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दक्षिणपंथ ठहरा हुआ होता है

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दक्षिणपंथ ठहरा हुआ होता है , पुरानी मान्यताओं में जकड़ा हुआ होता है वह रूढ़िवाद में ही विकासवाद ढूढ कर महानता स्थापित करने का हमेशा प्रयत्न करता है , यूँ कहें तो यह पहले तो तर्क में विश्वास नहीं करता और यदि करता भी है तो दायरे में, उससे बाहर जाकर नये बदलाव स्वयं नहीं लाता बल्कि अपने विरोधी द्वारा लाये गए बदलावों का पहले विरोध करता है फिर उन बदलावों का उपभोग करने लगता है ,
सबसे प्रमुख बात यह है कि दक्षिणपंथ फिर अपने विरोधी द्वारा लाये गए बदलाव को भी स्थायी मानकर अब उसे रूढ़ि होकर डिफेंड करने लगता है ।
यूँ कहें तो दक्षिणपंथ की कोशिश हमेशा होती है कि वह जड़ बना रहा यदि यह कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उसे तर्कों से शून्य रहना अधिक पसंद है।
जैसे ही दक्षिणपंथ तर्क करता है वैसे ही वह वामपंथ हो जाता है और फिर वाम तर्कों के माध्यम से वह दक्षिणपंथ की मान्यताओं को तार्किक आधार देता है और उसकी रक्षा करता है। तर्कों का वामपंथ भी ग्राही को मिले वरदान के समान है जैसे अर्जुन को मिला तो लोक कल्याण होगा और दुर्योधन को मिला तो लोक विनाश होगा।
विवेक अग्निहोत्री का पूर्व में वामपंथी होना बहुत कारगर सिद्ध हो रहा है कोई भी उनके तर्कों के आगे टिक नहीं पा रहा है , 5 मिनट में हर तरह के सवालों का इतनी सटीकता से जवाब दे रहें हैं कि लोग चुप हो जा रहें हैं।
पॉइंट to point जिस तरह से जवाब विवेक अग्निहोत्री दे रहें हैं अभी यदि कोई सदाशय सिर्फ दक्षिणपंथी होता तो तर्कों में जबरदस्ती करता कि नहीं मेरी बात मानो ही मानो….
सनातनियों का यह दुर्भाग्य है कि वामपंथ को उन्होंने लेनिनवादी और माओवादियों के लिए छोड़ रखा है जबकि सनातन में अवतारवाद से बड़ा वामपंथ का उदाहरण कौन हो सकता है जो हर युग में नए तर्कों और नए उदाहरणों के साथ प्रस्तुत होता है….और अपने ही पुराने तर्कों , पद्धति में समसामयिक बदलाव कर देता है …..

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