Home विषयऐतिहासिक कुछ कही और बहुत कुछ अनकही: कृषि कानून की वापसी

कुछ कही और बहुत कुछ अनकही: कृषि कानून की वापसी

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जीवन मे कुछ ही घटनाएं ऐसी होती है जो आपके साथ साथ पूरे वातावरण को झझकोर देती है। एक ही पल में स्थापित मान्यताओं, अपेक्षाओं और अभिज्ञताओं का कलेवर ही बदल जाता है। मस्तिष्क संज्ञाशून्य और अपने विवेक का अवसान हो जाता है। कल, 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा, राष्ट्र को संबोधित कर, 3 कृषि कानून वापस लेने की घोषणा ऐसे ही एक घटना थी।

 

मुझे यह स्वीकारने में कोई लज्जा नही है कि इस घोषणा से, अन्य बहुतों की तरह, मैं भी आक्रोशित और विचिलित हो गया था। मैं पहली बार जीवन मे, अपने नेतृत्वधापति द्वारा लिए गए निर्णय से विकर्षण से भर गया था। मन इतना व्यथित और आकुल हो गया था कि मैं मोदी जी के इस निर्णय की मीमांसा करने की जगह, इसे पंजाब के किसानों/खालिस्तानी सिक्खों के आगे, उनके द्वारा आत्मसमर्पण किये जाने के अपराध तक के निष्कर्ष पर पहुंच गया था। मेरा, इस निर्णय को लेकर जो अपने परिवारजनो व मित्रों से साक्षात या मोबाइल से या फिर व्हाट्सएप मेसेज पर जो संवाद हुआ, वह संवाद न होकर, विषाद से उपजे आक्रोशित शब्दों का पुंज था। मुझे नकरात्मकता से भरे वातावरण में मर्यादा, शालीनता व तर्क सब कुछ बहता हुआ दिखा।

 

