Home लेखक और लेखदेवेन्द्र सिकरवार एक गर्जना गूंजी और स्वयं मुस्लिम सैनिकों के पैर ….

एक गर्जना गूंजी और स्वयं मुस्लिम सैनिकों के पैर ….

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दूर क्षितिज से नगाड़ों की मद्धिम आवाज धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी।
युद्धरत हिंदू और मुस्लिम सैनिकों के कान खड़े हो गए।
और फिर क्षितिज पर एक काला धब्बा सा उभरा।
काला धब्बा बड़ा होने लगा मानो एक काला बादल हो।
अब क्षितिज पर पर एक गहरा काला लबादा लहराने लगा।
ऐसा लग रहा था मानो नगाड़ों की आवाज के साथ एक चट्टान युद्धभूमि की ओर सरक रही हो।
एक पहाड़,
‘काला पहाड़’
काला पहाड़…..काला पहाड़…..काला पहाड़….

मुस्लिमों में जोश की लहर दौड़ गई और जीतते हुये हिंदू सैनिको में एक अनजाना भय व्याप्त हो गया।
मनोवैज्ञानिक पराजय हो चुकी थी।
हिंदू सैनिक जीतकर भी हार गए।
“इलाके के सारे मंदिर तोड़ दो, हर हिंदू को कत्ल कर दो जो इस्लाम कुबूल करने से इनकार करे।” एक गर्जना गूंजी और स्वयं मुस्लिम सैनिकों के पैर डर से काँप गये।

16वीं शताब्दी ई.
पूर्वी भारत में सुलेमान काररानी के नेतृत्व में अफगान सल्तनत का विस्तार हो रहा था।
इस पत्थरदिल धर्मांध अफगान सुल्तान की एक ही कमजोरी थी उसकी खूबसूरत बेटी गुलनाज जिसका दिल आ गया सुल्तान के एक जवान खूबसूरत ब्राह्मण सैनिक कालाचंद राय भादुरी पर जिसे कई जगह राजीबलोचन राय भादुड़ी भी बताया गया है।
बेटी के मोह में सुल्तान विवाह के लिए मान गया पर शर्त रखी कि कालाचाँद को इस्लाम कुबूल करना होगा। गर्विष्ठ हिन्दू ने स्पष्ट मना कर दिया और फिर विवश होकर सुल्तान को अपनी बेटी एक हिंदू को हिंदू के रूप में हिंदू विधि से ब्याहनी पड़ी।
पर कोई कहाँ जानता था कि ये विवाह कालाचाँद राय के साथ-साथ पूरे पूर्वी भारत पर बहुत भारी पड़ने वाला था।
उसके अन्य दो पत्नियों व पूरे परिवार ने भी गाँव के कट्टर शास्त्रवादी ब्राह्मणों के दवाब में उसे मलेच्छ कन्या के स्पर्श के कारण पतित घोषित कर दिया।
वह रोया..
बहुत गिड़गिड़ाया कि उसने इसलाम कुबूल नहीं किया लेकिन उसका बहिष्कार जारी रहा।
उसके दादा के अनुरोध पर उसे प्रायश्चित्त का आदेश दिया गया और प्रायश्चित्त के रूप में सात दिन के उपवास के बाद पुरी के ब्राह्मणों से क्षमायाचना करने का आदेश हुआ।
सात दिन का भूखा प्यास सैनिक पुरी पहुँचा लेकिन उससे पहले पहुँच गई उसकी विवाह गाथा।
पुरी के पुजारियों ने केवल शाब्दिक तिरस्कार ही नहीं किया बल्कि उसे बुरी तरह अपमानित किया व प्रायश्चित्त को अस्वीकार कर म्लेच्छ घोषित कर दिया।
वह दलित नहीं था और न ही बेचारा शूद्र कि सारे अपमान चुपचाप सहन करके, सिर नीचा करके सड़क बुहारने लग जाता।
वह श्रेष्ठ कुलोत्पन्न ब्राह्मण था।
प्रतिशोध की अग्नि दहक उठी।
कालाचाँदराय भादुड़ी मर गया और उसकी राख से जन्मा
—————–काला पहाड़————–
उसने लौटकर इस्लाम कुबूल किया और अपने शरीर पर काले वस्त्रों के साथ धारण किया एक काला लबादा, प्रतिशोध का लिबास।
सबसे पहले पुरी, फिर कोणार्क, कोच बिहार, तेजपुर..
उसकी जिंदगी का एक ही मकसद, एक ही धुन..
धरती से हिंदुओं का खात्मा।
पूर्वी भारत में हत्याओं, बलात्कार, मंदिर विध्वंस और धर्मपरिवर्तन का ऐसा तूफान उठा कि उसके जाने के बाद भी लोग काला पहाड़ शब्द सुनकर कांप उठते थे।
काला पहाड़ ….एक मुस्लिम?
नहीं!
काला पहाड़…..शास्त्रवादी मूर्खों का सताया एक प्रतिशोधी हिंदू!
दुर्भाग्य यह है कि शास्त्रवादी आज भी काला पहाड़ तैयार कर रहे हैं।
अंत में एक प्रश्न-
जब कालाचाँदराय भादुड़ी को काला पहाड़ बनाया जा रहा था तब गोवर्द्धन पीठ के तत्कालीन पुरी शंकराचार्य क्या कर रहे थे?

देवेन्द्र सिकरवार

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