Home विषयअपराध जंगल की दासता के मातृत्व तक की मुक्त कविता : लुगनी

जंगल की दासता के मातृत्व तक की मुक्त कविता : लुगनी

by Awanish P. N. Sharma
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आजाद शहर के फ्री सेक्स जुमले से जंगल की दासता के मातृत्व तक की मुक्त कविता : लुगनी
यह तस्वीर झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले की लुगनी और उसके अब लगभग पांच साल के होने जा रहे बेटे की है। गुड़ाबांदा के जियान गाँव की लुगनी (बदला हुआ नाम) पैदायशी दोनों पैरों से लाचार है और हाथों के सहारे घिसट के ही चल पाती है। घटना 2011 से पहले की है। जिस गुड़ाबांधा के जियान में लुगनी रहती है, वह घोर नक्सल प्रभावित इलाका है। उन्हीं दिनों वहां गुलाछ मुंडा नामक नक्सली का आतंक था। गुलाछ नि:शक्त लुगनी को बंदूक की नोंक पर उठा कर ले गया, वहां उसके साथ दुष्कर्म किया। निःशक्त लुगनी विरोध नहीं कर पायी थी और एक नक्सली का विरोध ! आखिर वे आदिवासी अधिकार और जल जंगल जमीन के रखवाले जो पैदा हुए हैं।
लेकिन मानवाधिकार बेंचने-खाने वाले इन जमातों में किसी को भी उस पर दया नहीं आयी। गुलाछ ने एक बार नहीं, कई बार उसके साथ दुष्कर्म किया और वह गर्भवती हो गयी। इसकी जानकारी पुलिस को मिली। 22 जुलाई 2011 को लुगनी के बयान पर गुड़ाबांधा थाने में नक्सली गुलाछ मुंडा के खिलाफ दुष्कर्म का मामला (कांड संख्या-19/11, भादवि की धारा 376) दर्ज किया गया। पुलिस उसे प्रसव के लिए जमशेदपुर लेकर गयी थी, जहां पर एक अस्पताल में लुगनी ने एक बच्चे को जन्म दिया था।
आज उसका बेटा पांच साल का होने को है, गुलाछ की मौत हो चुकी है नक्सली वारदात में। लुगनी अपने बूढ़े माँ-बाप, भाई और अपने बेटे के साथ रहती है। बेटे का भविष्य उसे अधर में दिखता है। वह चाहती है कि बेटा पढ़े,उसका जीवन बने, लेकिन वह लाचार है। इसलिए लुगनी चाहती है कि कोई उसके बेटे को ले जाये, गोद ले ले, ताकि उसके बेटे का भविष्य बन सके। वह कहती है-बेटे को अपने से अलग करना आसान नहीं होगा, लेकिन कोई रास्ता भी नहीं है। बेटे का भविष्य बनाने के लिए वह यह दर्द भी सहने को तैयार है। वह चाहती है कि कोई व्यक्ति या संस्था उसके बेटे को गोद ले ले। लुगनी आज अपने परिवार पर एक बोझ है और दिव्यांग भत्ते की मामूली 400 रकम हर महीने उसके नाम कर यह मान लिया गया कि वो जी रही है। सरकारी पुनर्वास नीति भी यहां कटघरे में है नक्सल प्रभावित इलाकों में।
इसी तरह रामगढ़ में गिरफ्तार महिला नक्सलियों ने भी सुनायी थी अपनी आपबीती। साल 2011 में ही 19 जुलाई को के एक अस्पताल में इलाज कराने आयी दो महिला नक्सली को सूचना पर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। दोनों ने पुलिस को बताया था कि अगर वे नक्सली दस्ते में शामिल नहीं होती, तो उनकी हत्या कर दी जाती। गरीबी और बेबसी का लाभ उठा कर नक्सली संतोष व दस्ते के अन्य सदस्य दोनों के साथ दुष्कर्म करते थे। विरोध करने पर शादी करने का भी प्रलोभन दिया जाता था। अच्छा हुआ जो हम गिरफ्तार हो गए, जेल में रहेंगे तो हमारी जान बच जायेगी।
जंगलों की माओवादी क्रांति के ऐसे ही घृणित सच्चाइयों की जमीन पर शहरों से लैंगिक आज़ादी के विकृत समझदारिओं वाले लिफाफे में सहवास की आज़ादी… नारी मुक्ति और स्त्री विमर्श के नाम पर चिड़िया उड़ाई जाती है।
कोई गफलत न पालिए : शब्दों के अर्थ तक न समझ पाने की बुद्धि के बीच नारी स्वातंत्र्य की ‘फ्री’ मानसिकता का असली अर्थ लुबना से एक अनाथ बच्चा पैदा करना ही है। यही है वामपंथी लैंगिक आज़ादी का जमीनी नमूना।

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