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डॉ. धनीराम बरुआ को नहीं

by Isht Deo Sankrityaayan
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1997 में मानव शरीर में सुअर के दिल का प्रत्यारोपण करने वाले डॉ. धनीराम बरुआ को नहीं, भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं के विकास को गिरफ्तार किया गया था। यह केवल डॉ. बरुआ के साथ ही नहीं हुआ, नई दिल्ली में ही एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में डॉ. प्रदीप सेठ रहे हैं। उन्होंने एच आई वी के लिए टीके का विकास किया था।

 

जहाँ तक मुझे याद आता है, उन्होंने स्वयं को वह टीका लगाया भी था। लेकिन उसे मान्यता नहीं दी गई तो नहीं ही दी गई। प्रकट तौर पर कारण कोई विदेशी नहीं, स्वयं अपने ही लोग थे। इतना तो मैं जानता हूँ कि इतने बड़े काम को कूड़े में डाल दिए जाने की साजिश का कारण केवल व्यक्तिगत ईर्ष्या तो नहीं हो सकती। और ऐसी चीजों के पीछे जो ताकतें होती हैं वो कभी किसी को दिखती नहीं हैं।

 

मॉर्निंग वॉक पर गए या अपने किसी दोस्त को बस स्टॉप तक छोड़ने गए वैज्ञानिकों का अचानक लापता हो जाना भारत में आम बात रही है। ऐसा अकसर तभी होता रहा है जब वे अपने किसी महत्वपूर्ण शोध के निष्कर्ष के आसपास होते रहे हैं। उनकी फिर किसी को कोई सुधि नहीं मिली। नाम्बियार के साथ जो हुआ, किससे छिपा है!

 

मैंने स्वयं एक बार प्रदीप सेठ का एक इंटरव्यू किया था और वह इंटरव्यू दैनिक जागरण और सखी दोनों में प्रकाशित हुआ था। हालाँकि बहुत सारी बातें जो उन्होंने बताई थीं, उन्हें छापा नहीं जा सकता था। इसलिए भी कि उन्होंने वे बातें मुझे ऑफ द रेकॉर्ड बताई थीं और इसलिए भी कि हमारा अखबार इसकी अनुमति नहीं देता था।

 

दैनिक जागरण के बाद कई और जगहों पर भिन्न भिन्न रूपों में लोगों ने उसी इंटरव्यू को चोरी चकारी करके भी छापा। कुछ ने साभार और ज्यादातर निर्भार।

 

सोचिए, क्या यह सब हमारे सत्ता प्रतिष्ठान की मदद के बगैर होता रहा है। यह भी कि अंग्रेजों ने हमें भीख में आजादी दी थी या फिर चुटकी भर लोगों को सत्ता?

 

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