संगठन के भीतर असीम बिहारी हमेशा खुद को नेपथ्य में रखने को तरजीह देते रहे और दूसरों को बढ़ावा देने की कोशिश करते रहे। कभी संगठन के अध्यक्ष पद पर नहीं रहे, और केवल महासचिव पद तक ही सीमित रहे।
वे हमेशा चुनावी राजनीति को त्वरित सफलता के शॉर्टकट के रूप में देखते थे और सामाजिक जागरूकता के कार्यों को प्राथमिकता देना अधिक उचित समझते थे। फिर भी 1936-37 के चुनाव में पार्टी के कई कार्यकर्ता कई सीटों पर विजयी होकर उभरे।
चुनावी राजनीति में बिहारी ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों से समानता बनाए रखने की नीति अपनाई। एक भाषण में उन्होंने कहा था: ‘हमारी बीमारी का इलाज न तो लीग के हाथ में है और न ही कांग्रेस के पास… इस बात की सच्चाई यह है कि हमारी बीमारी का इलाज हमारे ही हाथ में है, यह इलाज हमारा ‘सम्मेलन’ है। ‘