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अग्निवीर योजना युवाओं के लिए सही या गलत

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#अग्निवीर योजना में युवाओं को अल्पावधि के लिए सेना में भर्ती करने पर दो प्रतिक्रियाएं दिखाई जो हिंदू मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती हैं.
एक की शिकायत थी कि युवा सिर्फ चार साल सेना में काम करेंगे, उनकी नौकरी परमानेंट नहीं होगी और उन्हे पेंशन भी नहीं मिलेगी.
यहां मूल समस्या है कि जॉब का अर्थ काम नहीं होता, नौकरी होता है. नौकरी यानि परमानेंट कामचोरी का लाइसेंस. तो भाई, ऐसे लोगों के लिए यूं ही फौज नहीं है. युवा चार साल काम करेंगे, चार साल के अंत में उनके पास दस बारह लाख रुपए होंगे, सेना में अनुशासन और दायित्व बोध के साथ काम करने का अनुभव होगा. 22-23 साल में वे एक सकारात्मक अनुभव के साथ बाहर आ जायेंगे, और किसी भी जॉब के लिए अपने समकालीनों से आगे खड़े होंगे. नहीं, नौकरी हुई तो परमानेंट क्यों नहीं हुई, पेंशन क्यों नहीं मिली. तीस साल तक बाप का तेल जला कर बाबूगिरी के लिए कॉम्पिटिशन की तैयारी कर लेंगे वह मंजूर है, पर फौज की नौकरी और अनुभव नहीं चाहिए.
दूसरी ओर यह प्रतिक्रिया सुनाई पड़ी कि कुछ लोगों को इससे हथियार चलाने का अनुभव और मुफ्त में आतंकवाद की ट्रेनिंग मिल जायेगी.
यह लीजिए, अगला वहां जाकर आतंक की ट्रेनिंग ले आएगा यह चिंता जरूर है, पर खुद आतंक से लड़ने की ट्रेनिंग नहीं लेनी है. जो व्यवस्था उसके लिए अवसर है, सुविधा है, वही आपके लिए घोर संकट है, नहीं? फिर रोएंगे कि आपके अस्तित्व पर संकट क्यों है… घटते मिटते क्यों जा रहे हैं…
सच यह है कि हिंदू मानस स्थाई रूप से शैशवावस्था में है. उसे माता का स्तन चाहिए, पिता की गोद चाहिए. खुद से खड़े होकर चलना नहीं है. उसे नौकरी, छोकरी, राशन पेंशन चाहिए, घर बिठाए सुरक्षा चाहिए…लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए खुद कुछ नहीं करना. फौज में जाने का अवसर मिले तो भी नहीं. यह विचार नहीं आता कि सेना अलग से कुछ नहीं होती, हम आप ही सेना में होते हैं. सुरक्षा अलग से कहीं मैन्युफैक्चर नहीं होती, हमें ही एक दूसरे की करनी होती. अगर लोगों को ऐसी एक योजना में भी पार्टिसिपेट करने की जगह खोट खोजना है तो सच यह है कि हम सर्वाइव करना डिजर्व ही नहीं करते.

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