Home हमारे लेखकदयानंद पांडेय जब मज़हब भारी हो जाता है …

जब मज़हब भारी हो जाता है …

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मुल्क और मज़हब में जब मज़हब भारी हो जाता है तो एक जिन्ना खड़ा हो जाता है और पाकिस्तान पैदा हो जाता है। दुर्भाग्य से अब कई सारे जिन्ना खड़े हो गए हैं। इस बात से किसी को असहमति हो तो ज़रूर बताए । असहमति भी क़ुबूल है। बताइए कि कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर मुंह खोलने में जिन विद्वानों की घिघ्घी बंध जाती है , जिन्ना की पैरोकारी में उन का खून उबाल खाने लगता है । वह खून बहाने में सब से आगे दीखते हैं । जाने किस कुमाता की कोख से जन्मे हैं यह हिजड़े कि सोच कर भी घिन आती है । जिन्ना परंपरा में मौलाना वहीदुद्दीन खान के बेटे और दिल्ली अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. जफरुल इस्लाम खान अब नया नाम है। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी , पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला जैसे लोग भी। ऐसे , जैसे हलाल ब्रांड।
दरअसल मोहम्मद अली जिन्ना नाम नहीं , प्रवृत्ति है । दुर्भाग्य से भारत में पाकिस्तान और जिन्ना के लिए खून बहाने वाले बहुतेरे हैं । हालां कि बहुत सारे मुस्लिम भी हैं , देश में , जो जिन्ना और पाकिस्तान को पसंद नहीं करते पर इन की संख्या दुर्भाग्य से अनुपात में कम है । दिलचस्प यह भी है कि जिन्ना की एक फ़ोटो के लिए कुर्बान होने वाले सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं हैं । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी तो इस खेती की नर्सरी ही है । मोदी फोबिया वाले भी हैं जिन्ना और पाकिस्तान का झंडा उठाने वालों में । पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी को भी आप क्या समझते हैं ? जिन्ना प्रेम की तासीर उन में भी बहुत है । कूट-कूट कर भरी है ।
याद कीजिए उपराष्ट्रपति पद छोड़ते ही इस हामिद अंसारी को यह देश रहने लायक नहीं लगा था । इस मूर्ख और कृतघ्न आदमी ने कहा था , भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं । तभी इस जिन्ना प्रेमी को माकूल जवाब नहीं दिया गया । तो नौबत यहां तक आ गई है । और फिर हामिद अंसारी के बहाने भी कई सारे लोगों ने आंख लाल-पीली कर रखी है । यह तो लोग जो हैं , सो हैं ही , देश और प्रदेश की सरकारें भी कायर हैं । इन सारे जिन्ना प्रेमियों के साथ कड़ाई से पेश क्यों नहीं आती सरकार ? कोई जनरल डायर जैसा पुलिस अफ़सर ही इन जिन्ना और पाकिस्तान प्रेमियों की दवा हो सकता है । इस बात को समाज समझता है पर सरकारें नहीं । एक सख्त कार्रवाई बहुत सारे मर्ज की दवा साबित हो सकती है । नहीं , अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और श्रीनगर के आतंकवादियों की मानसिकता में कोई फर्क नहीं है । दोनों ही पाकिस्तान और जिन्ना में अपना सुकून ढूंढते हैं । इसी लिए कहता हूं , सरकार इन अतिवादियों से ज़्यादा कायर और ज़्यादा दोषी है ।