मानसिक अवसाद में मेरा अंतर्मन इसी बात पर अटक गया कि ऐसा क्यों? यह निर्णय क्यों? मोदी जी! आपने यह क्या किया? क्यों, क्यों क्यों? क्यों, कुछ लोगो को समझाने में विफल होने पर, सामान्यजन, जो समझे हुए थे और आपके साथ खड़े हुए थे, उन्हें भेड़ियों के आगे फेंक दिया। मैंने इस आत्मसमर्पण की खिन्नता में, अन्य लोगो की तरह ट्विटर पर अपना आक्रोश भी निकाला। मैं अपनी इसी मानसिक स्थिति में कुछ और भी लिखने वाला था लेकिन तभी मेरे मस्तिष्क में चल रहे प्रश्न, यह निर्णय क्यों?, ने मेरी उंगलियों को रोक दिया।
मैंने पहली बार, मोदी जी से प्रश्न पूछने की बजाय, अपने से पूछा कि मोदी जी ने यह निर्णय क्यों लिया? क्या मोदी जी द्वारा इस तरह, पीछे हटने वाले अप्रत्यश्चित निर्णय लेने का कोई इतिहास है? क्या पिछले दो दशकों की राजनैतिक यात्रा में, मोदी जी के चरित्र में, यह पक्ष कभी सामने आया है? क्या, मोदी जी द्वारा कोई भी निर्णय ऐसा लिया दिखा है जहां, राष्ट्र प्रथम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, समझौता करते हुए दिखी है? क्या मोदी जी में, प्रतिद्वंदियों से संघर्ष करने की क्षमता का ह्रास हो गया है? क्या मोदी जी के द्वारा राष्ट्र को दिए संबोधन की शब्दावली के मर्म को समझने में, मुझसे ही चूक हो रही है? क्या मोदी जी को मालूम नही है कि पूरे राष्ट्र में, किसान आंदोलन असफल हो अपनी परिणीति को प्राप्त हो चुका है, तो फिर, सिर्फ पंजाब के किसान के भेष में अड़े लोग उनके लिए क्यों महत्वपूर्ण है? क्या मुझ ऐसे लोगो को, मोदी जी से ज्यादा, भारत को निवर्तमान में, मिल रही आंतरिक व सीमारेखा पर खड़ी, सुरसा ऐसी मुँह बाए चुनोतियों का पता है?मुझे इन सारे ‘क्या’ ने झझकोर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि मैंने अपने ज्ञान के अहंकार को तिलांजली दे कर, मोदी जी द्वारा कृषि कानून वापस लेने की घोषणा को, तटस्थ भाव से समझने का प्रयास किया है।
मुझे पहली बात यह समझ आई है कि तीनों कृषि कानून की वापसी का अर्थ यह नही है कि ये एक नए रूप में, एक नए कलेवर नही आएगा और दूसरी बात यह कि किसान आंदोलन को समाप्त कर, कुछ बड़ी अनोहोनी को विफल करने का प्रयास है या फिर सीमा पर कुछ बड़ा होने की संभवना को देखते हुए, घर मे लगी आग को ठंडा करने का यह प्रयास है। जब किसान आंदोलन शुरू हुआ था तब यह मामला सिर्फ किसानों का था जिसका विपक्ष ने पूरा साथ दिया था। कालांतर में जब यह आंदोलन खालिस्तानियों द्वारा अपहृत कर लिया गया तब भी, भारत का विपक्ष उसके साथ ही खड़ा रहा। यह भारत मे पहली बार हो रहा था कि भारतीय विपक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व में खुले आम, खालिस्तानियों को किसान बना कर, मोदी सरकार के विरुद्ध, भारतीय जनता को बेच रहा था। विपक्ष को, मोदी सरकार द्वारा दमनकारी कार्यवाही कर, किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए निर्णय लेने में आरही दुविधा का पूरी तरह से संज्ञान था। विपक्ष, भारतीय जनमानस की मुलभुत भावुकता व किसानों के प्रति स्वाभाविक रूप से पूर्वग्राही होना समझती थी और इसीलिए, उन्हें इस आंदोलन में किसानों के हित से ज्यादा, मोदी सरकार द्वारा, किसानों पर दंडात्मक कार्यवाही करवाने में किसी तरह सफल हो जाने का अवसर ज़्यादा लग रहा था। वह जानते थे कि किसान के भेष में कोई भी रहे, यदि वह आंदोलन के माध्यम से खून खराबा होता है तो भारतीय जनमानस का एक बड़ा वर्ग, मोदी सरकार के विरुद्ध जा खड़ा होगा। मोदी सरकार यह जानती थी इसलिए, तमाम आलोचना के बाद भी मोदी सरकार ने शक्तिप्रदर्शन की जगह, समय निकालने व वार्ता की नीति को अपनाया। मोदी सरकार को शीघ्र ही पता चल गया था कि यह आंदोलन राजनैतिक न होकर अराजकता को अवसर प्रदान का प्रयास है। अंतराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड और योरप में बैठे खालिस्तानी, पाकिस्तान व चीन के समर्थन से, इस किसान आंदोलन को, मोदी सरकार को मानवीय मूल्यों का हनन करने वाली, एक फासिस्ट सरकार के रूप मे स्थापित कर रहे थे।
इस आंदोलन के परोक्ष में, किसान धीरे धीरे गायब होगया और उसकी जगह सिखों में हिन्दू विरोधी भावनाओं को हवा देने का काम शुरू हुआ, जिसे पंजाब में बहुत ग्रहयता मिली है। विपक्ष ने पंजाब में राजनैतिक लाभ के लिए सिख हिन्दू दुराव को रोकने का कोई प्रयास नही किया क्योंकि नरेंद्र मोदी की सरकार को झुकाने, हराने व अस्थिर करने के लिए सारा विपक्ष भारत को ही दांव पर लगाने के लिए कटिबद्ध हो गया है।
