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चीन की साम्राज्यवादी-बर्बरता के कारण कई देश तबाह हो रहे हैं और होते रहेंगे

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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चीन की साम्राज्यवादी-बर्बरता के कारण कई देश तबाह हो रहे हैं और होते रहेंगे

 

चीन की वामपंथी सरकार ने अमेरिका व योरप की कंपनियों को चीन में आमंत्रित किया, कंपनियों से कहा कि आप चीन में उत्पादन कीजिए, हम आपको कच्चा माल व मजदूर बहुत सस्ते में उपलब्ध कराएंगे। चीन की वामपंथी सरकार ने चीन के करोड़ों लोगों को फैक्ट्रियों में काम करने वाले रोबोट बना दिया। फैक्ट्रियों में उत्पादन शुरू हुआ तो यातायात के लिए सड़कें बनना शुरू हुईं। विदेशों से लोग जब आर्थिक प्रतिष्ठानों में अधिकारी बनकर आना शुरू हुए तो उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन महंगे अस्पताल बनने शुरू हुए (करोड़ों लोगों को भले ही छोटी बीमारियों के लिए भी सुविधा नहीं हो)। जो लोग फैक्ट्रियों में रोबोट की तरह काम करने लगे, चूंकि वे स्लिक्ड मजदूर हो गए तो वे बीमार न हों और जमकर काम करते रहें, इसलिए इन लोगों के लिए भी कुछ इंतजाम हो गए।
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लोग रोबोट बनने में विरोध करने की बजाय खुशी महसूस करें। जिन करोड़ों लोगों को भोजन व पानी तक उपलब्ध नहीं वे भी विकास की कल्पना में डूबे रहें। इसलिए शहरों में चकाचौंध की गई, शहरों से झुग्गियों व झुग्गी वालों को हटा दिया गया, उनको अलग इलाकों में शिफ्ट कर दिया गया। वैसे भी शहर में रहने के खर्च अधिक होते हैं, दूर दराज के इलाकों में तो आदमी पेड़ की छाल को भी उबाल कर खाकर जिंदा रह लेता है, किसी तरह घास-फूस का इंतजाम करके रहने के लिए कुछ जुगाड़ कर ही लेता है। इस तरह चीन की वामपंथी सरकार ने चीन के अंदर जमीन आसमान जैसे अंतरों वाली कई प्रकार की दुनिया बना दी।
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समय के साथ-साथ रिवर्स इंजीनियरिंग करके तकनीक चोरी करते हुए, नकल करते हुए, चीन की वामपंथी सरकार ने अपने चहेते लोगों के नाम से कंपनियां स्थापित करनी शुरू कर दीं। विदेशी कंपनियों के लिए फैक्ट्रियों में दिखावटी तौर पर मानवाधिकार का कुछ शोशेबाजी करना भी होता है, लेकिन जो चीनी कंपनियों के लिए ही केंद्रित फैक्ट्रियां हैं उनमें तो इस सब की भी कोई चिंता करने की जरूरत नहीं।
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चीन के अंदर चीनी कंपनियों के लिए कच्चा माल बहुत ही सस्ता, एकदम मुफ्त जैसा। मजदूर भी बहुत सस्ते। क्योंकि चीन की वामपंथी सरकार ही चीन की मालिक है, चीन के प्राकृतिक संसाधन व लोग वामपंथी सरकार के गुलाम। चीनी कंपनियों ने धड़ाधड़ बहुत ही कम कीमतों पर दुनिया भर के देशों के लोगों को सामान उपलब्ध कराना शुरू कर दिया।
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लेकिन बहुत जल्द ऐसी स्थिति आ गई कि प्राकृतिक संसाधन खतम होने की ओर बढ़ने लगे। तब चीन ने दुनिया के गरीब व छोटे देशों की ओर रूख किया। पहले वहां की सत्ताओं को हथियार वगैरह बेचता आपूर्ति करता ताकि वहां तानाशाही सत्ताएं आ जाएं। फिर वहां की सत्ताओं से धन्यवाद ज्ञापन के तौर पर वहां के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना मालिकाना बनाता है। लोगों का विरोध न हो, इसलिए कुछ सड़क वड़क बना देता है, कुछ चकाचौंध कर देता है। इन देशों की तानाशाही सत्ता भी खुश, चीन भी खुश, इन देशों के आम लोग भी फर्जी विकास के नशे में कुछ समय के लिए धुत होकर खुश।
