Home विषयकहानिया शहर का दर्जी
मेरे शहर में एक टेलर है। कटिंग, फिटिंग के मामले में मशहूर है। हांलांकि अब रेडिमेड कपड़ों के दौर में दर्जी के यहां जाना कम ही हो पाता है। दरअसल सिलाई इतनी मंहगी हो चली है कि कपड़ा खरीदने, सिलवाने के बाद भी मनमाफ़िक फिटिंग न उतरने पर ऐसा लगता है कि जलेबी खरीदने की जगह, घर की कढ़ाई में छानने के बाद गाढ़ी चासनी के दलदल में डूबी भौड़ी जलेबियां!
आप तो जानते ही हैं कि रिश्तेदारों द्वारा दिये गये कपड़े और सोनपापड़ी दोनों की जीवन यात्रा एक ही कलम से लिखी गई है। वैसे दो-चार सालों में रिश्तेदारी में ऐसे कपड़े हाथ लग जाते हैं जिन्हें सिला लेने के लिए दिल में रह रह कर एक हूक उठ जाती है। दरअसल इसमें सिर्फ सिलाई डूबने का जोखिम रहता है! मात्र…यही फायदा व्यक्ति को ऐसे चुनौतियों के लिए तैयार करता है।
हां! तो बात दर्जी की दुकान से उठी थी.. इसलिए दुकान पर ही खत्म हो-दर्जी सिलता तो बढ़िया है लेकिन वो कपड़े की नाप लेने में इतना वक्त लेता है उतने में कोई हुनरमंद, अपनी नाप खुद लेकर कुर्ता-पायजामा काट.. सिल कर उसमें नाड़ा पिरोने लगे। कल तीसरे नम्बर पर खड़ा था इतने में घंटे की सूई दो बार ‘संख्या 12’ को चूमकर लौट आयी।
मेरे बाद एक बैंक मैनेजर साहब आये। पहचानता नहीं था लेकिन जो लगातार फोन आ रहे थे वो बैंकिंग सम्बंधित समस्या एवं उसके समाधान के परिप्रेक्ष्य में थे। दूसरे मोबाइल जिस रिबन द्वारा उनके गले में लटका रहा था उस पर गाढ़े रंग से SBI मुद्रित था। जिस समय बैंककर्मी दुकान पर चढ़े उस वक्त मेरे खड़े होने के स्थान एवं दिशा से वो मुझे देख न पाये तथा खुद को तीसरा मानकर व्यग्रता पूर्वक अपने बारी की प्रतीक्षा में टकटकी बांधे खड़े हो गये। बैंक के काम का बोझ तथा दर्जी की नापने की कच्छप गति के बीच उनकी बेसब्री देखने लायक थी। यकीन मानिए!! यदि वो दर्जी की कैंची छीनकर कुछ अपराध भी कर बैठते तब भी मुझे आश्चर्य न होता।
उधर दर्जी के जीवन में ‘घड़ी और वक्त’ से जैसे कोई वास्ता ही न हो। दस बार लम्बान नापता है। कंधे पर इंचटेप गिराकर दस फिट दूर जाकर, खड़े होकर, बैठकर, सोकर लम्बाई का मुआयना करता है। सीना और कंधे नापने में दर्जनों बार घेरा बनाता है। मियानी नापते वक्त दोनों टांगों के बीच इतनी बार इंचटेप रगड़ता है शायद उतनी बार सलमान खान ने फिल्म पार्टनर में तौलिया न रगड़ा हो। कुछ देर तक तो लगता है कि नाप रहा है लेकिन इतनी बार किसी बाहरी वस्तु से स्पर्श!! स्वत: एक अश्लील स्पर्श बन जाता है। मन हुआ कि कि हाथ मरोड़ के पूछूं – ‘अबे! कपड़ा नाप रहे हो या कुछ और!!’
कुछ डेढ़ घंटे बाद बैंक कर्मी ने अपना कपड़ा मेज पर रखकर अपनी बेल्ट खोलने लगे तभी मैंने कहा- “भाई अब मेरा नाप लो।”
बैंक कर्मी- “क्या मजाक है?? मैं आपसे पहले आया हूं।”
तभी दूसरे नम्बर वाले ने मुझे दिखाकर कहा- “भाईसाहब आपसे पहले आये हैं।”
मैंने हंसकर बोला- “भैया आप तो मेरे सामने आये हैं और मैं यहां सदियों से खड़ा हूं।”
उसवक्त बैंक कर्मी इतने हताश और निराश हुए जैसे कोई व्यक्ति सार्वजनिक सुलभ शौचालय में घुसकर चिटकनी चढ़ाकर, कपड़ों से हल्के होकर अपने पैर टिकाकर टोटी तक खोल लिया हो और बाहर की जनता नम्बर का हवाला देकर उसे जबरन उठाकर बाहर कर दें।
हांलांकि मैंने टेलर को सख्त लहजे में कहा- “देखो मुझे दुल्हा नहीं बनना। फटाफट नापो और मैनेजर साहब के समय की कीमत पहचान कर उन्हें भी तुरंत रिहा करो।
अब तक मैनेजर साहब के चेहरे पर निराशा की इतनी मोटी परत चढ़ चुकी थी कि मेरे द्वारा उनके पक्ष में किया गया बलिदान वैसे ही था जैसे किसी मृत शरीर में जबरन पेसमेकर ठूंसा जा रहा हो!
इन सब के बावजूद यह टेलर का एक बड़ा ऐब है। वो जितनी देर में एक आदमी के पैंट शर्ट की नाप लेता है। उतने देर में एक गृहणी आटा गूंथकर चालीस-पचास फुल्के सेंक लें। कोई अपनी पंचर मोटरसाइकिल पांच किलोमीटर ढकेलकर पंचर की दुकान पर पहुंचकर तसल्ली से पंचर बनवा ले। कोई काबिल सर्जन हार्निया, हाइड्रोसील के दो आपरेशन निपटा लें। हां इस बात से सहमत हूं कि भले कोई महिला किसी दुकान से एक साड़ी खरीदने में इससे अधिक वक्त लगाये।

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