यह जो लोग बार-बार हम इंडियन बाई च्वाइस हैं , कह कर अपनी पीठ ठोंकते हैं , इन को भी कंडम किया जाना चाहिए । यह इंडियन बाई च्वाइस हैं , कहना भी अपने आप में कमीनगी है और कि अपने आप को हरामी घोषित करना है । देश , मां और पिता किसी के लिए बाई च्वाइस कैसे हो सकते हैं भला ।
हो सकता है बहुत से मेरे दोस्त इस बात को दिल पर ले लें लेकिन सच यही है कि मुस्लिम समस्या ठीक वैसे ही जैसे जो पाकिस्तान बनते समय थी । वह है मुस्लिम प्रिवलेज । [ जिसे राजनीतिक और चुनावी शब्दावली में मुस्लिम तुष्टिकरण कहा जाता है । ] अब धीरे धीरे यह प्रिवलेज फिर से पूरे देश में पांव पसार चुका है । आप क्या समझते हैं वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जो भाजपा जीती थी , वह जीत क्या कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीत थी ? हरगिज नहीं । वह जीत थी मुस्लिम प्रिवलेज के खिलाफ । अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ । अंध सेक्यूलरिज्म की बीमारी नाम के फैशन ने इस आग में और घी डाला । उत्तर प्रदेश के बीते विधान सभा चुनाव में भी यही हुआ ।
इस बात को अगर लोग अभी तक नहीं समझना चाहते तो उन के इस अंधेपन का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है । और अब आप इस बात को मानिए या मत मानिए लेकिन यह भी एक तल्ख सचाई है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को जिस मुस्लिम प्रिवलेज के खिलाफ लोगों ने वोट दिया था , वह लोग निराश हुए हैं । उन का भरोसा टूटा है । किसी शीशे की तरह टूटा है। मुस्लिम प्रिवलेज और घना हुआ है । पाकिस्तान की सारी कामयाबी इसी मुस्लिम प्रिवलेज में छुपी हुई है । मुसलमान कभी भी खुल कर दिल से पाकिस्तानियत के खिलाफ खड़े नहीं होते । जैसे कि शरीयत आदि कुरीतियों के पक्ष में मुस्लिम अस्मिता के नाम पर तन कर खड़े हो जाते हैं । कश्मीर के मुसलमान चाह लें तो पाकिस्तान की घिघ्घी बंध जाए। पर नहीं वह तो पाकिस्तानी झंडा लहराते हैं । इंशा अल्ला पाकिस्तान के नारे लगाते हैं । देश के मुसलमान क्यों नहीं जत्था बना कर जाते कश्मीर ? कि कश्मीर में अमन चैन आए । क्या कश्मीर उन का नहीं या यह देश उन का नहीं । सिर्फ़ दाढ़ी , टोपी और शरीयत आदि के लिए जान देने के लिए वह पैदा हुए हैं । देश के लिए नहीं । पर नहीं जे एन यू तक में नारा लग जाता है कि भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला ! यह और ऐसी तफसील बहुतेरी हैं । आज़म खान जैसा बदमिजाज आदमी जौहर यूनिवर्सिटी को अपने बाप की जागीर मान कर उसे डायनामाइट से उड़ा देने की धमकी दे देता है । कहीं किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती । तो यह मुस्लिम प्रिवलेज का ही नतीज़ा है ।
जब तक मोदी या कोई भी सरकार इस मुस्लिम प्रिवलेज की कमर नहीं तोड़ेगी , देश , दुनिया और समाज अशांत रहेगा , हिंसा की चपेट से इसे कोई निकाल नहीं सकता । माफ कीजिए , खुदा भी नहीं । इस मुस्लिम प्रिवलेज और मुस्लिम-मुस्लिम के कुतर्क ने कश्मीर को जन्नत से जहन्नुम बना दिया। हमारे सैनिक रोज वहां शहीद हो रहे हैं , पत्थरबाजों के हाथों अपमानित हो रहे हैं । तो यह क्या है ? सिर्फ़ और सिर्फ़ मुस्लिम प्रिवलेज । भाजपा की यह मोदी सरकार भी दुर्भाग्य से यह मुस्लिम प्रिवलेज कार्ड बहुत कायदे से खेल रही है , कांग्रेस की तरह । बड़ी ख़ामोशी से । सी ए ए पर मचे कोहराम , देश भर में उपद्रव , दिल्ली में शाहीन बाग़ , दंगे आदि पर सरकार का निरंतर घुटने टेकते जाना चकित कर गया था। तबलीग जमात का कमीनापन , समूचे देश में बर्दाश्त से बाहर इसी लिए हो गया। और सरकार हाथ में हाथ बांधे सब कुछ बर्दाश्त कर रही है।
