आप माने न माने मोदी ने सात वर्षों में भारतीयों के सोंचने की दिशा बदल दी.
पूर्व में जहां हमारे हीरो अकबर, शाह जहां, टीपू सुल्तान होते थे. बस सात वर्षों में महारानी अहिल्या बाई, रामनुजाचार्य, आदि शंकराचार्य जैसे महा पुरुषों के स्मारक बने और इन्हें वह सम्मान मिले जिससे इन्हें दसकों वंचित रखा गया.
पूर्व में इतिहास के नाम पर हम ताज महल, लाल क़िला तक सीमित थे. विगत सात वर्षों में अयोध्या, काशी, केदारनाथ जैसी अनगिनत जगहों और पूर्वजों की विरासत को सम्मान मिला.
पूर्व में आज़ादी गांधी बाबा के चरखे और नेहरू चिचा के कोट तक सीमित थी. सुभाष, पटेल जैसे आज़ाद भारत के योद्धाओं को सम्मान मिला.
पूर्व में 2012 में अखिलेश ने वादा किया था कि वह सत्ता में आए तो जेल से सारे आतंकवादियों को रिहा कर देंगे. हमारे लिए यह सामान्य बात थी, उल्टे ढेरों लोग आतंकवादियों को हीरो मानते थे, अखिलेश चुनाव जीते जनता के वोट से और आते ही सबसे पहला आदेश दिया आतंकियों को रिहा करने का. 2022 में ऐसा कोई नेता बोल दे तो जनता उसे दौड़ा कर पाकिस्तान छोड़ आएगी.
सामान्य हिंदू अपने तीज त्योहार छोड़ ईद की सेंवई और क्रिसमस के केक तक में मस्त था. अब वाराणसी की देव दीपावली, अयोध्या की दीपावली, बरसाना की होली, आदियोगी के साथ शिवरात्रि में भक्ति भाव जाग्रत होता है.
और सबसे महत्वपूर्ण यह कि जमाने थे जब देश के नेता गोल टोपी पहन रोज़ा इफ़्तार की दावतें उड़ाते थे. अब वही नेता जनेओ पहन खुद को जनेओधारी ब्राह्मण घोषित करते हैं.
वाक़ई आप मोदी को पसंद करें या नापसंद, सात वर्षों में देश के सोचने का तरीक़ा और देश के आदर्श बदल गए हैं.