Home नए लेखकओम लवानिया डब कंटेंट में डायलॉग्स की ओरिजनल एक्सप्रेशन खत्म | प्रारब्ध

डब कंटेंट में डायलॉग्स की ओरिजनल एक्सप्रेशन खत्म | प्रारब्ध

लेखक - ओम लवानिया

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अक्सर हिंदी डब कंटेंट में डायलॉग्स की ओरिजनल एक्सप्रेशन को खत्म कर दिया जाता है या कहे इम्प्रोवाइजेशन करने के चक्कर में बर्बाद कर बैठते है।
कोई भी कंटेंट रहा हो, हॉलीवुड, साउथ इंडियन, मराठी आदि।
बात 1976-77 की है। जब सत्यजीत रे साब शतरंज के खिलाड़ी कंटेंट बना रहे थे। अपने स्क्रीन प्ले व कहानी के किरदारों को संवाद देने के लिए उर्दू लेखक जावेद सिद्दीकी को चुना।
जावेद ने डायलॉग्स लिखे, तो सत्यजीत रे साब ने फ़िल्म के सभी संवादों को पहले अंग्रेजी और फिर बांग्ला में लिखवाकर पढा। जब लेखक ने इसकी वजह पूछी तब, मानेक दा ने प्रतिउत्तर देते हुए कहा, भाषा कोई भी हो, शब्दों की अपनी लय होती है, लय सही होनी चाहिए। थोड़ा भी बेलेंस बिगड़ा तो पूरे सीन का मूल भाव खत्म हो जाता है।
मैंने अंग्रेजी और बांग्ला में डायलॉग्स पढक़र कहानी के मर्म को समझा, कही इन डायलॉग्स की हेरा-फेरी में लाइन से भटक न तो नहीं गया। पीछे छूट तो नहीं गया।
मानेक दा साहूकार-बनियों वाली खाता-बही में स्क्रिप्ट-स्क्रीन प्ले लिखा करते थे। उसे बही कहते थे। क्योंकि उसी में सबकुछ हिसाब-किताब लिखा होता था। कौनसा किरदार कितना बोलेगा, कौन कितना सुनेगा….ब्ला ब्ला ब्ला…
रे साहब स्क्रिप्ट-स्क्रीन प्ले और संवाद के बाद कलाकारों के चयन में बहुत बारीकी से ध्यान रखते थे। उन्हें चुनते वक्त हर पहलू पर गौर करते थे।
इसी फिल्म के लिए उन्हें नर्तकी यानी डांसर चाहिए थी, जो वाजिद अली शाह के सामने मुजरा करे। क्रू मेंबर को ऐसे कलाकार की वैकेंसी सामने रखी। तब क्रू मेंबर ने बतलाया है कि ऐसी नृत्यका है, उसे बुला ले।
तब रे साहब ने कहा कि यहाँ नहीं, हमारे इस माहौल में वह खुलकर आजादी के साथ नृत्य न कर सकेगी। उसे उसी के माहौल में देखना है। ताकि आजादी से नाचता देख सके। मुझे जो चाहिए, वह मिलने के बाद अपने माहौल में डांस करवा लेंगे। बस स्किल्स प्रॉपर होने चाहिए।
सत्यजीत रे साहब सिनेमाई जगत की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी थे। उनका एक कंटेंट पूरा सिलेबस है। जो भी युवा फ़िल्म मेकर्स पढ़ ले, तो यकीनन अच्छे सोच के साथ आगे बढ़ेगा और अपनी कहानियों को बेहतर किरदार दे सकेगा व दर्शकों को अपनी कहानियों से कनेक्ट कर लेगा।

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