मैं ने शुरु में ही कहा कि दरअसल मोहम्मद अली जिन्ना नाम नहीं , प्रवृत्ति है । क्यों कि बहुत कम लोग जानते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना सिर्फ नाम का मुसलमान था। सचमुच नहीं। जिन्ना ने पारसी औरत से शादी की। जिन्ना खुल्ल्मखुल्ला सूअर का मांस खाता था। नमाज वगैरह में उस की कभी कोई दिलचस्पी नहीं थी। इस सब को बेवकूफी बताता था। गांधी से मनमुटाव के चलते अचानक वह कांग्रेस से अलग हुआ। मुस्लिम लीग ने घेर लिया। पकिस्तान का पहाड़ा शुरू हो गया। लेकिन बाद के दिनों में जिन्ना पाकिस्तान का पहाड़ा पढ़ते-पढ़ते थक गया। और भारत छोड़ कर लंदन चला गया। लेकिन इकबाल जैसे लोग जिन्ना के लंदन जाने से निराश हो गए। क्यों कि वह पाकिस्तान तो दिल से चाहते थे। लेकिन इस मांग का नेतृत्व करने में खुद को अक्षम पाते थे। सो फिर से जिन्ना के पीछे पड़े। जिन्ना को लंदन चिट्ठी लिख-लिख कर भारत बुलाने लगे। जिन्ना लौटा और कभी सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा लिखने वाले इकबाल जैसों का पाकिस्तान बनाने का सपना पूरा हुआ।
जब 14 अगस्त , 1947 को पाकिस्तान बना तो जिन्ना इतना खुश हुआ कि बोला , अब तो एक ग्रैंड लंच होना चाहिए। तो किसी ने जिन्ना से धीरे से कहा कि लेकिन इन दिनों रमजान चल रहे हैं। लंच कैसे हो सकता है ! जो भी हो जिन्ना भले सच्चा और नमाजी मुसलमान नहीं था लेकिन नमाजी और कट्टर मुसलमानों को कितना तो जानता था। कि उन को उकसा कर पाकिस्तान बना लिया और कायदे आज़म बन गया। तो भारत में आज भी बहुत से जिन्ना हैं। असदुद्दीन ओवैसी , हामिद अंसारी , आजम खान , नसीरुद्दीन शाह , आमिर खान , शाहरुख खान से लगायत मोहम्मद साद , डॉ. जफरुल इस्लाम खान जैसे तमाम-तमाम जिन्ना आज भी सक्रिय हैं। इन में से हर किसी को अपना पाकिस्तान चाहिए। इसी लिए नमाजी और कट्टर मुसलमानों को अराजकता के लिए , हिंसा के लिए , उपद्रव के लिए बात-बेबात उकसाते रहते हैं। देश में जब-तब आग लगाते रहते हैं। जैसे तब मोहम्मद इकबाल जैसे बड़े शायर थे जिन्ना के साथ वैसे ही इन दिनों के जिन्ना लोगों के साथ राहत इंदौरी , मुनव्वर राना जैसे शायर हैं। इसी लिए मैं अपनी बात फिर दुहराता हूं कि मोहम्मद अली जिन्ना नाम नहीं , प्रवृत्ति है ! हलाल ब्रांड की बांडिंग यह जिन्ना प्रवृत्ति ही तो करती है। यह जिन्ना प्रवृत्ति समूचे देश में नागफनी की तरह , किसी सांप की तरह फन फैला कर चौतरफा खड़ी है। सो आज बड़ी ज़रूरत जिन्ना प्रवृत्ति को बेरहम बूटों से कुचल देने की है। इस जिन्ना प्रवृत्ति को समूल नष्ट कर देने की ज़रूरत है।

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