एमएलसी चुनाव के नतीजे आ गये हैं. भाजपा की 36 में 33 सीटों पर जीत हुई है. तीन जगहों पर निर्दलीय प्रत्याशी विजई हुवे. सपा का खाता भी नहीं खुला.
सच है यह चुनाव पूरी तरह से सत्ता और धन बल बाहु बल के चुनाव होते हैं. यद्यपि सपा के पास सत्ता नहीं है, पर धन बल / बाहु बल पर्याप्त है. अभी विधान सभा चुनाव में ही दिखा. सबको पता था ज़्यादातर सीटें भाजपा जीतेगी पर सपा का खाता भी न खुलेगा, अधिसंख्य जगहों पर ज़मानत तक ज़ब्त हो जाएगी यह किसी ने न सोंचा था.
इन चुनावों में इलेक्टेड प्रतिनिधि अर्थात् bdc, प्रधान आदि वोट डालते हैं. ज़ाहिर सी बात है वह इतने समझदार और ताक़त वर होते हैं कि अगर वह सपा को वोट डालना चाहें तो पक्का ही डाल लेंगे, बूथ के अंदर क्या हुआ किसे पता चलेगा (कंडीशंस अप्लाइड). पर दीवार पर जो लिखा है वह क्लीयर है कि जनता भले ही कन्फ़्यूज़न में हो, उसके नेता जैसे ग्राम प्रधान, bdc आदि को कोई कन्फ़्यूज़न नहीं. उन्हें पता है सपा का भविष्य नहीं.
सपा के उम्मीदवार ज़्यादातर जगहों पर टिपिकल सपाई थे. जातीय मानसिकता से युक्त धन बली / बाहु बली. जनता तो उनके जाने का इंतज़ार कर ही रही थी, मज़ेदार यह रहा कि उन्हें उनकी जातियों के भी वोट न मिले. उनकी जाति के नेताओं को भी पता है कि केवल मज्जबी वोट और यादव वोट के सहारे नैय्या पार नहीं लगनी. नेताओं को ज़मीन की समझ होती है. जनता भले ही छद्म जातीय आधार पर बहक जाए पर नेता सोंच समझ वोट डालते हैं. यादवों में उनके नेताओं ने भाजपा के पक्ष में वोट डाले.
मज्जबी भाइयों से न उम्मीद थी न उनका वोट पैटर्न अनलाइज करना चाहिए. सपा को इस बार केवल मज्जबी वोट मिले और उन वोटों की औक़ात बस इतनी होती है कि ज़्यादातर जगहों पर ज़मानत तक न बची.
ओवेराल इन परिणामों को जनमत तो नहीं माना जाता, पर सपा के लिए यह निश्चय झटका है. जो उनकी मज़बूती मानी जाती थी धन बल / बाहु बल, उन चुनावों में खाता तक न खुल पाया.