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सुविधा_के_नियम

मेरा स्पष्ट मानना है कि किसी म्लेच्छ के घर किसी हिंदू संत के जाने में कोई बुराई नहीं अगर उसका उद्देश्य ‘घर वापसी’ का माहौल बनाना है।
लेकिन ये नैतिक अधिकार उसी को है जो पहले जन्मनाजातिगतश्रेष्ठता को प्रतिपादित हर उस पंक्ति को प्रक्षेप या अमान्य घोषित करे जो हिंदुओं में जन्मना जाति के आधार पर ऊँचा और नीचा घोषित करती है।
वरना स्पष्टतः यह माना जायेगा कि आपको गोमांसभक्षी अरबी संस्कृति तो स्वीकार हैं लेकिन हजारों वर्षों से जातिगत अपमान झेलकर भी निष्ठावान हिंदू बने रहे दलित शूद्र के मंदिर प्रवेश जैसे मौलिक अधिकार को भी शास्त्रों में घुसेड़े गये श्लोकों की ओट में स्वीकार नहीं करोगे।
अगर हिंदू किसी म्लेच्छ का स्पर्श करे वह शास्त्र विरुद्ध है और मोदी का ‘सबका विकास’ तुष्टिकरणवाद।
तो फिर क्यों गये थे म्लेच्छ के घर? क्या घर वापसी कराने??
-‘घर वापसी’? …शिव..शिव..शिव..शास्त्रों का घोर उल्लंघन। ए विधर्मी इज ऑलवेज विधर्मी। (आपके स्वमतानुसार)
लेकिन…….
लेकिन मैं तृतीय नेत्रधारी, साक्षात शिवस्वरूप, विश्वामित्र की धनुर्विद्या और दिव्यास्त्रों का धारक हूँ,
मैं ही शास्त्रों का निर्माता और नियंता हूँ।
मैं पुरी पीठाधीश्वर हूँ।
मैं कुछ भी कर सकता हूँ।
मैं म्लेच्छ के घर तो जा सकता हूँ पर हिंदू शूद्र को मंदिर के अंदर आना शास्त्र विरुद्ध मानूंगा।

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