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तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को जब पंजाब पुलिस ने अरेस्ट किया

अमित सिंघल

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तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को जब पंजाब पुलिस ने अरेस्ट किया था, उस समय मैं मेक्सिको घूम रहा था। आप पार्टी द्वारा बदले से भरपूर, राजनीतिक घृणा से प्रेरित, इस अनावश्यक अरेस्ट को लेकर हरयाणा पुलिस का एक्शन, दिल्ली पुलिस द्वारा किडनैपिंग का केस फाइल करना, एवं तीन राज्यों एवं क्षेत्रो की पुलिस एवं सरकार के मध्य तनाव उचित नहीं था।
भाजपा समर्थक भड़क जाते है; ताने मारते है, लिखते है कि सारी नीति, नैतिकता, और सतर्कता भाजपा के लिए ही हैं, लेकिन बंगाल, केरल इत्यादि राज्यो में सत्ता का हिंसक इस्तेमाल से विरोधियों का दमन किया जाता है, भाजपा शासित राज्यो में भाजपा को किसने रोका हैं उसी तरीके को आजमाने के लिए, अभी आप देखिएगा पंजाब में केजरी केवल पुलिस की सहायता से क्या करतें हैं।
आप क्या चाहते है? सभी राज्य सरकारे (गैर-भाजपा एवं भाजपा), एवं केंद्र सरकार आपस में ही लट्ठबाजी, अनैतिक एवं हिंसक तरीको से लड़ जाए?
क्या आप वास्तव में चाहते है कि प्रधानमंत्री मोदी वाह्य सुरक्षा, तेज विकास, पड़ोस में स्थिरता स्थापित करना, कच्चे तेल एवं खाद के आयात का प्रबंध करना, सुशासन देना, इत्यादि छोड़कर इन छुटभैय्ये नेताओ के स्तर पर उतर आए?
आप को इसके उपसंहार का अनुमान है? सभी राज्यों की पुलिस आपस में ही भिड़ जाएगी। और इसका लाभ किसको मिलेगा? उन्हीं कट्टरपंथियों को जिन्हे आप दिन-रात कोसते है।
राष्ट्र को एक परिपक्व नेतृत्व की आवश्यकता है। ना कि अराजक तत्वों की। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि कुछ राज्यों में जनता ने इन्हे भारी, बहुत भारी, बहुमत से सत्ता दी है।
केंद्र सरकार को चतुरता एवं ठन्डे दिमाग से काम लेना होगा; यही हो भी रहा है।
उपरोक्त विचार मैंने 10 अप्रैल की पोस्ट में लिखा था।
इस समय पंजाब, बंगाल, महाराष्ट्र, झारखण्ड में क्या स्थिति है? सरकारी हिंसा के कारण विकास थम गया है। हेमंत सोरेन के चुनाव पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। महाराष्ट्र के महत्वपूर्ण मिनिस्टर एवं अधिकारी या तो जेल में है, या कानून से भाग रहे है। आप पार्टी के कई प्रतिनिधि जेल में है या उन पर केस चल रहा है। पंजाब में तीन माह के शासन के बाद सरकार एवं पार्टी के पास कोई भी सार्थक उपलब्धि नहीं है।
इसी प्रकार, मैंने पिछले वर्ष 26 मई को लिखा था कि लोग उदाहरण देते है कि इंदिरा ने यह किया; राजीव ने वह कर दिया; ममता-उद्धव ने सभी राष्ट्रवादियों को “ठीक” कर दिया।
मैंने पूछा था कि क्या 3000 सिखों का नरसंहार उचित था? अगर आप बंगाल की हिंसा से विचलित है, तो उस हिंसा का प्रतिउत्तर हिंसा से देना चाहेंगे?
फिर परिणाम क्या होगा; कभी इस पे विचार किया है? परिणाम होगा राष्ट्र में अराजकता एवं अशांति।
अराजकता एवं अशांति के समय पूँजी निवेश, उद्यम एवं व्यापार में रिस्क अत्यधिक बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप पूँजी का “दाम” बढ़ जाता है; इंश्योरेंस कॉस्ट बढ़ जाती है; लोन मिलना दुरूह हो जाएगा; रातो-रात मंहगाई बढ़ जाती है; लोग उद्यम नहीं लगाना चाहेंगे। जान-माल की अपूर्णनीय हानि होगी; यात्रा असुरक्षित हो जाती है। महिलाओ के अधिकारों का पाश्विक हनन होगा; सरकार अस्थिर हो जाती है; देश की सीमाओं पे असुरक्षा बढ़ जायेगी।
यही राष्ट्र विरोधी शक्तियां चाहती है। कई बार डिटेल में वर्णन किया है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी अपनी नीतियां और कार्यो से अभिजात वर्ग का रचनात्मक विनाश (creative destruction) कर रहे है। प्रतिउत्तर में अभिजात वर्ग भारत में अपने विशेषाधिकारों और अस्तित्व को बचाये रखने के लिए हिंसा का सहारा ले रहा है।
क्योकि अराजकता एवं अशांति में केवल अभिजात वर्ग ही फलता-फूलता है।

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