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काशी : एक धार्मिक स्थल

by Nitin Tripathi
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काशी मुझे बहुत प्रिय है। कुछ स्पेशल है उधर। मुझे भीड़ भाड़, शोर, गंदगी बिल्कुल पसंद नहीं। काशी मे इस सबकी अधिकता है। फिर भी काशी मे इस सबके बावजूद आध्यात्मिक शांति महसूस होती है। है वाकई मोक्ष की नगरी। 2018 में देव दीपावली मे काशी गया। दशश्वमेघ घाट से असी घाट तक लगता है स्वर्ग धरती पर उतार आया। मणिकर्णिका घाट पर एक ओर ढेर सारी चिताएं जल रही थीं, तो वहीं भव्य लाइटिंग के बीच कुछ लोग मृदंग बजा रहे थे तो एक कोने मे एक औघड़ एक विशाल काय डमरू बजा रहा था। गंगा नदी मे नाव पर बैठ रोंगटे खड़े हो जाते हैं इस मृत्यु के उत्सव को देख। यह काशी में ही संभव है।
प्रातः काशी विश्वनाथ दर्शन के लिए गया। चूंकि देव दीपावली थी तो भीड़ थोड़ी ज्यादा थी। मन खिन्न हो गया। पूरे भारत के मंदिर गया हूँ। जीवन में इससे ज्यादा अव्यवस्था किसी और मंदिर मे न देखी थी। बहुत पतली गलियों मे लंबी सी लाइन। लाइन मे भी जगह जगह दलाल परेशान करते हुवे कि वह जल्दी दर्शन करा देंगे। हर कदम पर दुकाने और दुकानों के बाहर खड़े दलाल भक्तों को लगभग घसीटते हुवे कि असली मंदिर उनकी दुकान के अंदर है। बहुत पतला संकरा सा मंदिर का रास्ता, जिसमें नाली भी बह रही है और प्रसाद भी। गर्भ गृह के अंदर खड़े चार पुलिस वाले जो हर दर्शन करने वाले को बाई डिफ़ॉल्ट पीट रहे थे। एक पुलिस वाला हर महिला को गोद मे उठा उठा बाहर कर रहा था। फिर उसे महिलायें पीटने लगी। उन महिलाओं को बाकी पुलिस वाले पीटने लगे। इन सबके बीच दर्शनार्थियों को पीटने के लिए दो नए पुलिस वाले आ गए। संक्षेप मे बिल्कुल तांडव मचा हुआ था।
भक्ति अपनी जगह, पर यदि आप सामान्य मनुष्य हैं तो अपनी डिग्निटी इतनी कमजोर नहीं कर सकते कि पिटते मोलेस्ट होते हुवे दर्शन करें। काशी सभी मोक्ष हेतु ही नहीं आते, 99% लोग सामान्य दर्शन हेतु ही आते हैं। हाथ जोड़ लिए कि भोले बाबा काशी आपकी नगरी है, यहाँ तो आना होगा, पर इस तरह के दर्शन को दूर से ही प्रणाम। यह मेरा हाल था तो आप समझ सकते हैं वह जो पहली बार ऐसी किसी जगह आया हो, बचपन की पहली ऐसी ट्रिप हो, विवाह पश्चात पत्नी को लेकर आया हो, उसके क्या भाव होंगे और क्या वह दुबारा आएगा?
शिकायत करने पर मैनेजमेंट का भी point जेनयून था। चार फुट की गलियों मे लाखों श्रद्धालु पचास वर्ग फुट के मंदिर मे जा बाहर निकलते हैं। इस भीड़ को लगातार चलाते रहना है अन्यथा कोई भी अनहोनी हो सकती है।
वर्ष 2021 मे फिर से काशी गया। अब काशी गए हैं तो मन तो न मानेगा कि दर्शन न करें। इस बार तो बिल्कुल छटा ही निराली थी। सर्व प्रथम तो कारीडोर ही भव्य था। न वो गलियाँ थीं न वो दुकानों वाले मंदिर। भीड़ थी, पर चौड़े रास्ते थे, कई सारे exit point थे। गर्भ गृह से बाहर निकलते ही अनुष्ठान आदि करने के लिए विशेष पांडाल बन चुके थे जहां हजारों लोग दर्शन पश्चात अनुस्थान कर रहे थे। दर्शन अच्छे से हुवे क्योंकि अब अंदर जाते समय और बाहर निकलते ही खुली जगह थी जहां भीड़ मैनेज हो सकती थी। बताया गया कि अन्नपूर्णा माता के दर्शन के लिए तो अब अलग गेट ही बन रहा है, जिसे उधर दर्शन करना है इस लाइन मे आने की जरूरत नहीं। अंदर ही कैंटीन, लाइब्रेरी, म्यूजियम, धर्म शाला का निर्माण भी हो रहा था। जाहिर सी बात है कि पहले जिस कैंपस मे सौ श्रद्धालु नहीं रुक सकते थे, अब लाखों रुक सकते हैं तो वाकई शांति से बैठ दर्शन भी हो सकते हैं, पूजा अनुष्ठान भी।
आज मोदी जी काशी कारीडोर का उद्घाटन कर रहे हैं। अगर व्यक्तिगत रूप से कोई मेरी राय ले, तो काशी को फिर से सामान्य हिंदुवों के दर्शन लायक बनाने के लिए उनका नाम युगों युगों तक लिया जाएगा। मोदी जी कि हिन्दुत्व को सबसे बड़ी देन यही है कि उन्होंने हिन्दुत्व को सुलभ बनाया, पुजारियों और दलालों की गलियों और घरों मे छिपी भक्ति को आम जनता तक पहुंचाया।

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