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उदारवादी मुसलमान

by राजीव मिश्रा
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सऊदी अरब के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ने इस्लाम में सुधारों की कुछ खुसफुसाहट की… अपुष्ट हदीसों को हटाने की बात की.. और दुनिया भर के धिम्मियों और सेक्युलरों को खुशी के मारे सन्निपात हो गया… मसीहा आ गया. वह मुसलमानों में नौकरियों, EMI, वाशिंग मशीनों की, और क्लासरूम में महिला सहपाठियों की चाहत जगा देगा..सब कुछ ठीक हो जाएगा, चुप रहो मूर्ख संघियों…

क्या MBS इस्लाम में सुधार कर पायेगा?

उत्तर है, नहीं!

दुनिया ने खरबों डॉलर खर्च करके, हज़ारों जिन्दगियाँ कुर्बान करके उन्हें अफगानिस्तान में नौकरियाँ, EMI, वाशिंग मशीन और लड़की क्लासमेट देने की कोशिश कर के देख लिया…और वे पहले मौके पर सब छोड़ कर हदीस पढ़ाने वाले मुल्लों के पास चले गए.

MBS के पास क्या है जो अमेरिका के पास नहीं था? बल्कि उससे एक कदम पहले, MBS इस्लाम में सुधार क्यों करना चाहता था?

वह इस्लाम में सुधार इसलिए चाहता है क्योंकि उसके तेल के पैसे खत्म हो रहे हैं. आज भी उसकी रेत के नीचे तेल है लेकिन अब दुनिया की उसपर निर्भरता धीरे धीरे कम हो रही है. MBS को पता है कि उसका खानदान उन्हीं हदीस रटने वाले मुल्लों को खरीद कर सत्ता में बना हुआ है. उसने समझ लिया है कि जब पैसे नहीं रहेंगे तो उसके पूरे खानदान को अपना सर कटने से बचाने के लिए भागकर स्विट्ज़रलैंड जाना पड़ेगा. बिना तेल के, पैसा सिर्फ कैपिटलिज्म से आ सकता है. और कैपिटलिज्म इस इस्लामिक कबाइली मनोवृति के बीच पनप ही नहीं सकता जहाँ आपको जो चाहिए, वह व्यापार में पाने की बजाय छीन कर ले सकते हों. तो कैपिटलिज्म के लिए इस मनोवृति को कमजोर करना होगा, यानि इस्लाम को डाइल्यूट करना, या सुधारना होगा.

पर मुल्ले को सुधरा हुआ इस्लाम नहीं चाहिए, ताकत चाहिए. पैसे की बात है तो उसका पैसा जकात से आ ही जायेगा. साथ ही 9 साल की बच्चियों की निर्बाध सप्लाई भी सुनिश्चित है, जब तक उसके पास उस हर आदमी का सर काटने की ताकत है जो उसे जकात और अपनी नौ साल की बच्ची देने से इनकार करता है. तो मुल्लों के पास MBS के साथ चलने की क्या मजबूरी है? कोई नहीं…

अब आखिरी सवाल – एक आम मुसलमान किसके साथ जाएगा… प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ या मुल्लों के साथ?

एक मुल्ला कहता है कि अगर एक आदमी ने तीन बार तलाक बोल दिया है तो मर्जी होने पर भी वह अपनी बात वापस नहीं ले सकता. वह उसके साथ फिर से नहीं सो सकता जबतक वह किसी और के साथ सोकर ना लौटे. और मुस्लिम उसकी बात मानते हैं. उसके कहने से वे अपनी पत्नी को किसी और के पास सोने के लिए भेज देते हैं… कोई शक बचा कि वे उसकी हर बात मानेंगे?

और अगर अब भी शक बाकी है, तो आपकी मर्जी…जिम्मेदारी आपकी होगी जब आप दिल्ली से भाग रहे होंगे पर भाग नहीं पाएँगे क्योंकि भागने के सारे रास्ते उन लोगों से भरे होंगे जो आपकी ही तरह इस गलतफहमी के शिकार होंगे.

राजीव मिश्रा

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