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जैसे_सत्तर_वैसे_अस्सी

मेरे पिता ने बचपन में एक कहानी सुनाई थी।
एक डाकू था, अंगुलिमाल टाइप का।
भयंकर, दुर्दांत।
लोगों को लूटता और फिर उन्हें कत्ल करके उनके खून से अपने अड्डे अपनी गुफा में एक कपड़े पर उनके खून से संख्या लिखता।
लिखते लिखते सत्तर तक की गिनती हो गई और कपड़ा लाल मटमैला हो गया।
एक दिन एक चार पाँच बैलगाड़ियों के सार्थ पर घात लगाये बैठा हुआ था।
रात्रि को उसने देखा अलाव के सामने एक वृद्ध संत कथा कह रहे थे।
संत की वाणी से उसके मन में प्रथम बार अपने कर्मों का भय जागा और एकांत में उनके चरणों में गिर पड़ा।
संत ने उसकी कहानी सुनी और उसे उपाय बताया कि उस कपड़े का झंडा बनाये और चारों धाम की यात्रा करे।
डाकू ने पूछा कि उसे कैसे पता लगेगा कि उसके पाप समाप्त हो गए हैं तो संत ने बताया कि जब ये खूनी लाल झंडा सफेद हो जाये तो समझना कि तुम्हारे पाप कट गए।
साथ ही उसे सख्त निर्देश दिया कि इस समयावधि में पूर्ण अहिंसा का पालन करना होगा व जानबूझकर किसी कीट को भी मारना निषिद्ध होगा।
डाकू उस खूनी वस्त्र का झंडा बनाकर निकल पड़ा।
चारों धाम कर लिए लेकिन झंडा सफेद तो दूर भूरा भी नहीं हुआ।
वह निराश लौट रहा था कि उसे एक स्त्री की चीख सुनाई दी।
दस डाकू एक स्त्री का शीलभंग करने का प्रयास कर रहे थे।
रक्त उसके मस्तिष्क की ओर दौड़ा लेकिन फिर उसे संत से की गई प्रतिज्ञा याद आई और झंडे की ओर देखा।
वह पीठ दिखाकर लौट पड़ा कि फिर उस स्त्री का आर्त्तनाद गूँजा।
डाकू ने दाँत पीसे, झंडे की ओर देखा और बुदबुदाया, ” जैसे सत्तर वैसे ही अस्सी”
उसने खड्ग खींचा, हर हर महादेव का उद्घोष किया और दसों के सिर भुट्टे से उड़ा दिये। स्त्री के शरीर पर पुनः साड़ी लपेटी और उसे घर की ओर भेज दिया।
लेकिन वह निराश था, मुक्ति तो दूर, दस और हत्याएं उसके खाते में जुड़ गईं।
उसने दुःखी होकर ध्वज की ओर देखा व देखते ही चकित हो गया।
सामने मटमैला खूनी ध्वज दुग्धवर्णी श्वेत हो चुका था।
क्या तिहाड़ जेल में #द_कश्मीर_फाइल्स जेल में दिखाने का इंतजाम नहीं किया जा सकता।
सुना है वहाँ कई दुर्दांत हत्यारे कैद हैं।
क्या पता किसी हिंदू कैदी की इंसानियत जाग जाए और वे भी अपने पाप धोना चाहें।
गिरिजा टिक्कूओं के रेपिस्ट व मु स्लिम आतंकवादी #बिट्टा_कराटे और #यासीन_मलिक तिहाड़ जेल में ही तो बंद हैं।
शायद किसी हिंदू कैदी के पाप धुल जायें।
शायद किसी हिंदू कैदी का झंडा सफेद हो जाये।

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