बहुत रुचि है. पर पढ़ना है विदेश में. नहीं तो लोग क्या बोलेंगे? आज यूके की वही औकात हो गयी है जो एक जमाने में पटना की थी…और यूक्रेन पोलैंड रोमानिया तो मगध यूनिवर्सिटी, टीएनबी कॉलेज भागलपुर, मारवाड़ी कॉलेज राँची टाइप के हो गए हैं.
मेरे यहाँ एक डॉक्टर साहब आये थे अपने बच्चे का एडमिशन कराने के लिए…हौन्सलो में एक सरदार जी को जबरन पकड़ के बताने लगे कि अपने बेटे का एडमिशन कराने आये हैं.
सरदार जी ज्यादा इम्प्रेस नहीं हुए… पूछा, किस चीज में?
डॉक्टर साहब ने बहुत खुश होकर बताया – A-level (12वीं क्लास) में.
सरदारजी बोले… आपका पैसा है, जैसे मर्जी बर्बाद करें…आपकी मर्जी.
डॉक्टर साहब का बेटा यहाँ छह महीने टिका…जिन्दगी एन्जॉय की…गर्दन पर जापानी में टैटू करवाया…एक दिन ड्रग्स लेते पकड़ा गया तो स्कूल ने उसका बोरिया बिस्तर बाँध कर भिजवा दिया. मोदी ने उसके लौटने का पैसा भी नहीं दिया.

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