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जकात को लेकर ९:६० में कुछ निर्देश हैं कि उससे मिलते धन का क्या करना चाहिए। अलग अलग मौलानाओं ने इसपर अपनी अपनी तफ़सीरों में खुलासा किया है। सब से अधिक स्पष्टता मौलाना (सय्यद) अबुल आ’ला मौदूदी की तफ़सीर तफहीम अल कुर’आन में मिल जाती है। हिन्दी तफ़सीर के अनुवाद की साइज़ छोटी है, इंग्लिश अनुवाद विस्तृत है। जो मूल उर्दू पढ़ सकते हैं उनके अनुसार, उर्दू तफ़सीर और स्पष्ट एवं ‘कड़क’ होती है, अन्य भाषाओं में काफी sanitize किया जाता है। ये सभी पुस्तकें ऑनलाइन उपलब्ध हैं, वे भी मुफ़्त।
अस्तु, इंग्लिश तफ़सीर की बात करें तो ९:६० का खुलासा हिन्दी से अधिक विस्तार से दिया गया है। सात footnotes हैं, ६१ से ६७ तक, जिसमें इन पैसों से क्या काम लेने हैं इसपर विस्तार से निर्देश हैं।
हमारे लिए चिंता के विषय है फूटनोट क्रमांक ६४, ६५ और ६७।
फूटनोट क्रमांक ६४ में मौलाना मौदूदी स्पष्टता से लिखते हैं कि जहां मुल्क की सरकार अन्य धर्म की हो वहाँ जकात के एक हिस्से का विनियोग सरकार के अधिकारियों के दिल अपने तरफ जोड़ने के लिए करना चाहिए। अब सभ्य समाज में इसे घूस नहीं कहा जाता, बच्चों के लिए मिठाई जैसे प्यारे प्यारे शब्द प्रयोग किये जाते हैं। हिन्दी तफ़सीर में दो शब्द प्रयोग किये गए हैं – दिल मोहना और तालीफ़े क़ल्ब। दोनों लगभग समानार्थी हैं।
(वैसे ये “क़ल्ब” के साथ एक मजेदार वाकया है, आप भी मजे लीजिए। उर्दू में एक क होता है और दूसरा क़, जिसे नुक्तेवाला काफ कह सकते हैं। ये क़ल्ब का क़ नुक्तेवाला है जिसका अर्थ दिल होता है, लेकिन अगर वही क बिना नुक्ते का होता तो कल्ब लिखा जाता जो फर्क उर्दू लिपि में ही स्पष्ट दिखता है। मजेदार बात यह है कि बिना नुक्ते के कल्ब का अर्थ है कुत्ता। और कुत्ता क्या करता है ? जो टुकड़े डालता है उसके सामने दुम हिलाता है और वो जिसपर छू करे उसे काट खाता है। बता दें कि मौलाना मौदूदी ने दिल वाला क़ल्ब लिखा है, कुत्ते वाला कल्ब नहीं। बाकी जो दिखाई देता है उसे आप क्या समझेंगे वह आप पर निर्भर है। लेकिन संभाल कर, कहीं अवमानना के चक्कर में न फंस जाइएगा। अस्तु।)
इसी फूटनोट में मौलाना मौदूदी, पहले खलीफा हज़रत अबू बकर और (तीसरे खलीफा) हज़रत उमर का एक प्रसंग बताते हैं जो बहुत महत्व का है। नबी स. के जमाने से कुछ अधिकारियों को उनकी तरफ से कुछ मिलता रहता था, ऐसे दो अधिकारी ह. अबू बकर के पास कुछ मांग ले कर गए और उनसे हुक्मनामा लिया। ह. अबू बकर ने हुक्मनामा तो दिया लेकिन कहा कि किसी और बड़े साहबी से भी endorse करवाएँ, तो ये दोनों गए ह. उमर के पास। उन्होंने पढ़ा, और फाड़कर टुकड़े टुकड़े कर इनके मुंह पर फेंके और उन्हे भगा दिया।
ये ह. अबू बकर के पास आए और उनको जो हुआ वह बताकर उलाहना दिए कि खलीफा आप हैं या उमर? लेकिन अबू बकर ने उनको कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वहाँ से निकल जाने को कहा और उमर से भी कोई झगड़ा नहीं किया।
मौलाना मौदूदी का कहना है कि ह. उमर ने ह. अबू बकर का कोई अपमान नहीं किया बल्कि बिना कुछ कहे उनको एक संदेश दिया कि इन लोगों को तब कुछ दिल मोहना दिया जाता था जब हम ताकतवर नहीं थे। लेकिन अब हम ताकतवर हैं तो इन्हें कुछ भी देने की कोई जरूरत नहीं है। मौलाना मौदूदी यह भी बताते हैं कि यह दिल मोहना का धन भी अधिकतर और कोई काफिरोंसे ही लूटे हुए धन से ही दिया जाता था।
लोगों को यह समझ आना चाहिए कि अगर उन्हें आज इनके काम करने की मिठाई मिलती होगी तो धीरे धीरे यह वक्त भी आएगा कि बिना कोई मिठाई या बात में मिठास के, धौंस धमकी सुनकर इनके काम तो फिर भी करने होंगे। और ये भूलते नहीं कि किसको कितना दिया है, बल्कि जो उन्होंने नहीं दिया उसका भी वे हिसाब रखते हैं, समय आनेपर आप से सब छीन लेंगे। और महिलाओं के साथ क्या होता है कहीं तो देखा पढ़ा होगा ही ?
अब आते हैं फूट्नोट क्रमांक ६५ पर। गुलामों को आजाद कराने की बातें हैं एवं “गर्दनें छुड़ाने” की भी बातें हैं। बाकी कई अन्य मौलाना भी “गर्दनें छुड़ाने” की बातें करते हैं।
किसकी गर्दने छुड़ाने की बातें हो रही हैं ? आज कौन गुलाम बनाते हैं ? और कौन किसके कर्जे चुकाते हैं ? क्या ये पुलिस द्वारा अलग अलग गुनाहों के लिए पकड़े गए लोगों के मुकदमें लड़ने की बातें नहीं ? क्या ये महंगे वकील जिनके लिए खड़े होते हैं, उनकी हैसियत हैं भी उनको एंगेज करने की ? कई मुद्दे ऐसे हैं कि उन्हें प्रश्न कहें या उत्तर, यही प्रश्न होता है।
अब फूटनोट ६७ की बात करें तो उसमें जो “अल्लाह की राह में” काम कर रहे हैं उनपर खर्च करने को कहा है। ये काफी जिलेबीवाला मामला है, लेकिन मौलाना मौदूदी इसमें गैर इस्लामी देशों की सत्ता पलटकर वहाँ इस्लाम की हुकूमत लाने को भी जोड़ते हैं, और यह प्रयास करनेवाले लोगों का भी जकात के इस हिस्सेपर अधिकार बताते हैं तथा जकात देनेवालों से कहते हैं कि ऐसे लोगों को शस्त्र भी खरीदकर देने चाहिए।
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और जकात देना हर किसी को फर्ज है। आप से कमाए हुए हर रुपये से जकात जाती है।

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