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किसी भी राष्ट्र को निर्धनता हटाने के लिए आय

by अमित सिंघल
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संयुक्त राष्ट्र की किसी भी रिपोर्ट को पढ़ लीजिये। लिखा होता है कि किसी भी राष्ट्र को निर्धनता हटाने के लिए आय, घर, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, बिजली-पानी, भोजन उपलब्ध करवाना, कानूनी पहचान दिलवाना, एवं कुपोषण समाप्त करना इत्यादि विषयो पर कार्य करना होगा। केवल आय बढ़ा देने से निर्धनता गायब नहीं हो जाएगी।
इस सप्ताह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के एक लेख में आंकड़ों द्वारा प्रूव किया गया है कि भारत से भीषण निर्धनता समाप्त (जनसँख्या का एक प्रतिशत के नीचे) हो गयी है।
साथ ही, भारत में असमानता वर्ष 2017 से कम हो रही है तथा वर्ष 1993/94 के बाद सबसे निचले स्तर पर है। रिपोर्ट के लेखक सुरजीत भल्ला, अरविन्द विरमानी एवं करण भसीन है और इन तीनो ने भारत में निर्धनता उन्मूलन एवं असमानता कम होने के लिए मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेवार माना है।
मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि मोदी सरकार के द्वारा निर्धनता एवं आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय NGOs जानबूझकर संज्ञान में नहीं लेता है।
आज जिस निर्धन को घर मिल रहा है, वह उसी समय दो से तीन लाख की संपत्ति का स्वामी हो जाता है। जब उस घर में बिजली, नल से से जल, शौचालय की व्यवस्था की जाती है, वह बहुआयामी निर्धनता को समाप्त करने में मदद करता है। लगभग सभी नागरिको के पास बैंक अकाउंट है; एक वैधानिक पहचान (आधार) है। मुद्रा लोन इत्यादि के द्वारा करोड़ो नागरिको को धन दिया जा रहा है। आयुष्मान से स्वास्थ्य संकट के समय वित्तीय मदद दी जा रही है। अपनी योजनाओ के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी वृहद स्तर पर धन का ट्रांसफर निर्धनों की तरफ कर रहे है।
एक अन्य उदहारण लीजिए। एक NGO द्वारा बनाये गए अंतराष्ट्रीय भ्रस्टाचार सूचकांक के अनुसार, वर्ष 2013 में 177 देशो की सूची में भारत 94 वीं पायदान पर था, जो इस वर्ष जारी हुए सूचकांक में, मोदी सरकार के समय में, भारत अब 180 देशो की सूची में 85 वीं पायदान पर चढ़ गया है। यद्यपि इस सूचकांक को भारतीय मीडिया ने इग्नोर कर दिया।
चीन 66 वीं सीढ़ी पर है।
रिपोर्ट एक्सप्लेन करती है कि भारत में भ्रस्टाचार की स्थिति चिंताजनक है क्योकि भारत के लोकतांत्रिक स्टेटस पर प्रश्नचिन्ह है। सरकार के विरूद्ध बोलने वाले NGO को सुरक्षा, मानहानि, देशद्रोह, अभद्र भाषा और अदालत की अवमानना के आरोपों और विदेशी फंडिंग पर नियमों के साथ निशाना बनाया गया है।
लेकिन यही रिपोर्ट चीन में भ्रष्टाचार कम होने की प्रशंसा करती है और उस देश में “लोकतंत्र” की अनुपस्थिति को ही इग्नोर कर देती हैं। साथ ही, यह भी लिखती है कि चीन में NGO और स्वतंत्र प्रेस के ना होने से भ्रष्टाचार-विरोधी प्रहरी के रूप में काम करना असंभव हो जाता है। लेकिन फिर भी चीन, भारत से अच्छा है।
एजेंडा ऐसे ही बनाया जाता है।

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