Home विषयलेखक के विचार कुंठित लोग और उनकी विचारधारा : सरकारी नौकरी और पुरानी पेंशन

कुंठित लोग और उनकी विचारधारा : सरकारी नौकरी और पुरानी पेंशन

by Nitin Tripathi
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मेरे एक मित्र के पिता लेखपाल थे, सरकारी नौकरी थी. बस तीस साल पुरानी बात है. उनके घर दीपावली में पटाखे नहीं ख़रीदे जाते थे – बग़ल के घर में पटाखे सुन आनंदित होते थे. साल में एक बार गुड़िया के त्योहार वाले दिन उनके घर चिकन बनता था. बाक़ी दिन दो बार रोटी बन जाए यही लक्शरी होता था. बीच में तबियत बहुत ख़राब हो गई तो डॉक्टर ने बताया कि कुपोषण की वजह से है, कुछ नहीं तो रोज़ एक ग्लास दूध मिलना चाहिए. एक महीना किसी तरह रोज़ एक ग्लास दूध दिया गया फ़िर यह हुआ कि बहुत कॉस्ट्ली है सम्भव नहीं, ज़िंदा रहना होगा तो ईश्वर बचा लेंगे – दूध बंद. पिता जी नौकरी में जन प्रतिनिधियों के आतंक से इतना फ़्रस्टेट रहते थे कि घर आते ही पत्नी और बच्चों को पीट कुंठा निकलते थे.
यह तब था जब देश में केवल सरकारी नौकरियाँ होती थीं
और ओल्ड पेंशन भी थी.
इन दिनो उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मियों का एक group है जो ओल्ड पेंशन के नाम मतवाया है. उसके तर्क ऐसे होते हैं – मंदिर रहे या मस्जिद हमें इससे क्या, हमें ओल्ड पेंशन चाहिए.
नमाज़ वादी गुंडे हमारी बहू बेटी उठा ले जाएँ दासी बना कर रखें या लड़के हैं लड़कों से गलती हो जाती है करके छोड़ दें हमें क्या – हमें बस ओल्ड पेंशन चाहिए.
भाजपा राज में विधायक भी भाई साहब कह कर बात करता है, गुंडा सरकार में मंडल कार्यकर्ता भी गाली देकर काम कराता था, हमें क्या जूते खा लेंगे पर हमें ओल्ड पेंशन चाहिए.
भाजपा राज में बिजली आ रही है बेटे पढ़ रहे हैं – हमें क्या. पढ़ें या भाड़ झोंके हमें ओल्ड पेंशन चाहिए.
ऐसे सब पेंशनर्थियों से निवेदन है कि सोंच कर भी देख लें जब पेंशन और सरकारी नौकरी की वैल्यू होती थी तब उनका लाइफ़ स्टैंडर्ड क्या था और अब क्या है.
बाक़ी बीते हुवे कल का बलात्कार भो रोमांस लगता है. इस समस्या का कोई समाधान नहीं.

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