इसी के साथ यह भी प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर इन खालिस्तानियों को किसान आंदोलन से चिन्हित कर, कोई कार्यवाही क्यों नही हुई? क्यों इतना संयम रखा गया? मैं यहां समझता हूँ कि इस तरह की कार्यवाही शुरू में करना आसान थी लेकिन किन्ही कारणों से यह चूक हुई है। जैसा कि बाद में देखा गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति आंदोलन के आस पास भी दुर्घटनाग्रस्त हुआ है तो वह किसान ही कहलाया है। आज तो स्थिति यह है कि किसान और खालिस्तानी के बीच भेद ही मिट गया है। यदि सरकार को खालिस्तानियों द्वारा हिन्दू विरुद्ध वैमनस्य व जघन्य कांड करने से रोकना है तो किसान से इन खालिस्तानियों को छानना है। मुझे यह समझ आता है कि कृषि कानून की वापसी कर, किसान आंदोलन का अंत कराना, इन खलिस्तनियों को किसान से छान कर अलग करने की प्रक्रिया है। हाँ, उत्पात होगा और खून ख़राबे की भी पूरी संभावना है, लेकिन इसका और देर तक टालने का अर्थ, भारत/पंजाब को 1980 के दशक में ले जाना होगा, जब पंजाब आतंकवाद से दहल रहा था।
भारत 1980 के दशक में बच निकला था क्यूँकि आतंकवाद के विरुद्ध एक तरफ़ इंद्रा गांधी की कांग्रेसी सरकार, जिसने भिंडरवाले का अकलियों के विरुद्ध इस्तेमाल करने के लिए बढ़ावा दिया था और विपक्ष एक साथ खड़े थे। भारत का तत्कालीन विपक्ष यह जानते हुए भी की खालिस्तानियों द्वारा किया जारहा आतंकवाद, राजनैतिक लाभ के लिए, इंद्रा गांधी की ही देन है, उसके बाद भी भारत की संप्रभुता के लिए, सरकार का पूरा साथ दिया था। एक तरफ़ भारत मे आंतरिक एकता थी और दूसरी तरफ़ सीमा पर पाकिस्तान से, हालांकि खालिस्तानियों का खुला समर्थन राष्ट्रपति जिया उल हक के पाकिस्तान द्वारा दिया जारहा था, युद्ध होने की कोई संभावना नही थी क्यूँकि वो अमेरिका के साथ अफगानिस्तान में उलझा हुआ था।
लेकिन वर्तमान में 2021 के भारत के पास1980 में मिली अनकूल परिस्थितियां नही है। आज केंद्र में मोदी जी की सरकार अकेली है और विपक्ष, ख़ालिस्तनियों के साथ उन्हें किसान बता खड़ा है। आज सीमा पर, पाकिस्तान से युद्ध होने की भले ही उम्मीद नही है लेकिन खालिस्तानियों के साथ पंजाब की मुख्य धारा की राजनैतिक पार्टियों के नेताओ को भी उनका पूरा समर्थन प्राप्त है। आज पाकिस्तान से सीमा पर युद्ध से ज्यादा खतरा चीन के साथ सीमा पर यह ख़तरा बहुत स्पष्ट रूप से दिख रहा है। इस युद्ध मे भी विपक्ष, मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत को चीन से हारता हुआ देखना चाहता है। अभी 10 दिन पहले ही विभिन्न अंतराष्ट्रीय मीडिया व स्वयं भारत के समाचार पत्रों में यह समाचार आया था कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नीलम घाटी के पास, चीनी सैनिकों द्वारा, मिसाइल के लिए बेसेस बनाते हुए चिन्हित हुए है। ऐसी परिस्थिति में जलता, उड़ता और रक्तरंजित पंजाब भारत के लिए अशुभ समाचार है। यदि घर मे आग लगी हो और सीमा पर यदि युद्ध करना पड़े तो वह सीमा पर तो प्रतिकूल परिणाम देता है साथ मे यह खालिस्तानियों द्वारा फैलाया गया हिन्दू वैमनस्य, भारत के किस किस कोने को जलाएगा, यह कल्पना भी नही की जासकती है। इस पूरी विभीषका का, भारत का विपक्ष आनंद लेगा क्योंकि भारत के जलने या हारने की कीमत पर, यदि मोदी सरकार को विफल किया जासकता है और 2022 में योगी जी को रोका जासकता है तो विपक्ष यह कीमत देने को तैयार है।
इस सबके पीछे और भी बहुत कुछ है जिसको लिखना मेरे लिए सर्वदा अनुचित होगा लेकिन इतना कह सकता हूँ कि यह कृषि कानून की वापसी, राष्ट्र की संप्रभुता के आगे बहुत छोटी कीमत है। हां मोदी जी द्वारा लिया गया यह निर्णय, निश्चित रूप से आहत करने वाला निर्णय है, जो पूर्व में कुछ निर्णय न लेने का परिणाम है लेकिन यह आगे के आघातों को शिथिल व उसकी तीव्रता को थामने के लिए, लिया छिद्रेन्वेषी निर्णय है। मैं इतना ही कहूंगा कि जब आपको इस लेख की आलोचना, उपहास व कटाक्ष करने से समय मिले तो एक बार रुक कर सोचिएगा और अपने नेतृत्व के पूर्व इतिहास को देखते हुए अपने डगमगाए अविश्वास को सहेजियेगा और फिर धैर्य से अगले आने वाले समय की प्रतीक्षा कीजियेगा। आज, मोदी जी को जितनी आपके समर्थन की आवश्यकता है उतनी भारत के अस्तित्व को पंजाब की आवश्यकता है। जो, काम 1980 मे भारत के विपक्ष ने खालिस्तानियों से लड़ने के लिए किया था,वह काम आज आपको करना है, क्योंकि विपक्ष, मोदी सरकार को ढहाने के लिए खालिस्तानियों/पाकिस्तान/चीन के साथ
खड़ा है।

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