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क्या होता है जब प्रदेश में ईमानदार मुख्यमंत्री हो

by Awanish P. N. Sharma
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क्या होता है जब प्रदेश में ईमानदार मुख्यमंत्री हो

देश में एक सौ प्रतिशत ईमानदार प्रधानमंत्री हो और राज्यों के एक उदाहरण के रूप में यदि लें तो उत्तर प्रदेश में सौ प्रतिशत ईमानदार मुख्यमंत्री हो उसके बावजूद नौकरशाही, सरकारी तन्त्र में फैला भ्रष्टाचार कम होने का नाम न लेता हो तो उसके क्या कारण हो सकते हैं!
जब केंद्र में अधिसंख्य निर्वाचित जन प्रतिनिधि प्रधानमंत्री के नाम पर और प्रदेश के अधिकतर जन प्रतिनिधि मुख्यमंत्री के नाम पर जीत कर आएं तो उनके व्यक्तिगत चरित्र का आकलन कर पाना और उसका दुरुस्त रहना दोनों ही असंभव काम हो जाते हैं। ऐसे निर्वाचित लोग जीतते ही नौकरशाहों और सरकारी तंत्र के साथ गलबहियाँ करेंगे और उसके नतीजे में तेल लेने जाएंगे ईमानदार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री। ऐसे में बढ़ने के सिवाय तंत्र का भ्रष्टाचार कम कभी नहीं हो सकता, खत्म करना तो असंभव है।
मजबूत और समर्थ राजनैतिक नेतृत्व के भरोसे लगातार चुन कर, नेतृत्व और पार्टी संगठन की कृपा से बिना चुनाव जीते या चुनाव लड़े हुए सत्ता की भागीदार बनती ऐसी रीढ़विहीन, अपात्र, कुपात्र भीड़ किसी केन्द्रीय नेतृत्व या किसी प्रादेशिक नेतृत्व की सफलता है या असफलता इसका आकलन हम समाज पर छोड़ते हैं।
प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री के नाम पर जीतती अधिकतर संख्याओं से ईमानदारी, शुचिता की अपेक्षा करना बेमानी है। क्योंकि ऐसी भीड़ से नौकरशाहों और सरकारी तंत्र को न अपनी शिकायत का कोई डर रहेगा, रहता है, रह सकता भी नहीं है और न ही किसी कार्यवाई का तब तक.. कि जब तक आप कोई बात सीधे नेतृत्व तक पहुँचाने का सामर्थ्य न रखते हों।
यहाँ हम और आप यानी जनता या यूँ कहें मतदाता की स्थिति सबसे दयनीय हो जाती है। समर्थ और सक्षम केंद्रीय और प्रादेशिक नेतृत्व पर भरोसा बनाये रख मतदाता.. बिना प्रत्याशी देखे चुनाव चिन्ह को वोट करे और फिर परजीवी भीड़ को मंत्री, सांसद, विधायक बनता देखता रहे। प्रत्याशी देख कर वोट करे तो समर्थ और सक्षम केन्द्रीय-प्रदेश नेतृत्व को हरा बैठेगा! आगे बढ़िए तो जिन उँगलियों से ऐसों को वोट किया उन पर उँगली उठाने का नैतिक सामर्थ्य भी वह खो चुका होता है।
जनता सुधरने को तैयार है और रास्ते पर मजबूती से बढ़ रही है 2014 से चुनाव दर चुनाव… सुधार पार्टी और उसका संगठन करे खुद के चरित्र में। ऐसा न होने की दशा में ऊपर ईमानदारी है तो सब तरफ ईमानदारी ही ईमानदारी है इसकी अपेक्षा रखना भरी दोपहरी का सपना देखना ही बना रहेगा।

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