Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) दास्तां-ए-हिरण्यकश्यप
दास्तां-ए-हिरण्यकश्यप
क्या हम वाकई हिरण्यकश्यप की कथा को समझते हैं ? चलिए, आज वही बातों को जरा ठीक दृष्टिकोण से देखते हैं।
हिरण्यकश्यप एक असुर राजा था। उसके भाई हिरण्याक्ष की भी कथा है लेकिन यहाँ प्रासंगिक नहीं है इसलिए कोई विमर्श में घुसेड़ने का प्रयास न करें, वो कमेन्ट डिलीट करने को विवश होऊँगा। अस्तु, आगे चलते हैं।
हिरण्यकश्यप ने कठोर तपश्चर्या कर के ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर लिया और उससे वरदान पाया कि ‘आपके बनाए किसी प्राणी, मनुष्य, पशु, देवता, दैत्य, नागादि किसी से मेरी मृत्यु न हो। मैं समस्त प्राणियों पर राज्य करूं। न शस्त्र से मरूँ न अस्त्र से। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न घर के बाहर।’
मांगा तो उसने अमरत्व ही था लेकिन ब्रह्मा जी ने वो मना कर दिया तो भी इसने जो मांग लिया और ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा वो अमरत्व से कम थोड़े ही था ? हिरण्यकश्यप उन्मत्त हो गया क्योंकि कोई भी उसे मारने को असमर्थ था लेकिन वो किसी को भी मार सकता था।
उसके अत्याचार यहाँ तक बढ़ गए कि वो सब से अपना पूजन तक करवाने लगा और यहाँ उसके अपने बेटे से ही ठन गई जो विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यपने प्रह्लाद को अपने मत में कन्वर्ट करने के लिए नाना प्रकार के अत्याचार किए जिसमें प्रह्लाद के प्राण भी जा सकते थे लेकिन प्रह्लाद विष्णु की कृपया से पूर्ण सुरक्षित रहा। अंत में जब जब हिरण्यकश्यप के पापों का कहिए या विष्णु के सहनशक्ति का कहिए, लिमिट या गया तो उसने मदांध हो कर खंभे को लात मारी उससे नृसिंहावतार प्रकट हुआ जिसने ब्रह्मा जी के वरदान का आदर रखते हुए हिरण्यकश्यप का वध किया।
अब जरा विश्लेषण करते हैं कि हिरण्यकश्यप ने क्या मांग लिया ।
किसी भी मनुष्य, प्राणी, देवता, दैत्य नागादि से मृत्यु न आए। समस्त प्राणियों पर सत्ता। न शस्त्र से मरूँ न अस्त्र से। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न घर के बाहर। न पृथ्वी पर मार सके न आकाश में। ‘
आज के परिप्रेक्ष्य में कहें तो पूरा संवैधानिक अभय। कुछ भी करो, कोई कुछ नहीं कर सकता।
बस एक विक्टिम कार्ड की ही कमी रह गई थी।
अब भगवान विष्णु ने क्या किया यह भी समझें।
नर सिंह बनना पडा, जो न मनुष्य था न पशु।
संध्या के समय वध किया – न दिन न रात्रि।
नाखूनों से वध किया – न अस्त्र न शस्त्र।
दहलीज पर, अपने अंक पर हिरण्यकश्यप को लिटाकर उसका पेट फाडा – न घर, न बाहर, न जमीन, न आकाश।
सर्वव्यापकता का परिचय दिया – खंभे से भी प्रकट होकर दिखाया। इसके लिए उसे मदांध होने दिया।
क्या हिरण्यकश्यप ने शस्त्र नहीं चलाए ? खूब चलाए, सभी चलाए, लेकिन सब झेले गए, नर सिंह रुके नहीं।
कुल मिलाकर बात यह है हिरण्यकश्यप ने खुद को जितना हो सके उतना सुरक्षित कर ही लिया था, लेकिन उसका नाश करने के लिए विष्णु को कुछ ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ सोचना पडा, जिसकी हिरण्यकश्यप ने कल्पना भी नहीं की थी।
इतनी ही बड़ी सीख है हिरण्यकश्यप के वध में क्रूरता। विष्णु के हर अवतार में किसी न किसी का संहार किया गया है लेकिन हिरण्यकश्यप का वध जिस क्रूरता से किया गया वैसी क्रूरता कहीं भी नहीं बरती गई। यह भी अपने आप में एक शिक्षा है कि अगर शत्रु हिरण्यकश्यप होगा जो आप के श्रद्धाओं को उखाड़कर खुद को स्थापित करवाना चाहेगा, अपनी ही पूजा करवाना चाहेगा और उसमें क्रूरता का प्रयोग करेगा तो उसके साथ उससे बी क्रूरता से झिझकना नहीं चाहिए और न ही वह निंदनीय है।
आज की भाषा में चमत्कार से परे देखा जाए तो नारायण का स्वरूप दरिद्र कहे जानेवाले जनता में है, और सर्वव्यापकता उसकी संख्या में । छत्रपती शिवाजी महाराज को इसी सामान्य दरिद्र नारायण का साथ मिल था जिसके सामने आदिलशाही हो या मुग़ल, अत्याचार भरसक किए लेकिन छत्रपती शिवाजी महाराज या उनकी स्थापित हिंदुपतपादशाही को मिटा न सके। नरसिंह का हिरण्यकश्यप द्वारा चलाए शस्त्रों को झेल जाना यही समझा जाए।
और यह भी समझना चाहिए कि हिरण्यकश्यप का नाश करने के लिए कुछ ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ सोचने की आवश्यकता है। वो अस्त्र शस्त्र से मार नहीं जा सकता का अर्थ यूं समझिए कि उपलब्ध अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग उससे लड़नेवालों के लिए प्रतिबंधित था तो जैसे नर सिंह बन कर नाखूनों को शस्त्र बनाना पडा उसे ऐसे देखें कि कुछ अलग समायोजन करना चाहिए।
कई शिक्षाएँ सर्वकालिक होती हैं, बस सीख लेनेवालों का अभाव होता है।
और हाँ, चूंकि हम पुनर्जन्म भी मानते हैं और ‘वसुधैव कुटुंबामेकम’ भी, तो क्या यह नहीं हो सकता कि हिरण्यकश्यप का भी पुनर्जन्म हुआ हो, भले भारत में नहीं, लेकिन उसका नाश भारत में ही तय है ?
वैसे दीपावली को जो जश्न ए रिवाज या और कुछ कहते हैं उनको यह दास्तां-ए-हिरण्यकश्यप समर्पित है।
तथास्तु कहने का मन है तो इसे अवश्य आगे बढ़ाएँ।

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