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कौन है ब्रजेश पाठक पहले जाने फिर नफरत करे

by Nitin Tripathi
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कौन है ब्रजेश पाठक पहले जाने फिर नफरत करे
जब से उत्तर प्रदेश सरकार का गठन हुआ है, Brajesh Pathak के ख़िलाफ़ एक स्मियर कैम्पेन सी चल गई है. जाने अनजाने लोग ढेरों पोस्ट कर रहे हैं.
पाठक जी बसपा से आए थे. हाँ सच है. देखा जाए तो सबसे नाराज़ होने वाले भाजपाइयों में मुझे होना चाहिए. जो उन्नाव की राजनीति जानते हैं, जानते हैं 2012 में मैं पाठक जी की पत्नी नम्रता जी जो बसपा प्रत्याशी थीं उनके ख़िलाफ़ टिकट माँग रहा था, मैं भाजपा युवा मोर्चा महामंत्री था. ऐन मौक़े पर बसपा से ही आए पंकज गुप्ता जी को टिकट मिली. व्यक्तिगत कष्ट अवश्य हुआ. फ़िर 2014 में पाठक जी उन्नाव से बसपा लोकसभा प्रत्याशी थे और मैं साक्षी महाराज जी के लिए मोहान विधान सभा प्रभारी. तो आमने सामने ग्राउंड पर हमने काम किया है भाजपा के लिए जब पाठक जी बसपा में थे.
पर जब 2015-16 में ब्रजेश पाठक भाजपा में आए तो मैंने भाजपा के इस कदम की ज़बर्दस्त प्रसंशा की.
नेता दो तरह के होते हैं, एक वो जो आयडीयलॉजिकल बातें अच्छी करते हैं, दूसरे वह जिन्हें ग्राउंड पर जनता पसंद करे. पाठक जी कम से कम अवध क्षेत्र में दूसरी कैटेगरी के बेस्ट नेता हैं. सरकार हो न हो, पद हो न हो, उनके पास आप पहुँच जाएँ काम हो जाता है.
पाठक जी को भाजपा ने सबसे पहले टेस्टिंग में लखनऊ मध्य दिया लड़ने को. वर्तमान समीकरण में उस सीट से सपा के रविदास महरोत्रा को हरा पाना असम्भव था. वह सपा के सीनियर ब्रजेश पाठक हैं. लखनऊ यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष रहे. पूरी ज़िंदगी जीतें हों हारे हों उसी विधान सभा से काम किया. खाँटी समाजवादी. विश्व रेकर्ड है उनका जेल जाने का. कुछ भी हो जाए वह तैयार हैं जनता के लिए रोड पर. प्लस इलाक़े के धार्मिक समीकरण सपा के पक्ष में हैं ही. पाठक जी ने काँटे की टक्कर में असम्भव कर दिखाया और भाजपा 2017 में लखनऊ मध्य जीती. पुरशकार स्वरूप उन्हें क़ानून मंत्री बनाया गया.
फ़्रेंकली स्पीकिंग राज्य में क़ानून मंत्री केवल होनरेबल मंत्रालय है. लेकिन पाँच वर्षों में ग्राउंड पर सबसे ज़्यादा दिखने वाले नेता थे पाठक जी. यहाँ तक कि करोना 2.0 काल में मुझे मालूम था कि पूरे उत्तर प्रदेश में लखनऊ में पाठक जी और उन्नाव में पंकज गुप्ता यही दो हैं जो फ़ोन उठाएँगे और कुछ करेंगे भी. योगी सरकार 1.0 की जो शिकायतें रहीं जैसे नौकर शाहबेक़ाबू थी तो पाठक जी ऐसे नेता के रूप में उभरे जो साम दाम दंड भेद से कार्यकर्ताओं / जनता के काम करा देते थे. जब सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने का ठप्पा लग रहा थातो पाठक जी ब्राह्मण नेता बन सामने आए. जहां ब्राह्मणों की माँगे जेन्यून थीं जैसे ऊँचा हार सामूहिक हत्या कांड वहाँ स्वामी प्रसाद मौर्य के ख़िलाफ़ जाकर कम्यूनिटी का साथ दिया. जब लखीम पुर में किसान कांड में चार भाजपा कार्य कर्ताओं की हत्या हुई, पूरा विपक्ष / मीडिया भूल गया था कि चार भाजपा वाले भी मारे गए हैं. पाठक जी इकलौते नेता थे जो उनके साथ खड़े दिखे.
वहीं विकास दुबे प्रकरण में ज़बर्दस्त बचाव भी किया सरकार का. इन सब वजहों से वह ब्राह्मण समाज के नेता भी बन कर उभरे. थोड़ी बहुत जो नाराज़गी थी ठंडी की.
इन चुनावों में जब पार्टी ने इन्हें कैंट से टिकट दिया, मालूम था क़द बढ़ गया है. ऐसी सेफ़ सीट से टिकट उन नेताओं को दिया जाता है जो अपनी सीट छोड़ अग़ल बग़ल प्रचार कर दूसरों को भी जिता सकें. और पाठक जी ने जो दायित्व मिला था उसे पूरा भी किया.
अब उन्हें उप मुख्य मंत्री बनाया गया है. पर्फ़ेक्ट कॉम्बिनेशन है. योगी जी आयडीयलॉजिकल, ज़मीनी राजनीति / नौकरशाही आदि के लिए पाठक जी.
बाक़ी यह भाजपा है, यहाँ हर वह व्यक्ति जो आउट्पुट देता है उसका सम्मान है. हेमंत जी कांग्रेस से आए पाँच साल में मुख्य मंत्री हैं. कौशल किशोर जी कॉम्युनिस्ट थे केंद्र में मंत्री हैं. आगे भी जो आउट्पुट देगा पार्टी उसे ही प्रमोट करे यही हम जैसे लोग चाहते हैं.

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