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आईएएस के मॉक इंटरव्यू की प्रैक्टिस कर रहा था।
शुरूआत में दस पंद्रह दिन करंट अफेयर सामान्य जीके, हर इंटरव्यूअर की बैकग्राउंड आदि के हिसाब से फैक्ट्स नोट कराकर प्रैक्टिस शुरू हुई।
सारा माहौल वैसा ही क्रिएट करके सर एक एक को बुलाकर इंटरव्यू प्रैक्टिस कराने लगे। बाकी इन्टरव्यूर्स को उसे देखकर कमियां व खूबी नोट करने को कहा गया।
इधर दस पंद्रह दिन में ही अपनी बड़ी तुर्रम खां की छवि बन गई जिसे बहुत कुछ आता था।
सर ने सबसे पहले मुझे ही कॉल किया।
बाकायदे दरवाजे की एंट्री, अभिवादन और सिटिंग्स आदि सब ठीक ठाक रहे। मैं कॉन्फीडेंस के साथ बैठ गया।
उन्होंने नाम, बैकग्राउंड आदि पूछने के बाद कहा, मोरैना से हो, चंबल से?
“जी सर!”
“वही एरिया न जो डाकुओं के लिए बदनाम है?”
“नहीं सर! एक्चुअल में बदनाम ज्यादा है लेकिन वे डाकू ऐसे नहीं थे…”
“तो संत थे? डाके नहीं डालते थे??” उन्होंने मेरी बात पूरी नहीं होने दी।
“नहीं सर वो हालात के मारे…गरीबी….” मैंने सफाई दी।
“तो तुम सिलेक्ट न हुये या घर में गरीबी होगी तो डाकू बन जाओगे?”
“नहीं सर वो उनके साथ अन्याय हुआ इसलिये…”
“तो बदला लेना जायज है? चलो फिर अभी तक डाकू क्यों हैं??”
…….
…..
तो भाई पूरे पैनल ने ऐसा धोया, ऐसा धोया कि थोड़ी देर बाद साथी और साथिनियों की खी..खी.. सुनाई देने लगी।
भरपूर धुलाई करने के बाद उन्होंने समझाया।
1-तुम किसी विचार, व्यक्ति, पद, संस्थान, जाति, क्षेत्र, धर्म के ठेकेदार नहीं हो इसलिए लोड मत लो अगले की बात का।
2-अगला कोई तुमसे संबंधित कोई कड़वा सच बोले उसे स्वीकार कर लो उसके अगले आरोप और तुम्हारी छीछालेदर दोंनों खत्म।
3-कभी किसी ऐसे व्यक्ति को सफाई मत दो जिससे तुम्हें न लाभ हो न हानि वरना लाभ तो नहीं ही होगा हानि की संभावना बन जाएंगी।
4-इंटरव्यू को अपने फील्ड में खींचकर लेकर आओ।
अगले चार दिन बाद मेरा नंबर फिर से आया।
“देवेन्द्र? है ना??”
“जी सर!”
“ये देवताओं के राजा को कहते हैं न? बड़ा विलासी टाइप का कैरेक्टर था न।”
“जी सर कई काम ऐसे किये तो थे।”
“इस नाम से तुम्हें कोई इन्फीरियोरिटी नहीं होती कि ऐसे आदमी के नाम पर…..”
“नो सर, एक संज्ञा है लाइक फोन नंबर!”
“फिर भी वो अहिल्या वगैरह! है न? पेरेंट्स ने क्या सोचकर ये नाम रखा होगा?”
एक सैकिंड को रियल में सुलग गया लेकिन फिर जवाब दिया, “मैं इसमें क्या बता सकता हूँ, मैंने पूछा नहीं, उन्होंने बताया नहीं।”
उसके बाद विषय आदि के सवाल, सब बढ़िया गये। उन्होंने बहुत तारीफ भी की बाद में।
उस टर्न में मेरे टॉपर से पांच नंबर कम थे। मैंने पूछा कि सर मेरे जवाब सारे सही थे फिर पांच नंबर कम क्यों?
“तुम्हारे पेरेंट ने तुम्हारा नाम रखने वाले सवाल पर तुम जो लाल भभूका हुये थे ना, उसके कट गए।”
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दोस्तो, वे यही करते हैं। वे तुम्हें उकसा रहे हैं ताकि फोकस वाराणसी सहित देश भर में तोड़े गये मंदिरों से हटकर शिवलिङ्ग के अर्थ पर आ जाये और आप एग्जेक्टली वही कर रहे हो।
वो तो भला हो सरकार का कि चैनल इस विषय को टच ही नहीं कर रहे वरना इस अकादमिक बहस में वे दौड़ा दौड़ाकर घसीटकर मारते।

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