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उप्र में 2017 के चुनाव में भाजपा को 312 सीटें मिली थीं

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उप्र में 2017 के चुनाव में भाजपा को 312 सीटें मिली थीं और सपा को केवल 47।

 

उप्र में पिछले कई दशकों से कांग्रेस पूरी तरह साफ है। 2019 के चुनाव में अमेठी से खुद राहुल गांधी की भी हार हुई। मायावती पिछले पांच सालों से लगभग मौन व्रत धारण कर चुकी है, अगर कुछ बोलती भी है तो भाजपा के पक्ष में ही बोल रही है। विपक्ष के नाम पर ले देकर केवल अखिलेश यादव जैसा नेता ही सामने था, जिसकी सरकार में सपा का गुंडाराज ही प्रदेश की पहचान था और परिवारवाद ही समाजवाद था।
जबसे 2017 में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने, तो अपराधियों के खिलाफ आक्रामक एक्शन हुआ, कानून व्यवस्था सुधरी, बुलडोजर चला, बड़े बड़े राजनैतिक गुंडे भी जेल गए, राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, काशी में विश्वनाथ मंदिर का कॉरीडोर बना, प्रदेश में कई नए उद्योग लगे, राज्य की छवि बदली, कोविड काल में बड़े पैमाने पर मुफ्त राशन और अनाज बंटा और भी न जाने क्या क्या काम हुए।
इतने बढ़िया ट्रैक रिकॉर्ड के बाद तो एकतरफा परिणाम आना चाहिए था और भाजपा को पिछले चुनाव के समान ही बम्पर सीटें मिलनी चाहिए थी।
लेकिन आप 2017 से तुलना करें, तो भाजपा की 57 सीटें कम हो गई हैं और सपा की 64 बढ़ गई हैं। योगी के कारण भाजपा की सरकार भले ही वापस आ गई है लेकिन पिछले और इस चुनाव की सीटों की घट-बढ़ का हिसाब लगाकर सोचिए कि कौन फायदे में रहा।
ये सही है कि इस एक चुनाव की जीत से योगी जी ने पिछले तीन दशकों के बहुत सारे समीकरण उलट-पलट कर दिए हैं। उप्र जैसे राज्य में पूर्ण बहुमत के साथ पुनः जीतकर आना कोई छोटी बात नहीं है। यह भी सच है कि यह जीत हजारों लोगों को निःस्वार्थ परिश्रम का परिणाम है। इसलिए वे सब अपनी जीत की खुशी मनाने के हकदार हैं।
लेकिन मैं केवल इतना याद दिलाना चाहता था कि जीत के उत्साह में वास्तविकता को भूल मत जाइए। आपको राह जितनी आसान लग रही है, उतनी है नहीं। 2024 का लोकसभा चुनाव बहुत कठिन होने वाला है। सादर!

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