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हिंदू_विरोधी_तंत्र

 

-न्यायपालिका हिंदू विरोधी है।
-प्रशासन हिंदू विरोधी है।
-पत्रकार हिंदूविरोधी हैं।
-सैक्यूलर हिंदू विरोधी हैं।
-लिबरल्स हिंदू विरोधी हैं।
-वामी हिंदू विरोधी हैं।
-कांग्रेस सहित सारी गैर भाजपा विरोधी राजनैतिक दल हिंदू विरोधी हैं।
और तो और अभी तक भाजपा से कई गुना ज्यादा कट्टर हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना भी हिंदू विरोधी हो चुकी है।
ये एक कठोर सच्चाई है जिसे आप स्वीकार करें या न करें।
पर आपके मस्तिष्क में कभी ये सवाल आया है कि ऐसा क्यों है?
इसका मूल कारण है हमारा पाखंडी सामाजिक चरित्र।
जब हम धार्मिक रूप से प्रताड़ित होते हैं तो हम ‘बेचारे’ बन जाते हैं और रोने धोने लग जाते हैं लेकिन जहाँ ‘जाति’ की बात आती है वहाँ ‘शेर’ बन जाते हैं।
तीन उदाहरण देता हूँ-
1) कन्हैया कुमार जैसे घोषित देशद्रोही को लोकसभा में इतने वोट किस आधार पर मिले?
2)दिग्विजय सिंह जैसा खुलेआम मुस्लिम तुष्टिकरणवादी राघोगढ़ में कैसे जीत जाता है?
3)समाजवादी पार्टी का हिंदू विरोधी राजनैतिक आधार किस जाति पर टिका है?
दरअसल भाजपा ही नहीं बल्कि न्यायपालिका, प्रेस, प्रशासन सहित विपक्षी दलों को भी अभी इस बात पर भरोसा नहीं है कि हिंदू एकता नामक कोई ‘स्थिर कारक’ समाज में मौजूद है। वे यह मानते हैं कि यह तथाकथित ‘हिंदत्व’ केवल मु स्लिमों के हिंसक आतंकवादी चरित्र के आतंक से उपजा ‘अस्थाई सुरक्षाबोध’ है जिसके नीचे हिंदू अपने घोर नीच जातिवादी चरित्र के साथ अलग अलग फांकों के रूप में उपस्थित हैं और हाल के उत्तरप्रदेश चुनाव ने इसे आंशिक रूप से सत्य भी प्रमाणित किया है जहाँ भाजपा को पहले से कम सीटें मिलीं।
करौली सहित तमाम घटनाओं के बाद भी राजस्थान का मुख्यमंत्री पूरी बेशर्मी, धृष्टता और नीचता के साथ हिंदुओं को कोस रहा है तो किस बल पर? क्योंकि उसे पता है कि वह कुछ भी कितना भी हिंदू विरोधी आचरण कर ले ‘माली’ उसके पक्ष में खड़े रहेंगे।
जिस दिन हम अपने अपने समाज के नेताओं को चाहे वह किसी भी दल के हों, उन्हें उनके हिंदुत्व विरोधी आचरण व बयानों के लिए जाति बहिष्कृत करना सीख लेंगे उसी दिन न्यायपालिका, प्रशासन, पत्रकार, सभी कट्टर हिंदुत्ववादी बन जाएंगे और तब राजनैतिक दलों में कट्टर हिंदू दिखने की होड़ स्वतः प्रारंभ हो जाएगी।

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