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चीन इन देशों की आंतरिक नीतियों पर भी हस्तक्षेप करता है, ताकि चीन को कच्चे माल की उपलब्धता इत्यादि में क्षति की संभावना तक नहीं बने। अमेरिका व योरप की कंपनियां दबाव डाल कर व्यापारिक समझौते करतीं हैं, जबकि चीन अघोषित गुलाम बनाता है इसीलिए इन सब कामों के लिए छोटे गरीब देशों को चुनता है।
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चूंकि चीन को सिर्फ कच्चे माल, यातायात, आपूर्ति इत्यादि से ही मतलब है। इसलिए चीन को गरीब छोटे देशों के लोगों की स्थिति कैसी होगी, इसकी धेला भर भी संवेदनशीलता नही रखता, जो देश अपने देश के लोगों के प्रति संवेदना नहीं रखता हो वह दूसरे देशों के लोगों के प्रति क्योंकर रख सकता है। चीन का साम्यवादी सत्ता तंत्र दुनिया के मानव इतिहास का सबसे बर्बर व वीभत्स साम्राज्यवादी मानसिकता वाला तंत्र है, वह भी बिना कोई जवाबदेही महसूस किए हुए।
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चीन अपने आपको दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत है, इस तरह का फर्जी प्रायोजन भी करता रहता है, ताकि इन देशों के लोग व सत्ताएं कभी सपने में भी चीन की गतिविधियों का विरोध करने की सोचने तक की भी हिम्मत न करें। जब भारत जैसे देशों के खुद को महाविद्वान मानने वाले लोग चीन के इस पाखंड को सच मानते हैं तो छोटे गरीब देशों के लोगों की बात ही क्या है।
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यही सब चीन का वामपंथ है, साम्यवाद है, समाजवाद है, अ-साम्राज्यवादी होना है। इसी को भारत के बहुतेरे समाजवादी वामपंथी साम्यवादी टाइप के चिंतक विंतक लोग चीन का महान वामपंथ साम्यवाद समाजवाद व अ-साम्राज्यवादी होना कहते व साबित करते नहीं अघाते हैं, ऊपर से गर्व महसूस करते हैं खुद को बड़का किरांतिकारी मानते हुए।
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चूंकि चीन की सरकार नियंत्रण अपना ही चाहती है, और इन देशों में स्किल्ड मजदूर नहीं हैं, जो हैं भी तो चीन के गुलाम-मजदूरों की तुलना में महंगे होते हैं, ऊपर से नखरे भी झेलना। इसलिए कच्चे माल का यातायात इन देशों से चीन तक हो सके इसलिए इन देशों को जोड़ने के लिए यह रोड वह रोड योजना का। ताकि सस्ते कच्चे माल की आपूर्ति होती रहे और चीन के कारखानों में गुलाम लोग रोबोट की तरह काम करते रहें। चीन की सरकार व चहेते लोग मौज करें, आम आदमी खुरचन से ही खुश रहे, मिडिल क्लास को खुश रखने के लिए बाजार के पास बहुत कुछ है ही।
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जो अमीर देश रास्ते में पड़ते हैं उनको जोड़ने के लिए उन देशों में निवेश करके कारखाने बनाने लेकिन वहां के मजदूर चीन से लेकर पहुंचता है, क्योंकि चीन के लोग ही सस्ते में रोबोट की तरह बिना उफ किए काम करते रह सकते हैं। इन लोगों के लिए अलग से कोलोनी बना देता है, ताकि उस देश में रहने वाले लोगों को इन कालोनियों का सच छुपा रहे वरना उस देश के लोग इन कारखानों को बंद कराने का अभियान चला सकते हैं। कोई ऊंच नीच होने पर, पुराने चीनी मजदूर हटाकर उनकी जगह नए मजदूर चीन से ले आया गया।
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ये कुछ बिंदु बानगी भर हैं, शेष आप स्वयं समझदार हैं।

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