समाचार:- भोपाल, मध्यप्रदेश में एक ट्रेन के नीचे एक महिला आ जाती है और एक मुस्लिम उसकी जान बचा लेता है।
नैरेटिव:- यही इस्लाम है। इस्लाम इंसानियत का धर्म है। यही हमारे देश की खूबसूरत गंगा-जमनी तहजीब है जिसे चंद हिंदू बिगाड़ रहे हैं।
समाचार:- -हजारीबाग, में एक हिन्दू युवक की बर्बरतापूर्वक हत्या मु स्लिमों की भीड़ द्वारा इसलिये कर दी जाती है क्योंकि उस युवक ने सरस्वती पूजा के लिए मूर्ति की स्थापना की थी।
-गुजरात में एक युवक की हत्या हिंदू देवीदेवताओं पर टिप्पणी के प्रतिउत्तर में एक टिप्पणी पर कर दी गयी।
-बंगलूरू में मु स्लिमो के सैकड़ों की भीड़ ने सैकड़ों करोड़ की संपत्ति को आग लगा दी क्योंकि किसी ने देवी देवताओं पर अश्लील टिप्पणी का उत्तर दिया था।
नैरेटिव:- इस्लाम ये नहीं सिखाता। ऐसी भीड़ से इस्लाम को परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि भीड़ का कोई मजहब नहीं होता और फिर उस लड़के ने मूर्तिपूजा करके मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं को आहत क्यों किया? दोष तो बराबर हुआ न??
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एक व्यक्ति चाहे वह अशफाक उल्लाह हो या अब्दुल कलाम उन्हें ढाल की तरह प्रयुक्त करके नासमझ, भावुक हिंदुओं को मूर्ख बनाना और पाकिस्तान बनाने से लेकर कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को भटके लोगों की हरकत बताकर निरंतर आँखों में धूल झोंकना इस कुटिल, धूर्त भेड़ियों की सबसे बड़ी विशेषता है
समझ आ गया नैरेटिव से कैसे खेला जाता है?
समझ आ गया न कि आपकी आँखों पर चश्मे कैसे बदले जाते हैं?