Home विषयसामाजिक इश्क की कोई परिभाषा नहीं होती

इश्क की कोई परिभाषा नहीं होती

Dayanand Pandey

303 views

महिलाएं जब इश्क करती हैं तो समझ आता है पर जब इश्क पर बात करती हैं तो हंसी आती है । इश्क करने के लिए है , बतियाने के लिए नहीं । इश्क की कोई परिभाषा नहीं होती । इश्क का कोई एक सेटिल्ड ला नहीं है । कि ऐसे करो तो होगा , वैसे नहीं होगा । इश्क की कोई एक राह नहीं होती । यह हाई वे भी हो सकता है , पगडंडी भी , गड्ढे वाली सड़क भी , कोई तंग गली भी , खेत भी , तालाब भी , बाग़ भी , आकाश , धरती , पानी कोई भी राह दे सकता है । हवा भी । चांद , तारे , सूरज भी

हो सकता है कोई भी राह न दे । सारे रास्ते बंद हो सकते हैं । घुप अंधेरे में भी राह मिल जाती है । चाह और राह में फ़ासला हो भी सकता है , नहीं भी । इश्क सेक्स नहीं है कि ऐसे भी हो सकता है और वैसे भी या कैसे भी । इश्क तो जगजीत सिंह की गाई कोई ग़ज़ल सुन कर भी हो सकता है । लेकिन इश्क जगजीत सिंह की गाई ग़ज़ल भी नहीं है ।

इश्क तो तकिए पर टूटा हुआ बाल भी नहीं है कि कभी मिल जाता है , कभी नहीं मिलता। इश्क काजल की धार भी हो सकती है , उन्नत वक्ष भी , दिल की तरह धुकुर-पुकुर करता किसी का नितंब भी हो सकता है , किसी की आवाज़ भी , अंदाज़ भी । या ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता है । इश्क तो गिलहरी है । इश्क तो बुलबुल है , कोयल भी , तितली भी । कब कहां गा दे , गुलाब के कांटे की तरह कब चुभ जाए , कौन जानता है ।

तुम भी नहीं , हम भी नहीं । लता मंगेशकर भी नहीं । इश्क एक अनबूझ यात्रा है । बूझ , समझ कर नहीं होती यह यात्रा। यह तो बस हो जाती है तो हो जाती है । नहीं होती तो नहीं होती । होती रहती है तो आनंद है । अलौकिक आनंद । वह एक मिसरा भी है न , इधर तो जल्दी-जल्दी है , उधर आहिस्ता-आहिस्ता । तो आहिस्ता-आहिस्ता भी एक फैक्टर है और जल्दी-जल्दी के भी क्या कहने । बस अपनी-अपनी सहूलियत है और अपना-अपना सलीक़ा ।

प्रेम हल्दीघाटी या पानीपत की लड़ाई भी नहीं है । यहां कोई तर्क काम नहीं आता । कुछ लोगों का शगल ही है बतिया कर ही रह जाना , सुन कर मजा लेना । बहुत से लोग थियरी से काम चलाते हैं , प्रैक्टिकल में उन की दिलचस्पी या क्षमता नहीं होती । अपना-अपना शौक है , अपनी-अपनी क्षमता ।

Related Articles

Leave a Comment