एक बार एक पहलवान जी अखाड़े में बुरी तरह रगड़ गये। पूरी पीठ धूलधूसरित हो गयी.. वैसे अखाड़े में जीतना-हारना दोनों, एक सिक्के के दो पहलू जैसे है। जीतने वाले को लोग कंधे पर बिठा लेते हैं..और हारने वाले का कंधा झुक जाता है।
खैर! पहलवान जी जब पटखनी खाकर अखाड़े से नीचे उतरे तो उनके कुछ समर्थक हौसला भी देने लगे और कुछ पहलवान की कमियां गिनाने लगे… लेकिन पहलवान सिर्फ एक ही रट लगाए थे- “शुक्र है लंगोट बच गयी…शुक्र है लंगोट बच गयी….हार-जीत अपनी जगह लेकिन भगवान का भला हो लंगोट न खुली।”
यह बात जब दर्जनों बार अखाड़े में उतरी तो पहलवान के एक तगड़े समर्थक ने चिढ़कर पूछा.. क्या लंगोट… लंगोट लगा रखा है…जब पीठ पर धूल लग गयी तो लंगोट भी खुल ही गयी… तुम बेमतलब की बात कर रहे हो पहलवान!!
तब पहलवान ने सांस रोककर कहा “यार! तुम लोग अखाड़े के बाहर से केवल जीत हार देखते हो लेकिन जो लड़ता है उसे बहुत कुछ दिखाई और सुनाई देता है… तुम्हें मालूम जब पहलवान में मेरे कमर और दोनों जांघों के बीच हाथ घुसा कर पटक रहा था उस वक्त उसके जंगें के बीच वाले हाथ की मध्यमा उंगली मेरे लंगोट के टीले वाले क्षेत्र पर आच्छादित पट में फंस गया था..
नादान! तुम्हें क्या पता उस वक्त मैं पटखनी भी खाता और बिन लंगोट के भी आता.. बस शुक्र मनाओ की लंगोट बच गयी।
मित्रों! यूपी चुनाव परिणाम के एक दर्जन दिवस गुजर गये लेकिन जोर सिर्फ इस बात पर है कि “शुक्र है लंगोट न उतरी”