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इतिहास_का_प्रतिशोध | प्रारब्ध

लेखक - देवेन्द्र सिकरवार

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मैं कृष्ण के कर्म सिद्धांत में अटल विश्वास रखता हूँ और यह सिद्धांत कहता है कि केवल बाहरी भौतिक कर्म ही नहीं बल्कि मानसिक विचार भी उसी अनुपात में आपको फल देते हैं।
जिस औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ के शिखर तुड़वाकर वहाँ अवैध गुम्बद बनवा दिए वहीं इस नंदी की मूर्ति को क्यों छोड़ दिया?
मूर्ति तो इस्लाम मे हराम है तो इसे क्यों नहीं तोड़ा?
न सही औरंगजेब, बाद के मुस्लिम तो तोड़ सकते थे, हटा सकते थे पर न तोड़ी और न हटाया उसे। क्यो?
मैं बताता हूँ।
हिंदुओं को जलील करने के लिए,
कि देखो इस नंदी को, अपने भगवान के प्रिय गण को जो हमारे अल्लाह के सामने अपने स्वामी के इंतजार में बैठा है और बैठा ही रहेगा।
कि देखो डंके की चोट पर यह घोषणा करते है कि हमने अपनी हर मस्जिद तुम्हारे मंदिरों को तोड़कर बनाई है और तुम न तब कुछ कर पाए और न अब कुछ कर पाओगे।
पर कृष्ण के कर्मसिद्धांत को ये भूल गए।
जिस नंदी को बृहत् हिंदू समाज के अपमान के लिए रख छोड़ा था अब वही तुम्हारे गले की फांस बन गया है।
इसे तुम न हटा सकते हो न नकार सकते हो।
अब हर पल तुम्हें तुम्हारी नीचताओं का स्मरण कराएगा और जब तुम जलील हो होकर दहाड़े मारकर रोते हुए मरोगे या घर वापसी करोगे तब तुम्हे पता लगेगा कि तुमने नंदी को नहीं अपने काल को रख छोड़ा था।
शताब्दियों से इस नंदी के कान में बाबा विश्वनाथ के धाम को पुनः प्राप्त करने की भक्तों की प्रार्थनाएं अब फलीभूत होने जा रही हैं।
पापी मलेच्छो तुम्हारे कर्मों का चक्र अब पूरा हो चुका है।

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