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आज की हमारी कहानी बिलकुल जानी पहचानी

by आनंद कुमार
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आज की हमारी कहानी बिलकुल जानी पहचानी सी है। हो सकता है चिड़िया, गोबर और बिल्ली की इस कहानी को आपने पहले भी कई बार पढ़ा हो। इस कहानी में एक चिड़िया होती है। मौज-मस्ती करने वाली प्रसन्न रहने वाली चिड़िया थी। चहकती और इस डाली से उस डाली फुदकती रहती। कोई चिंता-फ़िक्र नहीं! लेकिन वसंत, गर्मी, बरसात का ही मौसम तो हमेशा रहता नहीं। जाड़े का मौसम भी आता है। तो जाड़ा आया और चिड़िया ने अपने बचाव के लिए न तो कोई बढ़िया घोंसला बनाया था, न ही खाने-पीने का कोई इंतजाम किया था।
बर्फ पड़ने लगी और चिड़िया उड़कर कहीं भाग भी नहीं पायी। आखिर ठण्ड से एक दिन वो बेहोश होकर पेड़ से नीचे गिर पड़ी। उसी वक्त वहाँ से एक गाय गुजर रही थी। उसने गिरी हुई चिड़िया पर कोई ध्यान नहीं दिया। उल्टा चिड़िया पर गोबर करके वो आगे चलती बनी। गोबर गर्म था, और उसकी गर्मी से चिड़िया की जान में जान आई। उसने अपने सर को झटका देकर गोबर से बाहर निकाला और जैसी कि उसकी आदत थी, लगी चहचहाने! उसकी आवाज एक बिल्ली ने सुनी और वो आवाज का पीछा करती गोबर तक आ पहुंची। उसने चिड़िया को गोबर में फंसा देखा तो उसे निकाला, और चाट-पोंछ कर उसे साफ़ करके चट कर गयी!
वैसे तो इस छोटी सी कहानी से हमें कई शिक्षाएं मिलती हैं। जैसे कि –
1. आपपर गोबर करने वाला जरूरी नहीं कि आपका शत्रु हो।
2. जो आपको गोबर से निकाल कर साफ़-सुथरा कर रहा है, वो मित्र ही हो ऐसा भी जरूरी नहीं।
3. जब गले तक गोबर में फंसे हों, तो गाने-चहचहाने के बदले अपनी चोंच बंद रखनी चाहिए।
जो भी हो, आज हम कहानी से दूसरी बातें भी याद दिलाने बैठे हैं। सबसे पहली बात तो जिन्होंने “गेम ऑफ़ थ्रोंस” देखी होगी, उन्हें याद आ गयी होगी। जैसे उसमें “विंटर इज कमिंग” कहकर चेताया जा रहा होता है, वैसा ही कुछ इस कहानी में भी है। ठण्ड कोई अचानक या पहली बार नहीं आ गयी थी। चिड़िया के पास पूरा मौका था इस बात की तैयारी करने का कि वो ठण्ड से निपट सके। बिलकुल वैसे ही जैसे दुर्गा-पूजा नजदीक आने पर हिन्दुओं को पता होता है कि सद्भावना समिति की बैठकें होंगी। पुलिस की गोली से विसर्जन में जाता कोई नवयुवक मर भी सकता है। बांग्लादेश में जो हो रहा है, वो पहली बार नहीं, न ही अंतिम बार है। बंगाल में करीब-करीब हर वर्ष ऐसा दिखता है। इसके वाबजूद क्या तैयारी की या चिड़िया की ही तरह आराम से इस डाली से उस डाली फुदकने और चहचहाने में समय बिताया?
जबतक आप इस सवाल पर सोचते हैं हम दूसरे गोबर से निकालने वाले मुद्दे पर आ जाते हैं। बिल्ली जैसा ही साफ़ करता दिखने वाला हर व्यक्ति मित्र नहीं होता। जैसे कि नवरात्रि पर केवल नारी का पूजन नहीं स्त्रियों का सम्मान भी करो, ऐसा कहने वाले होते हैं। या फिर पुतले को नहीं अपने अन्दर के रावण को मारो कहने वाला असल में बुराइयां दूर करने नहीं आया होता। जैसे बिल्ली का इरादा चिड़िया को चट कर जाने का था, वैसे ही ये लोग भी आपकी धार्मिक परम्पराओं को ऊपर-ऊपर से हटाकर आपको अपने मजहब-रिलिजन में चट कर जाना चाहते हैं। इसका ये मतलब भी नहीं है कि इनकी बात बिलकुल ही न सुनी जाए।
समाज के अन्दर ऐसे रावण होते हैं और उनका वध किया जाना भी आवश्यक है। हर बार वध का अर्थ हिंसा ही हो, ऐसा भी आवश्यक नहीं। समाज में नकारात्मकता फ़ैलाने वाले, हिन्दुओं के उत्सवों का समय नजदीक आते ही “वरच्यु सिग्नलिंग” करने वाले अनेकों आपको सोशल मीडिया पर मिल जायेंगे। इनके ट्वीट-पोस्ट इत्यादि को रिपोर्ट करके आप उन्हें फैलने से रोक सकते हैं। उसके बाद ये नकारात्मकता आपतक न पहुंचे इसके लिए इन्हें अनफॉलो कर सकते हैं। उन्हें किसी किस्म का प्रचार न मिले इसके लिए उनकी पोस्ट-ट्वीट पर कोई कमेंट-प्रतिक्रिया के बदले उसे जैसे का तैसा छोड़कर जो विरोध दर्शाना है वो अपनी वाल पर कर सकते हैं।
गोबर कर जाने वाला हर कोई शत्रु ही नहीं होता, ये समझना भी यहाँ जरूरी है। वो आमतौर पर आपके पक्ष का था, गोबर करने वाली गाय जैसा ही सज्जन प्रवृति का कोई अपना था या विपक्ष का, ये भी देखा जा सकता है। थोड़ी देर गर्मी लेकर जान बचाई जा सकती है तो आवश्यक नहीं कि उसके विरोध में झंडा उठाया ही जाए। हर मोर्चे पर लड़ने और ख़ास तौर पर अपने ही पक्ष के लोगों से लड़ने का कोई फायदा नहीं होता। अपने अन्दर के रावण को मारने का ये अर्थ भी लिया जा सकता है कि रावण के दरबार की तरह दूत की पूँछ में आग लगाने की कोशिश न की जाए। बल्कि राम दरबार की तरह धोबी जैसे साधारण माने जाने वाले लोगों की बात भी सुनी जाए।
नवरात्रि और विजयदशमी कई बातें बता जाती हैं और कभी कभी लगता है कि श्री दुर्गा सप्तशती के कीलक स्तोत्र में आये “स्तूयते सा न किं जने” (लोग आपकी स्तुति क्यों नहीं करते) जैसा ही इस ग्रन्थ को न पढ़ा जाना आश्चर्य का विषय है। आप सभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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